• गंगा का भी हो 'प्रोटोकॉल' : राजेंद्र सिंह

    भोपाल। स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह गंगा नदी की दुर्दशा को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि जब गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया जा चुका है...

    भोपाल। स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह गंगा नदी की दुर्दशा को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि जब गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया जा चुका है तो उसका 'प्रोटोकॉल' क्यों नहीं है। उनकी मांग है कि राष्ट्रीय ध्वज की ही तरह गंगा का भी प्रोटोकॉल हो, ताकि उसका अपमान करने वाले को सजा दी जा सके। 

    मध्य प्रदेश की राजधानी में मंगलवार को आयोजित एक कार्यशाला में हिस्सा लेने आए राजेंद्र सिंह ने आईएएनएस से कहा कि गंगा को वर्ष 2008 में राष्ट्रीय नदी घोषित किया जा चुका है, मगर उसका कोई प्रोटोकॉल नहीं है। यही कारण है कि नदी की अविरलता, स्वच्छता और निर्मलता पर असर डालने वाले सारे काम किए जा रहे हैं, मगर किसी पर कार्रवाई नहीं होती। 

    उन्होंने कहा कि गंगा को बचाना है तो उसके लिए प्रोटोकॉल बनाना होगा, जैसा कि राष्ट्रध्वज का है। राष्ट्रध्वज का अपमान करने पर सजा का प्रावधान है, मगर गंगा का अपमान यानी उससे छेड़छाड़ करने पर कोई सजा नहीं है।'जलपुरुष' ने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में नरेंद्र मोदी द्वारा गंगा के सम्मान को लेकर कही गई बातों का जिक्र किया और कहा कि मोदी को चुनाव तक तो गंगा याद रही, मगर प्रधानमंत्री बनते ही उसे भूल गए और उनके स्वर में भी बदलाव आ गया।  उन्होंने कहा कि उन दिनों नदी की निर्मलता के साथ इसकी अविरलता की बात होती थी, मगर अब सिर्फ निर्मलता पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि इससे कार्पोरेट घरानों को फायदा होगा, उन्हें गंगा को साफ करने का ठेका मिलेगा।


    राजेंद्र सिंह ने आगे कहा कि एक तरफ गंगा को 'मां' कहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ उसके साथ वह सब कुछ हो रहा है, जो कोई भी व्यक्ति अपनी मां के साथ होते नहीं देख सकता। मां बच्चे का मैला तो धोती है मगर गंगा को मैला ढोने वाली मालगाड़ी बना दिया है। 

    नदियों को लेकर डॉ. सिंह ने एक तरफ केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने लगभग पांच वर्ष पूर्व राज्य की नदियों को लेकर उनसे एक डाफ्ट बनवाया था, जिसे 'नदी नीति' कहा गया, मगर उस पर अमल नहीं हुआ। आलम यह है कि शिवराज अब उस मसले पर उनसे बात तक करना नहीं चाहते। डॉ. सिंह ने मध्य प्रदेश में पड़े सूखे को मानव निर्मित 'अकाल' करार दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से सकारात्मक और सहयोगात्मक पहल की जाए तो विषम परिस्थिति से निपटा जा सकता है, इसके लिए नीयत साफ होना जरूरी है। राजस्थान का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां मध्य प्रदेश की तुलना में एक चौथाई बारिश होती है, फिर भी वहां हालात यहां जैसे नहीं है, क्योंकि वहां पानी बचाने के लिए काम किया गया है। जब तक जमीन में पानी भरने की कोशिश नहीं होगी, तब तक इस समस्या से छुटकारा संभव नहीं है।  राजेंद्र सिंह ने आगे कहा, "सिर्फ बातों से काम नहीं चलने वाला। राज्य के मुख्यमंत्री बातें तो अच्छी करते हैं, मन मोह लेते हैं, मगर काम नहीं करते। बात के साथ अगर काम भी अच्छा हो, तो लोगों का विश्वास बढ़ता है। उन्हें यह बात समझनी होगी।" 

    एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर नदियों को बचाना है, तो उनके तीन अधिकार देने होंगे। नदियों की जमीन पर अतिक्रमण व निर्माण न हो, प्रवाह बनाए रखने के उपाय हों और स्वच्छता रहे।

अपनी राय दें