• और अब सुनपेड़

    दो साल का वैभव और 10 महीने की दिव्या, इन्हें नहींपता कि मोबाइल फोन क्या होता है, दलित और सवर्ण क्या होता है, इन्हें तो अभी दुनिया कैसी है, यह जानना भी बाकी था, लेकिन वे इस दुनिया से ही चले गए। इन मासूमों को आधी रात को जलाकर मार डाला गया...

    दो साल का वैभव और 10 महीने की दिव्या, इन्हें नहींपता कि मोबाइल फोन क्या होता है, दलित और सवर्ण क्या होता है, इन्हें तो अभी दुनिया कैसी है, यह जानना भी बाकी था, लेकिन वे इस दुनिया से ही चले गए। इन मासूमों को आधी रात को जलाकर मार डाला गया और अब इस मौत के बदले उनके मां-बाप को 10 लाख रुपए का मुआवजा मिलना तय हुआ है। जिगर के टुकड़ों की कीमत 10 लाख रुपए। दलितों और सवर्णों के खूनी झगड़े के कारण हरियाणा एक बार फिर सुर्खियों में बना हुआ है। दिल्ली के निकट फरीदाबाद के सुनपेड़ गांव में 60 प्रतिशत आबादी सवर्णों की है और 20 प्रतिशत दलित लोग रहते हैं। विगत वर्ष कुछ सवर्ण व दलित परिवारों के लड़कों के बीच मोबाइल फोन के कारण झगड़ा हुआ और उसमें तीन सवर्ण लड़कों की हत्या हो गई। 11 दलित गिरफ्तार हुए और मामला अजाजजा आयोग तक गया। इस घटना के बाद से ही कुछ सवर्ण लड़के दलित परिवारों को परेशान कर रहे थे, जिसके कारण वे गांव छोड़ कर चले गए थे। मृत बच्चों के पिता, पीडि़त जितेंद्र का परिवार भी इसमें शामिल था। खबर है कि फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर द्वारा सुरक्षा का आश्वासन मिलने के बाद इस साल जनवरी में ही जितेंद्र परिवार समेत वापस गांव लौट आया था। कहा गया था कि आधा दर्जन हथियारबंद जवान, एक पुलिस जिप्सी और दो बाइक सवार जवान उसके घर के आसपास तैनात रहेंगे ताकि उसे सुरक्षा मिल सके। लेकिन मंगलवार सुबह तीन बजे कुछ लोगों ने जितेंद्र के घर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। गांव वालों को उनकी मदद की गुहार सुनाई नहींदी क्योंकि दुर्गा पूजा का जगराता चल रहा था। एक बच्ची की नजर जलते घर पर पड़ी और उसने गांववालों को सूचित किया। जितेंद्र और उसकी पत्नी को जली अवस्था मेंंकिसी तरह निकाला जा सका, लेकिन झुलसे बच्चे नहींबच पाए। सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात पुलिसवाले घटना के वक्त कहां थे, यह जांच का विषय है। इस घटना के बाद राजनीतिक दलों को आरोप-प्रत्यारोप करने का एक मुद्दा और मिल गया है। अब शायद कुछ दिन तक सांप्रदायिकता की बहस स्थगित हो जाए और उसकी जगह हिंदुस्तान में जातिगत भेदभाव के मुद्दे पर बहस चलती रहे। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के प्रशासन पर सवाल उठने शुरु हो गए हैं। उन्होंने 10 लाख रुपए मुआवजे के ऐलान के साथ आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। केेंद्र से गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री से रिपोर्ट मांगी है। पूरा गांव छावनी में तब्दील हो गया है। आठ पुलिसवाले निलंबित हो गए हैं। राहुल गांधी, मायावती सबके दर्शन सुनपेड़ के लोगों को होंगे, माकपा नेता वृंदा करात पीडि़त परिवार से भेंट कर चुकी हैं। उधर शिवसैनिकों की गुंडागर्दी पर भाजपा द्वारा नाराजगी प्रकट करने के जवाब में शिवसेना के प्रवक्ता संजय राऊत ने इस घटना पर सहिष्णुता और सामाजिक न्याय का सवाल भाजपा के सामने उठाया है। राजनैतिक दल इस मुद्दे पर कुछ दिनों तक सत्तारूढ़ दल को घेरने का प्रयास करेंगे। समाचार चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक बहस चलती रहेगी। इसके बाद कोई दूसरा मुद्दा बहस का खेल जारी रखने के लिए मिल जाएगा और पुराने विवादों पर कोई बात नहींहोगी। दादरी कांड, दिल्ली में नाबालिगों से बलात्कार, साहित्यकारों का प्रतिरोध और सरकार की प्रतिक्रिया, इन सब पर केवल जुबानी तीर चले, समाधान तक पहुंचने की कोई ईमानदार कोशिश नहींहुई। यही स्थिति सुनपेड़ कांड की होगी। इस देश में पहली बार दलितों पर इस तरह का अत्याचार नहींहुआ है। सदियों से उन्हें अमानवीय प्रताडऩाएं दी जा रही हैं। कुछ दूरदर्शी नेताओं के कारण स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार आया, लेकिन समाज की सोच में व्यापक बदलाव लाने का लक्ष्य अभी अधूरा ही है। राजनैतिक दल इन मुद्दों को तात्कालिक लाभ के लिए भुनाना छोड़ें और समाज को सचमुच भेदभाव की जकडऩ से आजादी दिलाने के लिए प्रयास करेंगे तो तस्वीर बदलने की उम्मीद की जा सकती है।

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