• नशा तस्करों पर लगाम जरुरी

    छत्तीसगढ़ में नशा एक बड़ी सामाजिक बुराई के रुप में सामने आ रहा है। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में हर साल शराब की खपत में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है।...

    छत्तीसगढ़ में नशा एक बड़ी सामाजिक बुराई के रुप में सामने आ रहा है। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में हर साल शराब की खपत में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि सरकार यह कोशिश करती हुई दिखाई देती है कि वह शराब की बिक्री को नियंत्रित करना चाहती है। राज्य में एक बड़ा क्षेत्र आदिवासियों की बहुलता वाला है और इस समाज में परम्परा से घरों में शराब बनाई जाती रही है। इस परम्परा के नाम पर सरकार शराब बनाने से रोकने या पूर्ण शराबबंदी लागू करने से पीछे हटती रही हैं, लेकिन हालत यह है कि बढ़ती नशाखोरी के कारण परिवारों में बिखराव बढ़ रहा है जो गंभीर सामाजिक संकट का सबब बन सकता है। पुलिस का मानना है कि आधे अपराधों के लिए नशा ही जिम्मेदार है। सरकार ने नशा करने वालों को हतोत्साहित करने के लिए शराब महंगी करती जा रही है लेकिन इससे खपत में वैसी कमी नहीं देखी जा रही है, जिसकी संभावना थी। आदिवासी इलाकों में घरों में बनाई जाने वाली शराब की जगह सस्ती अंग्रेजी शराब ने ले ली है। पिछले कुछ समय से गांजे का अवैध व्यापार भी बढ़ गया है। अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही गांजे की बिक्री प्रतिबंधित है। पहले गांजे की दुकानें चलती थीं और इन दुकानों की नीलामी से सरकार राजस्व अर्जित करती थी। अब पूरी तरह प्रतिबंधित है और नारकोटिक्स एक्ट के अन्तर्गत गांजे की बिक्री या तस्करी करतेे पकड़े जाने पर कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद राज्य में बड़े पैमाने पर गांजे की तस्करी हो रही है। यह गांजा मध्यप्रदेश, ओडिशा और झारखंड के रास्ते छत्तीसगढ़ में पहुंच रहा है। पिछले कुछ महीनों के भीतर राज्य में गांजे की तस्करी के जितने मामले पकड़े गए हैं उनसे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांजे की तस्करी राज्य में कितने बड़े पैमाने पर हो रही है। कुछ पकड़े जा रहे हैं तो कुछ बच निकलने में सफल भी हो जा रहे हैं। गांव-गांव में गांजा सहजता से पहुंच रहा है और नशे के आदी हो चुके लोगों का जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। नशाखोरी का राज्य के आर्थिक विकास पर कितना असर पड़ रहा है, इस पर एक अध्ययनकर्ता का कहना है कि अगर यह नशाखोरी इसी गति से बढ़ती गई तो राज्य संभावनाओं के बावजूद विकास की दृष्टि देश का अव्वल राज्य बनने से पीछे छूट सकता है। सरकार को इस पर विचार करना होगा कि नशाखोरी को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता तो इसे धीरे-धीरे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ताकि कालान्तर में पूर्ण नशाबंदी के बारे में सोचा जा सके। इस दिशा में कुछ प्रयास शुरू भी हुए पर इन्हें अभी और प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।

अपनी राय दें