• वैश्विक मंच से आतंकवाद पर चर्चा

    जी-20 के बाद आसियान में भी आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहा। वैश्विक मंचों से शक्तिशाली देश एक साथ आतंकवाद के खिलाफ लडऩे का संकल्प लें और उसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं तो विश्वशांति का सपना सच में बदल जाए। अफसोस कि ऐसा है नहीं। ...

    जी-20 के बाद आसियान में भी आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहा। वैश्विक मंचों से शक्तिशाली देश एक साथ आतंकवाद के खिलाफ लडऩे का संकल्प लें और उसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएं तो विश्वशांति का सपना सच में बदल जाए। अफसोस कि ऐसा है नहीं। विश्वशांति का सपना, सपना ही रहे, इसकी कोशिशें धन और शक्ति से संपन्न देशों की ओर से लगातार जारी है। एक हाथ से घाव पर मलहम लगाना और दूसरे हाथ से लडऩे के लिए उकसाना, इस घातक प्रवृत्ति के कारण ही आतंकवाद का प्रसार बढ़ता जा रहा है और उसी अनुपात में निर्दोषों की अकाल मौत की संख्या भी। पेरिस के बाद नाइजीरिया और फिर माली में दो बड़े आतंकी हमले हो गए और अभी भी आतंकवाद से मिलकर लडऩे की कोई ठोस रणनीति सक्षम देश नहींबना पाए हैं। आसियान में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया में आर्थिक मजबूती के लिए सभी देशों को आतंकवाद पर नकेल कसने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस्लामिक स्टेट के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध हैं और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का नेतृत्व करते रहेंगे। ओबामा ने कहा कि हमें इस धारणा को नकारना होगा कि हम एक समूचे धर्म के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं। अमरीका को सभी ने मिलकर समृद्ध किया है और इसमें अमरीकी मुस्लिम भी शामिल हैं। बराक को परममित्र मानने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कुछ इसी तरह की बातें मलेशिया में कीं।  श्री मोदी ने कहा कि आतंकवाद आज दुनिया का सबसे बड़ा खतरा बन गया है। इसकी कोई सीमा नहीं है और यह धर्म का नाम लेकर लोगों का अपने लिए इस्तेमाल करता है। लेकिन यह सभी धर्मों के लोगों की हत्या करता है। हमें आतंकवाद से धर्म को अलग करना होगा। विभेद केवल यह होना चाहिए कि कौन लोग मानवता में विश्वास रखते हैं और कौन लोग इसमें नहीं रखते हैं। उन्होंने साथ ही पाकिस्तान का नाम लिए बिना यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि कोई देश आतंकवाद का इस्तेमाल, समर्थन या प्रोत्साहन नहीं करने पाए।नरेन्द्र मोदी और बराक ओबामा के राजनैतिक तौर-तरीकों में काफी समानता है। दोनों अपनी वक्तृता से जनसमुदाय को बांधना जानते हैं। दोनों की आर्थिक समझ और सोच समान है। दोनों सपनों की तिजारत करना बखूबी जानते हैं। इसलिए आतंकवाद के विषय पर भी उनके विचार मेल खाते हैं। ओबामा और मोदी इस बात को आज वैश्विक मंच से कह रहे हैं कि आतंकवाद को धर्म से अलग करके देखना चाहिए, लेकिन ईमानदारी से शांति के प्रसार में जुटे लोग प्रारंभ से यह बात करते आ रहे हैं। आतंकवाद का कोई धर्म नहींहोता, बल्कि इसे बढ़ावा देने वाले लोगों के लिए आतंक की आड़ में धन और सत्ता हासिल करना ही सबसे बड़ा धर्म है, यह बात बार-बार जाहिर हो चुकी है। फिर भी कुछ लोगों ने अपनी संकीर्ण सोच और चालाकी से आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ दिया और नतीजा यह हुआ कि दुनिया भर के मुसलमानों को कदम-कदम पर अपनी सत्यनिष्ठा, शांतिप्रियता, उदारता साबित करने की जरूरत पडऩे लगी। क्या अमरीका, क्या भारत सब जगह हाल एक जैसा ही है। 11 सितंबर के हमले के बाद अमरीका में नाम, उपनाम, वेशभूषा आदि के कारण कुछ नागरिकों और आगंतुकों के साथ कैसा सलूक होने लगा, यह दोहराने की आवश्यकता नहींहै। भारत की भी कई प्रमुख हस्तियां उस कड़वे अनुभव से गुजर चुकी हैं। अभी भी अगले राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में लगे कुछ लोग आतंकवाद और इस्लाम का डर खुले मंच से बता रहे हैं और ओबामा सरकार कुछ नहींकर पा रही। प्रधानमंत्री मोदी भी विदेशों में जाकर सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, गांधी, बुद्ध, विवेकानंद सबकी बातें खूब करते हैं, लेकिन भारत में रहते हुए इस तथ्य से मुंह फेर लेते हैं कि कैसे भाजपा के भीतर ही कुछ लोग और बाहर से समर्थन देने वाले कुछ संगठन किस तरह आतंकवाद को रंग से जोड़कर प्रस्तुत करते हैं। आतंकवाद को धर्म से अलग करना होगा, यह बात जिस तरह वे वैश्विक मंच से दुनिया को समझा रहे हैं, उसी तरह भारत में घूम-घूमकर समझाएं तो शायद देश का माहौल कुछ और सुधरे।

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