• रोजगार के साथ सुरक्षा भी

    प्रशासन में कुछ नया करने की सोच ही एक प्रशासनिक अधिकारी को सफल बनाती है। सरगुजा जिले की कलेक्टर ऋतु सेन प्रशासन में अपने नए प्रयोगों से लोगों खासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करती रही है।...

    प्रशासन में कुछ नया करने की सोच ही एक प्रशासनिक अधिकारी को सफल बनाती है। सरगुजा जिले की कलेक्टर ऋतु सेन प्रशासन में अपने नए प्रयोगों से लोगों खासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करती रही है। स्वच्छता के क्षेत्र में अंबिकापुर नगर निगम में उनके प्रयोग को काफी सराहना मिली है। यहां महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं सफाई का काम ही नहीं देख रही है बल्कि घरों से निकलने वाले कचरे से कमाई भी कर रही हैं। शहरी विकास मंत्रालय ने हाल में जिन 465 सबसे अस्वच्छ शहरों की जो सूची जारी की है, उनमें अंबिकापुर 456 नम्बर पर है। छत्तीसगढ़ के शहरों में अंबिकापुर सबसे अस्वच्छ पाया गया है। शायद अब वहां की तस्वीर बदले। ऋतु सेन जब कोरिया जिले की कलेक्टर थीं तब भी उन्होंने महिलाओं को आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयोग किया था। वहां महिलाओं को किराना दुकान खोलने के लिए सहायता उपलब्ध कराई गई थी। गांव-गांव में महिलाएं आज भी किराना दुकान चला रही हंै। अब सरगुजा में वे एक और नया प्रयोग करने जा रही है। यह प्रयोग हाथियों से जानमाल की सुरक्षा का काम हाथ में लेने का है, जिसके लिए रोजगार गारंटी योजना की राशि का उपयोग किया जाएगा। अनाज के भण्डारण के लिए सीमेंट की पक्की कोठियां बनाई जाएगी और लोगों को हल्दी, अदरख, मिर्ची और सूरजमुखी की खेती के साथ मधुमक्खी पालन का काम शुरू कराया जाएगा। मधुमक्खियों के इलाके में हाथी नहीं आते। मिर्ची, अदरक और हल्दी के पौधों से भी हाथी दूर ही रहते हैं। इस तरह ग्रामीणों को इन कार्यों में रोजगार तो मिलेगा ही हाथियों से सुरक्षा भी हो सकेगी। यह काम वन विभाग के अधीन होगा। प्रयोग सफल रहा तो यह उन जिलों के लिए उपयोगी हो सकता है जिन जिलों में हाथियों की समस्या है। सरगुजा और बिलासपुर संभाग के सभी 10 जिले हाथियों के उत्पात से प्रभावित है। अब तक ये हाथी कई लोगों की जान ले चुके हैं और संपत्ति की भी भारी हानि पहुंचाई है। सरकार की एलीफेन्ट रिजर्व बनाने की घोषणा के बाद यह जरुरी हो गया है कि सहअस्तित्व के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे नागरिक और हाथी दोनों अपनी-अपनी सीमाओं में सुरक्षित रह सकें। रोजगार गारंटी योजना के अन्तर्गत नए प्रयोग में यही कोशिश शुरू की जा रही है। इससे पहले हाथियों को जंगलों से बाहर निकलने  से रोकने के लिए चारे-पानी के विकास पर जोर दिया गया था। जंगलों में बांस के साथ पीपल, बरगद के पौधे रोपे गए थे। वन्य प्राणी विशेषज्ञों का मानना है कि जंगलों में हाथियों के चारे-पानी का इंतजाम हो जाए तो वे आबादी का रुख नहीं करेंगे। हाथियों और लोगों के बीच संघर्ष को रोकने का यही प्रभावी उपाय है। हालांकि लोग मानते हैं कि हाथियों को आबाद क्षेत्रों में घुसने और वहां उपलब्ध अनाज और दूसरी चीजों की आदत हो गई है, उन्हें रोकना आसान नहीं है। नया प्रयोग इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।

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