• धर्म बनाम इंसानियत

    मानवता की रक्षा के लिए धर्म की स्थापना हुई और अब धर्म की रक्षा का प्रश्न इतना बड़ा हो गया है कि उसके लिए मानवता छोडऩी पड़े तो कोई हर्ज नहीं। दिल्ली से सटे दादरी इलाके के बिसरा गांव में गौमांस रखने और खाने के बेबुनियाद आरोप के बाद उन्मादी भीड़ ने एक परिवार पर हमला बोलकर एक व्यक्ति की जिस तरह हत्या की, उससे यह लगता है ...

    मानवता की रक्षा के लिए धर्म की स्थापना हुई और अब धर्म की रक्षा का प्रश्न इतना बड़ा हो गया है कि उसके लिए मानवता छोडऩी पड़े तो कोई हर्ज नहीं। दिल्ली से सटे दादरी इलाके के बिसरा गांव में गौमांस रखने और खाने के बेबुनियाद आरोप के बाद उन्मादी भीड़ ने एक परिवार पर हमला बोलकर एक व्यक्ति की जिस तरह हत्या की, उससे यह लगता है कि आदमी के सिर पर अब खून नहीं, धर्म सवार होने लगा है। बिसरा में मेहनत-मजूरी कर जीवनयापन करने वाले मोहम्मद अखलाक पर आरोप लगा कि उसके पास गौमांस है। कुछ दिनों पहले यहींसे एक बछड़ा गायब हुआ था, जिसके बाद यह पूरा किस्सा गढ़ा गया। गांव के मंदिर में कुछ लोगों ने एकत्रित होकर तय किया कि अखलाक के घर धावा बोला जाए। सौ से ज्यादा की भीड़ ने उसे उसके घर से खींचकर निकाला और इतना मारा कि उसके प्राण निकल गए। उसके बेटे को भी पीट-पीट कर गंभीर रूप से घायल किया गया। अखलाक की पत्नी और बेटी असहाय चीखते-चिल्लाते रह गए, लेकिन गौरक्षा के लिए तत्पर भीड़ को जिंदा इंसानों का दर्द दिखाई नहींदिया। यह पूरी घटना किसी फिल्म के दृश्य जैसी लगती है लेकिन अफसोस कि फिल्मों में ऐसे दृश्य असल जीवन की घटनाओं से ही लिए जाते हैं। फिलहाल पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार किया है और स्थिति काबू में बताई जा रही है। लेकिन एक दादरी ही क्या पूरे भारत में ऐसी अधार्मिक स्थितियां बेकाबू हो चुकी हैं। केेंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से हिंदू धर्म बनाम अन्य धर्मों का बवाल लगातार कहींन कहींखड़ा हो रहा है। कहींधार्मिक स्थलों में तोड़-फोड़ की घटनाएं हैं, कहींधर्मांतरण और घरवापसी की कवायद है, कहींआधारहीन बयान और फरमान हैं, कहींअसहिष्णुता के कारण होने वाली हत्याएं हैं तो कहींप्रतिबंधों की राजनीति है। धर्म के ठेकेदार अमूमन दंगों के षड्यंत्र बनाने और करवाने के वक्त ही इतने ताकतवर नजर आते हैं, लेकिन अब तो हर समय स्थिति गंभीर और संशय भरी हो गई है। अखलाक की बेटी ने बताया कि उसके घर फ्रिज में रखा मांस बकरे का था, न कि गाय का। पुलिस ने इस गोश्त को जांच के लिए भेजा है। यहां सवाल यह नहींहै कि अखलाक या कोई अन्य नागरिक गौमांस खाता है या नहीं। सवाल यह है कि इस पर किसी को आपत्ति होने से क्या यह अधिकार मिल जाता है कि वह किसी की हत्या कर दे? कानून को अपने हाथ में ले ले। जिन लोगों की नजर में गौमांस खाने की सजा मौत है, वे किसी इंसान की हत्या को अपराध मानते हैं या नहीं? अगर नहींतो ऐसे लोगों के लिए हमारी सरकार क्या राय रखती है? कानून हाथ में लेकर हत्या करने वाले लोगों को क्या धर्म के रक्षक मानकर बचाया जाता रहेगा, या उन पर कोई कार्रवाई भी होगी? यह साफ नजर आता है कि अफवाह उड़ाकर एक अल्पसंख्यक के घर पर हमला बोलना धर्म की रक्षा के उद्देश्य से नहींकिया गया था, बल्कि इसके पीछे कोई और नापाक मंशा थी। ऐसे कामों को बढ़ावा देने वाले कौन लोग हैं, समाज को उनकी शिनाख्त करनी होगी। धर्म के कुछ रक्षकों ने हाल ही में संगीतकार ए.आर.रहमान पर एक फतवा जारी होने के बाद कहा कि वे घर वापसी करना चाहें तो उनका स्वागत है। मोहम्मद पैगम्बर पर बनी फिल्म में संगीत देने पर फतवा जारी करना जितना अनुचित था, उतना ही अनुचित उन्हें हिंदू धर्म में लौटने के लिए कहना भी था। धर्म की रक्षा कैसे होती है, इसका एक सुंदर उदाहरण पंजाब के संगरूर में पेश आया, जहां गणेश विसर्जन के दौरान दुर्घटनावश डूब रहे लोगों को बचाने के लिए दो सिखों ने अपनी पगड़ी उतारी और डूबते व्यक्तियों को पकडऩे के लिए दी। सिख धर्म में पगड़ी का इस तरह उतारना वर्जित है, लेकिन जब बात इंसान की जिंदगी बचाने की थी तो धर्म की वर्जनाओं को कुछ समय के लिए भुलाया गया। इंसानियत और धर्म की रक्षा ऐसे ही होती है।

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