• रेल सुविधाओं में सांसदों की भूमिका

    रेल सेवाओं की स्थिति और विस्तार में सांसदों की भूमिका बढ़ गई है। ये सांसद संसद में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी बात तो रख ही सकते हैं, रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने सांसदों को क्षेत्रीय स्तर पर भी सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए आमंत्रित किया है। रेल अधिकारियों से कहा गया है...

    रेल सेवाओं की स्थिति और विस्तार में सांसदों की भूमिका बढ़ गई है। ये सांसद संसद में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी बात तो रख ही सकते हैं, रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने सांसदों को क्षेत्रीय स्तर पर भी सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए आमंत्रित किया है। रेल अधिकारियों से कहा गया है कि वे सांसदों को आमंत्रित कर रेल सुविधाओं की स्थिति और विस्तार की संभावनाओं पर उनकी राय जानने की कोशिश करें। बिलासपुर रेलवे जोन में इस तरह की पहली बैठक में सांसद लखनलाल साहू ने मुंगेली-राजनांदगांव रेल परियोजना की याद दिलाते हुए अधिकारियों से इसे आगे बढ़ाने को कहा। यह प्रस्ताव वर्षों पुराना है, जिस पर सर्वे का काम भी शुरू हुआ था, लेकिन उससे आगे काम शुरू नहीं हो सका। इसे एक बार फिर उठाया गया है और कहा गया है कि इस परियोजना से राज्य का एक बड़ा हिस्सा रेल सुविधाओं से जुड़ जाएगा। सांसद नंदकुमार साय ने बस्तर पर खास फोकस करने की बात कही। लोकसभा सांसदों ने अपने-अपने क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया। सरगुजा के सांसद कमलभान सिंह ने बहुप्रतीक्षित अंबिकापुर-बरवाडीह रेल परिेयोजना को रेलवे के अगले बजट में शामिल कराने के लिए अधिकारियों से प्रक्रिया पूरी करने की अपेक्षा की। रेल जोन का कार्य क्षेत्र छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्यप्रदेश तक फैला हुआ है। इन तीनों राज्यों से 8 लोकसभा सदस्यों के साथ तीन राज्य सभा सदस्यों ने इस बैठक में हिस्सा लिया। रेल मंत्री ने सांसदों को जिन उद्देश्यों की खातिर रेलवे के कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए आमंत्रित किया है वे तभी सार्थक होंगे जब सांसदों के सुझावों व शिकायतों पर गौर करते हुए उन पर अमल भी किया जाए। बिलासपुर जोन में छत्तीसगढ़ रेल सुविधाओं की दृष्टि से काफी पीछे है। यहां रेल सुविधाओं का विस्तार खनिज साधनों के परिवहन की दृष्टि से ही हुआ। आर्थिक विकास की दूसरी गतिविधियों पर केन्द्रित विकास को अधिक महत्व नहीं मिल सका। इसकी एक बड़ी बजट यह है कि क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने इस बारे में अधिक कुछ किया भी नहीं। छत्तीसगढ़ को झारखंड से और इन दोनों राज्यों को देश के अन्य हिस्से से जोडऩे वाली अंबिकापुर-बरवाडीह रेल परियोजना की मांग 50 साल से होती आ रही है। ऐतिहासिक आंदोलन तक हुए। इस परियोजना से इस पूरे पिछड़े इलाके में आर्थिक विकास का नया सवेरा हो सकता है। देश का एक बड़ा आदिवासी इलाका रेल सुविधाओं से जुड़ जाएगा। इस परियोजना का सर्वे का काम इस समय चल रहा है, हालाकि इसकी प्रगति की कोई रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। कुछ महीने बाद जब रेल मंत्री अपना बजट प्रस्तुत करेंगे दोनों ही राज्यों के लोगों को उम्मीद होगी कि इस परियोजना के निर्माण की वे घोषणा करें इस रेल बजट से पहले संसद का शीत सत्र होगा। सांसदों को अपने सुझावों व मांगों पर रेलमंत्री से यह आश्वासन लेने का प्रयास करना चाहिए कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कदम उठाएंगे। पीपीपी पर आधारित छत्तीसगढ़ के रेल कारिडोर की काफी चर्चा रही है। कुछ अन्य परियोजनाएं भी है जो वन भूमि की बाधा के कारण लटकी हुई है। इस पर रेल मंत्री का ध्यान सांसदों को आकृष्ट कराते हुए बाधाओं को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

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