• दिल उदास कर गए सहवाग!

    नई दिल्ली ! दिल उदास है, कुछ दिन पहले ही जहीर ने क्रिकेट को अलविदा कहा था तो क्रिकेट में मनोरंजन का दूसरा नाम वीरेंद्र सहवाग ने भी आज बाय-बाय टाटा करते हुए देश के खेल प्रेमियों को दशहरे की पूर्व संध्या पर उदास और मायूस कर दिया।...

    नई दिल्ली !  दिल उदास है, कुछ दिन पहले ही जहीर ने क्रिकेट को अलविदा कहा था तो क्रिकेट में मनोरंजन का दूसरा नाम वीरेंद्र सहवाग ने भी आज बाय-बाय टाटा करते हुए देश के खेल प्रेमियों को दशहरे की पूर्व संध्या पर उदास और मायूस कर दिया।

    वीरू ने मार्क टेलर के आस्ट्रेलिया के खिलाफ बीती सदी के अंत में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पहला पग रखते हुए ही वह धमाल मचाया कि फिर मुड़ कर भी नहीं देखा।

    सच तो यह कि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को सचिन के बाद आनंद के अनगिनत लम्हे देने वाला यह शख्स दादा-दादी नाना-नानी की कहानियों में बरसों तक चमक के साथ सुनाया जाता रहेगा। कोई बताए कि सचिन हों या विवियन रिचर्डस, सहवाग के अलावा कौन है दूसरा जिसने शतक, दोहरा शतक और तिहरा शतक छक्के के साथ पूरा किया हो। ठीक है कि उनके स्ट्रोक्स किताबी नहीं स्वनिर्मित देसी जरूर थे मगर क्या तरन्नुम था उनमें कि याद करके ही आंखे तर हो जाती हैं।

    आज के प्रजन्म को देखिए कि टीम इंडिया में यदि कोई कमी है तो वह उस विस्फोटक अंदाज की ही जो नजफगढ़ के राजकुमार का वैशिष्टय था। हमेशा स्वयं को सचिन की परछाई कहने वाले वीरू ने विदेशी धरती पर समान अधिकार से श्रेष्ठता पुजवाई। खास तौर से इंग्लैड, पाताल देश यानी आस्ट्रेलिया और विपरीत परिस्थितियों वाले ही न्यूजीलैंड में इस धुरंधर के जलवे का क्या पूछना।

    सहवाग के एक तरह से मेंटर सौरभ गांगुली ने, जिनको श्रेय जाता है धोनी को एक महान टीम बना कर सौंपने का, वीरू की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें सलामी बल्लेबाज की भूमिका में पहली बार खिलाने का जोखिम मोल लिया। उनका यह दांव कितना अचूक सिद्ध हुआ, यह भी भला बताने की जरूरत है?


    सचिन रहे हों या बाबू मोशाय (गांगुली) जब उनका बल्ला इन दोनों के साथ पूरे वेग से मुखर हुआ, बल्लेबाजी संपूर्णता में दिखी और गदगद दर्शकों का झूमना वाकई वह अनुभव रहा जिसे महसूस ही किया जा सकता है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास।

    मैं इस अवसर पर कोई विवादित बात नहीं करना चाहता, पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि धोनी के टीम इंडिया का नेतृत्व सभांलने के बाद से सहवाग असहज हो चले थे। नतीजन समय पूर्व उन्हें रुखसत भी होना पड़ा।

    लेकिन यह भी सच है कि आंख-हाथ-पैर के संयोजन के सहारे जो आश्रित रहते हैं, एक उम्र के साथ उनके रिफ्लेकशंस ढीले पड़ने से जो हश्र होता है, वही वीरू उस्ताद का हुआ। एक साल का विलंब कर दिया आपने घोषणा करने में। मगर यह भी सच है कि आप अर्से तक याद आते रहोगे वीरू सर!

     

अपनी राय दें