• प्राकृतिक जलस्त्रोतों को बचाना होगा

    कभी कुएं ही पीने के पानी के सुलभ स्त्रोत थे। आज गांव-गांव में नलकूप हैं। तीन-तीन सौ फीट से अधिक गहरे ये नलकूप आज अपरिहार्य हो गए हैं क्योंकि कुएं नहीं बचे। जिस तेजी से भूजल स्तर में गिरावट आ रही है, उससे इस बात की आशंका बढ़ती जा रही है कि नलकूपों का पानी भी बचेगा या नहीं। सहज उपलब्ध किसी चीज की कीमत न समझना आम मानवीय स्वभाव है।...

    कभी कुएं ही पीने के पानी के सुलभ स्त्रोत थे। आज गांव-गांव में नलकूप हैं। तीन-तीन सौ फीट से अधिक गहरे ये नलकूप आज अपरिहार्य हो गए हैं क्योंकि कुएं नहीं बचे। जिस तेजी से भूजल स्तर में गिरावट आ रही है, उससे इस बात की आशंका बढ़ती जा रही है कि नलकूपों का पानी भी बचेगा या नहीं। सहज उपलब्ध किसी चीज की कीमत न समझना आम मानवीय स्वभाव है। हम पानी का महत्व समझ पाते तो शायद आज ये स्थिति नहीं होती। पूरे देश में आसन्न जलसंकट की स्थिति को देखते हुए जल क्रांति अभियान की शुरूआत की गई है। इस अभियान में जल संरक्षण और जल के बेहतर उपयोग के लिए लोगों को प्रेरित किया जाएगा। इस जल क्रांति अभियान के लिए छत्तीसगढ़ के सभी 27 जिलों से ऐसे दो-दो गांवों को चुना गया है, जहां पानी की सबसे अधिक कमी है। पानी की कमी का अनुमान लगाना है तो हम अपने आसपास के जलाशयों, नदी-नालों पर नजरें दौड़ा सकते हैं। बिलासपुर शहर से होकर गुजरने वाली अरपा नदी में बारहों माह पानी की अविरल धारा बहती रहती थी। देखते ही देखते अरपा सूख गई। इसे बचाने की भी कोशिश नहीं हुई। शायद इसलिए कि इसके सूख जाने के दूरगामी दुष्प्रभावों का हमारे नीति निर्माताओं को कोई मान ही नहीं रहा। सबसे पहले कुओं को बचाना चाहिए था। यदि हम कुओं को बचाने निकलते तो इस बात का पता चलता कि इनका अस्तित्व नदी-नालों व तालाबों पर निर्भर है और शायद तब हम इनका महत्व समझ पाते। जलक्रांति अभियान प्राकृतिक जलस्त्रोतों को ही बचाने का अभियान है। पीने का पानी अधिसंख्य आबादी को भूजल के रुप में ही प्राप्त होता है। भूजल स्तर में जिस तेजी से गिरावट आ रही है, वह एक बड़ी चिंता का विषय है। राष्ट्रीय जलग्रहण मिशन जैसे कार्यक्रमों के जरिए प्राकृतिक जलस्त्रोतों को पुनजीर्वित करने की कोशिशों को और व्यापक बनाए जाने की आवश्यकता है। जल संरक्षण के कार्यक्रमों से गैरसरकारी संगठनों को जोड़कर गांव-गांव में ऐसी कोशिशें शुरु की जा सकती हैं। उन गतिविधियों के प्रभावों की देखना होगा, जिनके जरिए जल संरक्षण की कल्पना की गई थी। इन गतिविधियों पर एक बड़ी धनराशि खर्च की जा रही हैं। वर्षा जल को बेकार बह जाने से रोकने के लिए वृक्षारोपण के कार्यक्रम भी हाथ में लिए गए थे। धरती पर पानी बचाने का अर्थ जीवन बचाने से है और कम से कम इस तरह के कार्य में ईमानदारी की उम्मीद तो करनी ही चाहिए, लेकिन ये कार्य भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं रह पाए। कागजों में बांध, एनीकट बन गए और वृक्षारोपण भी कर दिया गया। अब कागज पर पानी का संरक्षण कैसे हो? एक-दो गांव में जलक्रांति अभियान चलाकर जिस बड़े लक्ष्य की ओर जाने की कल्पना की गई है उसके लिए ऐसे ईमानदार प्रयासों की जरुरत होगी जिनसे निकले नतीजे प्रेरणा बन सकें और एक गांव से दूसरे गांव जुड़ते चले जाएं।

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