• भारतीय कंपनियों में यौन उत्पीडऩ ज्यादा

    नई दिल्ली ! तमाम तरह के नियम कानून बनाए जाने के बावजूद कार्यस्थलों पर महिलाओं के उत्पीडऩ को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और इस मामले में भारतीय कंपनियों की हालत बहुराष्ट्रीय कंपनियों से ज्यादा खराब है। उद्योग संगठन फिक्की की ओर से ''फोस्टरिंग सेफ वर्कप्लेसÓ शीर्षक से जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है...

    उत्पीडऩ रोकने के लिए 35 प्रतिशत कंपनियों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं नई दिल्ली !  तमाम तरह के नियम कानून बनाए जाने के बावजूद कार्यस्थलों पर महिलाओं के उत्पीडऩ को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और इस मामले में भारतीय कंपनियों की हालत बहुराष्ट्रीय कंपनियों से ज्यादा खराब है। उद्योग संगठन फिक्की की ओर से ''फोस्टरिंग सेफ वर्कप्लेसÓ शीर्षक से जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है।  इसमें कहा गया है कि कार्यस्थलों में महिलाओ के खिलाफ यौन उत्पीडऩ रोकने के लिए 35 प्रतिशत भारतीय कंपनियों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है जबकि ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या 25 प्रतिशत है। यदि हालात ऐसे ही रहे तो इससे महिलाओं की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है जिससे उनका करियर और जीवन तबाह होने का खतरा है। रिपोर्ट में इस सिलसिले में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 और राष्ट्रीय महिला आयोग के उन आंकडों का हवाला दिया गया है जिसके अनुसार वर्ष 2013 मे जहां इससे जुड़ी कुल 249 शिकायतें दर्ज की गईं वहीं 2014 में यह दोगुनी होकर 526 पर पहुंच गई। अधिनियम के तहत निर्धारित प्रावधानों का उद्देश्य सभी महिला कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना और सुशासन के तरीकों को अपनाना है। यह नियोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह महिला कर्मियों को एक सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराए। आंतरिक शिकायत समिति का गठन, यौन उत्पीडऩ की दंडात्मक परिणामों को कार्यस्थल पर प्रदर्शित करना, आईसीसी के सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम और कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम की कंपनियों/ नियोक्ता द्वारा व्यवस्था करना अधिनियम के तहत अनिवार्य बनाया गया है। लेकिन सर्वेक्षण नतीजे दिखाते हैं कि इस मामले में अब भी कंपनियों में अनिश्चितता, सावधानी और आत्मनिरीक्षण का वातावरण है। सर्वेक्षण दिखाता है कि 31 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अधिनियम (जो शिकायतों के समाधान के लिए आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जाना अनिवार्य बनाता है) के लागू किए जाने के बाद इसे लागू ही नहीं किया। अनुपालन न करने वालों में 36त्न भारतीय कंपनियों हैं जबकि 25 प्रतिशत बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं के मामले में आंतरिक शिकायत समिति सदस्यों को प्रशिक्षण दिया जाना अब भी बाकी है। इस संबंध में भारतीय कंपनियों का प्रतिशत 47 प्रतिशत है। दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत है। सर्वेक्षण में शामिल 35त्न उत्तरदाताओं को इस बात की जानकारी नहीं थी कि आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के संबंध में कानून का अनुपालन नहीं करने पर कैसी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। हैरानी की बात है कि इस मामले में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ज्यादा अनभिज्ञ पाया गया, करीब 38 प्रतिशत कंपनियों को इस बात की जानकारी नहीं थी। 44 प्रतिशत उत्तरदाता संगठनों ने अपने परिसर में यौन उत्पीडऩ की स्थिति में दंडात्मक कार्रवाई से जुड़े प्रावधानों और चेतावनी को प्रदर्शित नहीं किया था। एसएमई सेक्टर में यह आंकड़ा 71 प्रतिशत पाया गया, जहां कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ के मामलों में कार्रवाई की चेतावनी को दर्शाया नहीं गया था। रिपोर्ट मे हालात बदलने के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं जिसके तहत संगठनों को अपने कर्मियों को उचित प्रशिक्षण पर ध्यान देन। इन मामलों में शून्य सहिष्णुता नीति का पालन करने और साथ ही साथ इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करने और ऐसी शिकायतों पर तुरंत और निष्पक्ष जांच पर बल दिया गया है।


     

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