जुल्म के खिलाफ खड़ा होने वाले ताकतवर पत्रकार थे अरुण कुमार
मीडिया के भीतर ट्रेड यूनियन संघर्ष के योद्धा पत्रकार अरुण कुमार की अविस्मरणीय स्मृति सभा
पटना। टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पटना के सेवानिवृत्त वरिष्ठ पत्रकार, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इण्डिया के पूर्व सदस्य, बिहारस्ट श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव और टाइम्स एम्प्लॉइज यूनियन पटना के अध्यक्ष दिवंगत अरुण कुमार की स्मृति में रविवार 29 नवंबर 2015 को पटना के गांधी संग्रहालय में टाइम्स इम्प्लोइज यूनियन की ओर से एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया। इस सभा की अध्यक्षता जाने माने साहित्यकार खगेन्द्र ठाकुर ने की।
स्मृति सभा का संचालन करते हुए नंदीग्राम डायरी के लेखक-पत्रकार पुष्पराज ने अरुण कुमार की जिंदगी से जुडी अतीत की परतों को सार्वजनिक किया। पुष्पराज ने बताया कि अरुण कुमार के पिता स्कूल-सुपरिटेंडेंट के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के आजीवन सदस्य रहे। उनके पिता कॉमरेड रामचन्द्र सिंह अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा हर माह लेबी के रूप में पार्टी को देते थे। वे दिन में सरकार की नौकरी करते थे और रात में पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिज्म पढ़ाते थे। अरुण कुमार के ससुर कॉमरेड रामप्रताप सिंह पार्टी को लेबी देने वाले प्रतिष्ठित कम्युनिस्ट आइडिओलॉग थे। अरुण कुमार ने किशोरवय में ही पढ़ाई-लड़ाई साथ-साथ के सूत्र को जीवन का राग मान लिया। सरकारी सेवा के साथ कम्युनिस्ट होने की सजा में पिता को लगातार तबादले की सजा भुगतनी पड़ी। अरुण कुमार को पिता के तबादले की वजह से हर दो साल पर स्कूल बदलना पड़ा। अरुण कुमार ए.आई.एस.एफ के नेता होने की वजह से छात्र-हित में विद्यालय-महाविद्यालय प्रशासन से लगातार संघर्षरत रहते थे। छात्र-नेता अरुण कुमार को मुजफ्फरपुर के किसी कॉलेज में इंटर साईंस की प्रायोगिक परीक्षा में जानबूझकर फेल कर दिया गया था। अरुण कुमार मेडिकल की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बावजूद इंटर-प्रेक्टिकल में अनुत्तीर्णता की वजह से चेगुवेरा की तरह डॉक्टर होकर जनता की सेवा करने के स्वप्न को पूरा नहीं कर पाये। महान क्रन्तिकारी चेगुवेरा अरुण कुमार के जीवन के बहुत बड़े रॉल-मॉडल थे। अरुण कुमार ने बिहार विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्र राजनीति के साथ-साथ जमकर पढ़ाई की और अंग्रेजी, इतिहास और हिंदी विषयों से बेहतरीन रिकॉर्ड के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। अरुण कुमार ने दुनिया को बदलने के अपने राजनीतिक उदेश्य की तहत सरकारी नौकरी की बजाय पत्रकारिता को अपना माध्यम बनाया। जनशक्ति से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत कर अंग्रेजी साप्ताहिक द न्यू रिपब्लिक (रांची), प्रभात खबर (रांची), नवभारत टाइम्स (पटना) का सफर तय करते हुए टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पटना में 25 वर्षों तक कार्यरत रहे। अरुण कुमार इस मायने में याद रखे जायेंगे कि उन्होंने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझते हुए केंद्र सरकार और बिहार सरकार से सरकारी सहायता को नैतिकता के आधार पर अस्वीकार किया। प्रेस कौंसिल का सदस्य होते हुए अरुण कुमार कैंसर से पीड़ित हुए थे। प्रेस कौंसिल अपने माननीय सदस्य के अनुरोध पर कौंसिल की और से आर्थिक सहायता कर सकती थी पर अरुण कुमार ने सहायता का आवेदन नहीं दिया। अरुण कुमार ने अपने पत्रकारीय सम्न्धों के आधार पर प्रधानमंत्री राहत कोष और मुख्यमंत्री राहत कोष से सहायता की कोई अर्जी नहीं दी। अरुण कुमार के शुभ चिंतक वरिष्ठ पत्रकारगण चाहते थे कि अरुण कुमार अपने इलाज के लिए आर्थिक सहायता ग्रहण करें, लेकिन अरुण कुमार ने इसे अपने स्वाभिमान और नैतिकता के विरुद्ध मानकर आर्थिक सहायता के मोह का आखिरी सांस तक त्याग किया। अरुण कुमार अपनी कैंसर की बीमारी से ज्यादा टाइम्स यूनियन के धरनारत 4 कर्मचारि. की मौत से विचलित होते रहते थे।
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया इम्प्लोइज यूनियन के सचिव लाल रत्नाकर ने स्मृति सभा में साढ़े 4 साल से धरना दे रहे अखबारकर्मियों के संघर्ष से सभा को वाकिफ कराते हुए कहा कि हमारे यूनियन के अध्यक्ष अरुण कुमार और हम सचिव की विचारधारा भिन्न थी। बावजूद कर्मचारियों के संघर्ष का मुद्दा हम दोनों का कॉमन एजेंडा था, जिस एजेंडे ने हम दोनों को बेहतर दोस्त बनाया। 2011 के 15 जुलाई को जब अचानक टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पटना के स्वामी ने कुम्हरार स्थित प्रिंटिग प्रेस को बंद कर मुजफ्फरपुर से अखबार छपवाना शुरू किया तो टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के 56 कर्मचारियों को अपनी आजीविका से अलग कर सड़क पर फेंक दिया गया। अखबार के स्वामी ने अखबारकर्मियों को इस अपराध में नौकरी से निकाल-बाहर किया कि यूनियन अखबारकर्मियों के वेजबोर्ड वेतनमान के लिए सुप्रीम कोर्ट में संघर्षरत थी। प्रशांत भूषण हमारे वकील थे और सुप्रीम कोर्ट ने 'स्टेटस-को' का निर्देश दिया था। टाइम्स समूह ने कर्मचारियों को वेज-बोर्ड वेतनमान देने की बजाय जिस तरह छँटनीग्रस्त किया, यह देश की सबसे ऊँची अदालत की अवमानना थी। यूनियन छँटनीग्रस्त अखबारकर्मियों के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध अदालत से लेकर सड़क पर साथ-साथ संघर्ष कर रही है। हमारे अध्यक्ष अरुण कुमार ने छँटनीग्रस्त अखबारकर्मियों के पक्ष में राष्ट्रीय अपील की। मशहूर समाजसेवी मेधा पाटकर पटना आकर हमारे धरने में शामिल हुईं और उन्होंने टाइम्स समूह की मजदूर-विरोधी तानाशाही को मुद्दा बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने हमारी माँगों को जायज मानते हुए पटना के लेबर कोर्ट को अखबारकर्मियों के बकाये का भुगतान करवाने का निर्देश दिया है। धरना देते हुए हमारे 4 कर्मचारियों की अकाल मौत हो चुकी है। वे भूख और अभाव में गंभीर बीमारियों के शिकार हुए और इलाज के बिना असमय मृत हुए। छँटनीग्रस्त-मजदूरों की मौत को कंपनी-अपराध के दायरे में देखना चाहिए। अरुण कुमार इन मृत-अखबारकर्मियों के अध्यक्ष थे। धरना देते हुए जब पहली बार दिनेश नामक एक कर्मचारी की मौत हुई थी तो हमारी यूनियन ने दिनेश की लाश के साथ अरुण कुमार के नेतृत्व में टाइम्स ऑफ़ इण्डिया कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था। अरुण कुमार को सच्ची श्रद्धांजलि का मतलब है कि आप बुद्धिजीवी,पत्रकार और वाम ट्रेड यूनियन लीडर टाइम्स यूनियन के धरनारत छँटनीग्रस्त कर्मचारियों के संघर्ष का नैतिक समर्थन करें।
द हिन्दू के सहायक संपादक और बिहार प्रमुख अमरनाथ तिवारी ने कहा कि अरुण कुमार एक ऐसे जुझारू पत्रकार थे, जिन्होंने पत्रकारिता के साथ-साथ पत्रकारों की तकलीफ को निःस्वार्थ-भाव से मुद्दा बनाया। मैं अपने साथ घटित एक अप्रिय घटना का जिक्र किये बिना बताना चाहता हूँ कि मेरे साथ घटित वाकये की जानकारी मिलते ही वे मेरे घर आये, मुझसे मुलाकात न हुई पर उन्होंने मेरे पक्ष में प्रेस कौंसिल ऑफ़ इण्डिया के चेयरमेन मार्कण्डेय काटजू को पत्र लिखा। मैं उनके साथ के संस्मरण को इसलिए सार्वजानिक कर रहा हूँ कि वे मुझसे वरिष्ठ पत्रकार थे और प्रेस कौंसिल ऑफ़ इण्डिया के सदस्य थे। खुद मेरे घर आना और मुझसे प्राप्त किसी आवेदन के बिना अख़बार में प्रकाशित खबर के आधार पर मेरी हिफाजत के लिए आगे बढ़ कर काटजू को पत्र लिखना, मैं समझता हूँ कि पत्रकारों के साथ खड़े रहने वाले वे अपनी तरह के अकेले पत्रकार थे। ऐसे शख्स कभी मरते नहीं हैं, वे हमारी यादों में ज़िंदा रहेंगे।
वेब-पत्रिका बिहार टाइम्स के संस्थापक-संपादक अजय कुमार ने कहा कि समस्याओं को देखने और समझने का अरुण जी का तरीका सबसे अलग हटकर होता था। मैंने उन्हें कभी कंप्रोमाईजिंग-मूड में नहीं देखा। प्रेस-कौंसिल के द्वारा गठित "बिहार मीडिया-जांच कमिटी "में उनकी भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी। भारतीय मीडिया के सन्दर्भ में इस ऐतिहासिक रिपोर्ट के साथ अरुण कुमार आने वाले दिनों में याद किये जायेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार अभय सिंह ने बताया कि हम लोगों की जोड़ी टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में काफी फेमस हो गयी थी। उसकी कई वजहें थी। अखबार की जोड़ी जो दो दशक से ज्यादा समय तक चर्चे में रही, वह जोड़ी उसके इस तरह निकल जाने से टूट गयी है और मैं अकेला हो चुका हूँ। उसके जिंदगी की कहानी बहुत ही अद्भुत थी। वह अपने बारे में सन्दर्भ विशेष में जब कुछ बताता था तो मैं उनसे कहता था कि तुम अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखो। वह लिख सकता था लेकिन इसे उसने कभी महत्व नहीं दिया। मैं उससे मजाक में कहता था, अगर तुम मुझे अपने बारे में सब कुछ बता दो तो तुम्हारी बायोग्राफी मैं अपने नाम से छपवा लूंगा। अफ़सोस कि वह अपने बारे में बहुत कुछ अपने साथ ही लेकर चला गया। अभय सिंह ने अरुण कुमार की मौत को अपनी मौत से जोड़कर प्रस्तुत किया तो सबकी आँखें भर गयी। "एक बार अभय सिंह नामक एक टाइम्स पत्रकार की दिल्ली में मौत हुई थी। उस खबर में यह नहीं छपा था कि मृतक अभय सिंह कहाँ कार्यरत था। खबर छापने के बाद मेरे घर पर फोन से शोक-सन्देश आने लगे और मैं निःशब्द, स्तब्ध अपनी मौत के साथ शामिल होने के लिए मजबूर हो गया था। अरुण का फोन आया, मैंने कहा-आई एम इन डेथ ज़ोन". तब अरुण ने मुझे डेथ ज़ोन से बाहर निकाला था, आज अरुण ने ही मुझे डेथ ज़ोन में डाल दिया है तो बाहर कौन निकालेगा ?
बिहार सरकार के आपदा और भू राजस्व के प्रधान सचिव व्यास जी मिश्र ने कहा कि जब मैं श्रम-विभाग का प्रधान सचिव था, तब अरुण कुमार और लाल रत्नाकर टाइम्स कर्मियों के लंबित मामलों के सन्दर्भ में मुझसे मिलने आये थे। मैं समझता था कि ट्रेड यूनियन लीडर संघर्ष करना जानते हैं और कानून की कम जानकारी रखते हैं, जिसकी वजह से मजदूरों का संघर्ष कमजोर पड़ता है। कानून की जानकारी रखने वाले ट्रेड यूनियन लीडर अरुण कुमार और लाल रत्नाकर से मिलककर उनकी समस्याओं पर क़ानूनी पहल लेने में मैंने अपनी भूमिका निभाई। अरुण जी ट्रेड यूनियन संघर्ष के साथ-साथ बेगूसराय के लोगों की परशानिओं के सन्दर्भ में भी अपना हस्तक्षेप करते थे।
सीटू के बिहार प्रदेश सचिव अरुण मिश्रा ने बताया कि हम लोग अच्छे दोस्त थे। वामपंथियों की एकजुटता के लिए वे लगातार चिंतित रहते थे। निजी मुलाकातों में वे हर बार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीर चर्चा करते थे। उनके नेतृत्व में टाइम्स कर्मियों का जो संघर्ष चल रहा था, उस संघर्ष का हम नैतिक समर्थन करते हैं। टाइम्स कर्मियों के संघर्ष में सीटू हर मोड़ पर साथ खड़ा रहेगा।
भाकपा (माले) के केंद्रीय कमिटी सदस्य धीरेन्द्र झा ने कहा कि अरुण जी का जाना बिहार में मीडिया के साथ साथ सम्पूर्ण वाम-जनवादी आंदोलन का बड़ा नुकसान है। मैं अरुण जी से काफी करीब रहा और जेल में कैदी की मौत से लेकर बेगूसराय में भाकपा (माले )कार्यालय पर पुलिस गोलीकांड में अरुण जी की भूमिका को भूलना मुश्किल है। अरुण जी जुल्म के खिलाफ खड़ा होने वाले ताकतवर पत्रकार थे।
जाने-माने इतिहासकार प्रो. ओ. पी. जायसवाल ने कहा कि अरुण कुमार की मौत मेरे लिए बहुत बड़ी निजी क्षति है। कोलकाता में आयोजित इंटरनेशनल-एंटी-इम्प्रेलिज्म फोरम के आयोजन में मैं अरुण की राजनीतिक समझ और काम करने की शैली से उनका मुरीद हो गया था। मेरे लिए अरुण कुमार युवा ही थे। अरुण की तरह की प्रतिभा अब विलुप्त हो रही है।
प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ रज़ी अहमद ने कहा कि मेरे साथ उनका जवारी का रिश्ता था। वे मेरे साथ कभी कड़ी बोली में बात नहीं करते थे। उनके जाने के बाद मुझे मालूम चला कि मेरे आदर्श शिक्षक रहे रामप्रताप सिंह ही उनके ससुर थे। वे दूसरों के लिए संघर्ष करने वाले विरल प्रतिभा के इंसान थे। वे अंतरराष्ट्रीय जानकारी रखने वाले प्रगतिशील चेतना के ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने पद और पैसे के लिए पत्रकारिता नहीं की। वे लगातार नए प्रयोग करते रहते थे और नए-नए प्रयोगों से दुनिया को बेहतर करने का रास्ता ढूंढ निकालना चाहते थे। मुझे लगता है कि अगर उनकी जिंदगी में कैंसर का हमला नहीं होता तो वे संसदीय-राजनीति में सक्रिय होते और यहाँ भी उन्हें सफलता हासिल होती। राजनीतिक क्षेत्र में अरुण कुमार जैसे लोग आते तो राजनीति का बेहतर ही होता। लेकिन मुझे अफ़सोस है कि चुनावी राजनीति में हिस्सेदारी का उनका स्वप्न अधूरा रह गया।
एटक के प्रदेश अध्यक्ष गजनफर नवाब ने कहा कि पत्रकारिता तो बहुत लोग करते हैं लेकिन अरुण जी ने मीडिया के भीतर जिस तरह का ट्रेड यूनियन संघर्ष खड़ा किया और लगातार गरीबों के हक़ में खुद को खड़ा रखा, इस विशिष्टता की वजह से अरुण कुमार याद किये जायेंगे। टाइम्स कर्मियों के संघर्ष में एटक अपनी एकजुटता प्रकट करता है।
एसयूसीआई के राज्य परिषद सदस्य अरुण सिंह ने मुजफ्फरपुर में टाइम्स पत्रकार के रूप में और कोलकाता में आयोजित इंटरनेशनल-एंटी-एम्प्रीलिस्ट कॉन्फ्रेंस में अरुण कुमार की भूमिका की चर्चा की। भाकपा (माले )नेता अरविन्द सिन्हा ने अरुण कुमार को बहुआयामी व्यक्तित्व का इंसान बताया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के साथ-साथ मानवाधिकार आंदोलन, श्रमिक संघर्ष, छात्र आंदोलनों और मीडिया के अंदर ट्रेड- यूनियन संघर्ष की तमाम भूमिकाओं में सक्रियता की वजह से अरुण कुमार अपने ही अनेक रूपों से खुद को इस तरह दबाते रहे कि उनके व्यक्तित्व का असली रूप प्रकट नहीं हो पाया। अलग-अलग भूमिकाओं के बावजूद तटस्थ और जांबाज छवि वाले अरुण कुमार की समीक्षा उनके जीते जी नहीं हो पाई, यह दुखद है।
सभा के अध्यक्ष डॉ खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि यदि मेरा वश चलता तो मैं इस समाचार को स्वीकार नहीं करता कि अरुण कुमार नहीं रहे। अरुण कुमार से मेरा पारिवारिक रिश्ता था। अरुण कुमार एक सफल पत्रकार और बेहतर इंसान थे। अभी उनके नेतृत्व में कई जंग जीते जाने थे। वे जिस जंग को छोड़ कर गए हैं, उसे मुकाम हासिल करवाना हम सबके लिए चुनौती है। बिहार राज्य अभियंता संघ के प्रदेश सचिव श्यामनंदन प्रसाद ने बताया कि अरुण जी ने हमारे एक ईमानदार इंजीनियर को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने में बहुत बड़ी सहायता की। अरुण जी ने उनके पक्ष में कई बार खबर लिखा, दूसरे अख़बारों को सहयोग के लिए प्रेरित किया, विधानसभा में सवाल करवाया। हमारे इंजीनियर साथी को दो बार बर्खास्त किया गया लेकिन अरुण जी ने हमारी लड़ाई को अपनी लड़ाई मानकर हमारे ईमानदार साथी की रक्षा की।
जानेमाने पर्यावरणविद डॉ गोपाल- कृष्ण ने अरुण कुमार के सन्दर्भ में बताया कि विकिलीक्स का खुलासा करणवाले जूलियस असांज के वकील ने जब दिल्ली की एक लाइब्रेरी में आनद स्वरूप वर्मा,प्रशांत भूषण और कुछ चंद पत्रकारों से अमरीकी साम्राज्यवाद के खतरों और पूंजीवादी मीडिया के रिश्ते पर विमर्श किया था तो अरुण कुमार भी उस संवाद में शामिल थे। अरुण कुमार ने मीडिया के सन्दर्भ में ऐसी बातें बताई थी, जिससे हम सब नावाकिफ थे। प्रभाष जोशी, प्रफुल्ल विदवई के जाने के बाद अरुण कुमार सोशल-लेफ्ट के ताकतवर पत्रकार थे। रंगकर्मी अनीश अंकुर ने कहा कि अरुण जी बताते थे कि टाइम्स समूह का मालिकाना कितना नृशंस और खूंखार है। मुल्क के सवसे बड़े खूंखार अख़बार समूह से लड़ते हुए जिस तरह अरुण जी निडर रहे, कैंसर से लड़ते हुए भी वे उतने ही निडर और बुलंद दीखते रहे.
जाने माने आकाशवाणी गायक सीताराम जी ने "इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गए मेरे आंसू" और "हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए" गाकर अरुण कुमार को अपनी श्रद्धांजलि दी।
स्मृति सभा में बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के पूर्व अध्यक्ष शिवेंद्र प्रसाद, आईजेयू के राष्ट्रीय सचिव अमरमोहन, पत्रकार इमरान, बिहार विश्विद्यालय में छात्र संघ के नेता रहे ब्रजेश शर्मा और बीहट के युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता राम-कृष्ण ने भी अपने संस्मरण सुनाये। स्मृति सभा में वरिष्ठ पत्रकार आलोक मिश्र, साद, कवि अरुण शाद्वल, पत्रकार फिरोज मंसूरी, कांग्रेस की राष्ट्रिय कार्यसमिति सदस्य विजय कुमार, कॉमरेड परवेज, कॉमरेड साधना, कॉमरेड सूर्यकर जीतेन्द्र, प्रो सुधीर कुमार, डॉ संतोष मौजूद थे।