• कर बोझ बढ़ाना ही हल नहीं

    शहरों की बढ़ती आबादी और उसी अनुपात में हो रहे क्षेत्र विस्तार के साथ साधन-सुविधाएं जुटाने का सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। शहरों को अपनी वित्तीय जरुरतों को पूरा करने के लिए आय के नए स्त्रोत तलाशने पड़ रहे हैं क्योंकि सरकार के पास भी पर्याप्त मदद देने की स्थिति कही है। ...

    शहरों की बढ़ती आबादी और उसी अनुपात में हो रहे क्षेत्र विस्तार के साथ साधन-सुविधाएं जुटाने का सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। शहरों को अपनी वित्तीय जरुरतों को पूरा करने के लिए आय के नए स्त्रोत तलाशने पड़ रहे हैं क्योंकि सरकार के पास भी पर्याप्त मदद देने की स्थिति कही है। संपत्तिकर में 50 प्रतिशत वृद्धि करने का फैसला इन्हीं हालातों में लिया गया है, जिसकी व्यावहारिकता पर बहस छिड़ी हुई है। इस फैसले के लिए कांग्रेस ने सरकार को निशाने पर लेते हुए प्रदेशव्यापी आंदोलन छेडऩे की रुपरेखा तैयार कर ली है। कुछ महीने पहले नगरीय निकायों को संपत्तिकर बढ़ाने की सलाह सरकार की ओर से दी गई थी और नगरीय निकायों ने 20 प्रतिशत तक की वृद्धि की अपने बजट प्रस्तावों में की थी। नगरीय निकायों के लिए संपत्तिकर आय का एक प्रमुख स्त्रोत है। राज्य के बड़े शहरों का वार्षिक बजट एक हजार करोड़ तक पहुंच गया है और राज्य के सभी शहरों के बजट प्रावधानों को जोड़ दिया जाए तो यह राशि इतनी बड़ी हो जाती है कि सरकार का खजाना भी कम पड़ जाए। नगरीय निकायों के स्थापना के बाद से ही इस बात पर जोर दिया जाता रहा है कि वे आय के अपने स्त्रोत विकसित करें ताकि विकास कार्यों में धन की कमी आड़े न आए। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इन निकायों को विकास कार्यों के लिए मिलने वाली वित्तीय सहायता में अच्छी खासी बढ़ोतरी भी हुई पर आय के स्त्रोत बढ़ाने वाले कार्यों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। अब संपत्ति कर बढ़ाने जैसा अलोकप्रिय निर्णय लेने के लिए सरकार बाध्य हैं। रायपुर और बिलासपुर नगर निगम को ही दो हजार करोड़ रूपए चाहिए। इतनी बड़ी राशि अपने स्त्रोतों से जुटाना इन दोनों बड़े नगरीय निकायों के लिए जब संभव नहीं है तो अनुमान लगाया जा सकता है कि छोटे नगरीय निकायों में क्या स्थिति होगी। नगर निकायों के पास संसाधन की कमी नहीं हैं, लेकिन उनका दोहन आय की दृष्टि से कैसे किया जाए, इसकी योजना ही नहीं बन पाई। संपत्तिकर में 80 प्रतिशत की वृद्धि करके सभी आय वर्ग के लोगों पर बोझ डालना उचित नहीं होगा। इसमें सक्षम और अक्षम लोगों की श्रेणियां भी बनाई जा सकती हैं। सरकार को उन उपायों पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे इन निकायों को विकास तथा नियमित सेवाओं को चलाने लिए जरुरी धन के अलावा भी धन उपलब्ध हो, जिसे आय के अतिरिक्त स्त्रोतों के विकास में लगाया जा सके। सिर्फ संपत्तिकर में बढ़ोतरी करके इन निकायों की जरुरतों को पूरा करने का स्थाई प्रबंध नहीं किया जा सकता। आखिर कर बोझ  एक सीमा तक ही बढ़ाई जा सकती है। शहरों में एक बड़ी समस्या अवैध बस्तियों की भी है जो दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। राजीव आश्रय योजना के तहत उन्हें पट्टे देकर करदाता के रुप में शामिल करने को एक अच्छी योजना चलाई गई थी। सरकार इन अवैध बस्तियों को वैध घोषित करके वहां बसे लोगों को भी कर अदा करने वालों की सूची में शामिल करके नगर निकायों के लिए एक बड़ी धनराशि जुटाई जा सकती है। शहरी नियोजन को फिर से देखने की भी जरुरत है। क्षेत्र विस्तार के साथ  शहरों की परिसंपत्तियों का समय-समय पर मूल्यांकन होना चाहिए। जिन परिसंपत्तियों का व्यावसायिक इस्तेमाल हो सकता है उनका आवासीय अथवा अन्य उद्देश्यों से उपयोग क्यों होना चाहिए। बहुत से शासकीय आवास और दफ्तर शहरों की ऐसी परिसंपत्तियों पर है, जिनका व्यावसायिक उपयोग  लाभदायक हो सकता है। इसके लिए क्षेत्राधिकार के मामले को सुलझाते हुए सरकार को निर्णय लेना चाहिए कि ऐसी परिसंपत्तियों का नगरीय निकायों की आय का साधन बढ़ाने में उपयोग कैसे हो।

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