सम्मान वापसी पाखंड है राष्ट्रवादी साहित्यकार
नयी दिल्ली ! सरकार समर्थक साहित्यकारों ने देश के तैंतीस लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाए जाने की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि इस घटना से वामपंथी और कांग्रेसी लेखकों का पाखंड उजागर हुआ है।
राजधानी के हिन्दी भवन में आज शाम यहां “सम्मान वापसी” पाखंड विषय पर आयोजित संगोष्ठी में इन साहित्यकारों ने गत दिनों साहित्य अकादमी एवं राज्यों की अकादमी के पुरस्कार लौटाने की आलोचना करते हुए यह टिप्पणी की। संगोष्ठी में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान , (आगरा) के उपाध्यक्ष एवं प्रेमचंद साहित्य के विशेषज्ञ डा़ कमल किशोर गोयनका, प्रसिद्ध लेखक नरेंद्र कोहली , वरिष्ठ नाटककार दया प्रकाश सिन्हा, वयोवृद्ध पत्रकार अच्युतानंद , वरिष्ठ पत्रकार राहुलदेव, प्रसिद्ध कवि बलदेव वंशी तथा परमानन्द पांचाल ने भाग लिया।
वक्ताओं ने कहा कि पुरस्कार लौटाने वाले लेखक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले जनादेश को पचा नहीं पा रहे हैं क्योंकि वे कांग्रेस के जमाने में सत्ता सुख प्राप्त कर रहे थे। इसलिए उन्होंने न केवल साहित्य अकादमी बल्कि प्रधानमंत्री की छवि खराब करने के लिए पुरस्कार लौटाने का सिलसिला शुरू किया जबकि इनमें से किसी ने न तो सिख दंगों या मुजफ्फरनगर के दंगों या किसी अन्य घटना पर कभी कोई पुरस्कार नहीं लौटाया था।
वक्ताओं का कहना था कि ये लेखक साहित्य अकादमी की स्वायत्तता को देखना नहीं चाहते हैं और अकादमी के वर्तमान नेतृत्व को अस्थिर करना चाहते हैं। इसलिए उनके इस कदम से उनका पाखंड उजागर हुआ है। हिन्दी लेखक जनता से भी कटे हुए हैं और उन्होंने कभी भी पाठकों की चिन्ता नहीं की। उन्हें सम्मान कांग्रेस के शासनकाल में मिले थे, और यह सम्मान वैसे भी सरकार नहीं देती है। उन्होंने पुरस्कार लौटाकर अकादमी का और उनके निर्णायकों का अपमान किया है।
इन राष्ट्रवादी लेखकों ने साहित्य आकदमी की आपात बैठक के दिन 23 अक्टूबर को पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों के विरोध में प्रदर्शन भी किया था।