• विश्वशांति का ढोंग

    पुराना गीत है तुम्हींने दर्द दिया है, तुम्हींदवा देना। आज जब दुनिया आतंकवाद के दर्द से कराह रही है और अमरीकी राष्ट्रपति, शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बराक ओबामा इस दर्द पर फिक्रमंद हो रहे हैं, आतंकवाद के चंगुल में फंसे विश्व को आजाद करवाना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये पंक्तियां उन्हींके लिए, उनके जैसे तमाम पूंजीवाद, साम्राज्यवादपरस्त नेताओं के लिए लिखी गई है।...

    पुराना गीत है तुम्हींने दर्द दिया है, तुम्हींदवा देना। आज जब दुनिया आतंकवाद के दर्द से कराह रही है और अमरीकी राष्ट्रपति, शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बराक ओबामा इस दर्द पर फिक्रमंद हो रहे हैं, आतंकवाद के चंगुल में फंसे विश्व को आजाद करवाना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये पंक्तियां उन्हींके लिए, उनके जैसे तमाम पूंजीवाद, साम्राज्यवादपरस्त नेताओं के लिए लिखी गई है। इतिहास गवाह है इस बात का कि किस तरह अपने लालच के लिए, अपनी बढ़ती जरूरतों बल्कि विलासिता की पूर्ति के लिए अमरीका ने एशिया, अफ्रीका के देशों में राजनीति का कुचक्र चला, स्वाभिमानी नेताओं की हत्याएं करवाईं, पूंजी के दम पर अपनी पिट्ठू सरकारें बनवाईं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद थक चुके, पस्त हो चुके यूरोपीय देशों को आर्थिक और सामरिक सहायता देकर अपने पक्ष में किया। दुनिया के सबसे पुराने इस लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के नाम पर हथियार निर्माता कंपनियों ने पूंजी का खूनी खेल निर्बाध होकर खेला। फिलीस्तीन के मुकाबले इजरायल का साथ दिया, भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर अपनी चालें चलीं, अलकायदा को खड़ा किया, सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटकाया, इराक को तहस-नहस किया, परमाणु हथियारों के नाम पर ईरान पर लंबा प्रतिबंध लगाया, क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, मिस्र, सीरिया, लीबिया तमाम देशों में लोकतंत्र के लिए उठे आंदोलन को ऐसा समर्थन दिया कि आज तक वहां अस्थिरता व्याप्त है, यूक्रेन पर रूस की नीतियों के खिलाफ उस पर भी प्रतिबंध थोप दिए। अब जबकि निजी स्वार्थपूर्ति के लिए खड़ा किया आतंकवाद भस्मासुर साबित हो रहा है, तो विश्वशांति की याद आ रही है। दो विश्वयुद्धों की मार झेल चुकी दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई। लेकिन खेद है कि अब यह मंच भी राजनीति के अखाड़े में तब्दील होता जा रहा है और दुनिया पहले से अधिक खतरनाक और अशांत होती जा रही है। तीसरा विश्वयुद्ध कब होगा, इसे लेकर आशंकित होने की आïवश्यकता नहींक्योंकि आतंकवाद, भूख, गरीबी, आर्थिक असमानता, जातीय, नस्लीय वैमनस्यता का माहौल तीसरे विश्वयुद्ध से कम भयावह नहींहै। संरा महासभा में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि सीरिया संघर्ष को खत्म करने के लिए अमरीका रूस और ईरान समेत किसी भी देश के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। ओबामा को लगता है कि विश्वशांति का महती दायित्व अमरीका पर है, तो ऐसा उन्हें कहना ही पड़ेगा। लेकिन वे सीरिया में मौजूदा असद सरकार को हटाकर सत्ता का कामयाब हस्तांतरण चाहते हैं। रूस भी सीरिया संकट के समाधान में सहयोग करना चाहता है, किंतु राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन का कहना है कि वे सीरिया के नागरिक नहींहैं और किसी देश का नेतृत्व चुनने में उन्हें शामिल नहींहोना चाहिए। अमरीका की यह पुरानी आदत है, तो सीरिया को आईएस के चंगुल से हटाने के बदले वह निश्चित ही अपनी पसंद के व्यक्ति को सत्ता सौंंपेगा। अफगानिस्तान में वर्षों से यही हुआ। लेकिन इससे कितनी शांति स्थापित हुई, यह सबके सामने है। सत्ता और युद्ध राजनीति के सिक्के के दो पहलू हैं, मानव इतिहास में प्रारंभ से यह सिक्का इसी तरह चलता आ रहा है। फर्क इतना ही है कि घुमंतू और कबीलाई जीवन से आगे बढ़ते हुए इंसान ने सभ्यता की नई मंजिलें तय की तो युद्ध के तौर-तरीके और नियम भी बदल गए, लेकिन इंसान की प्रवृत्ति नहींबदली। आज की कबीलाई दुनिया का सरदार अमरीका है जो अपनी सत्ता कायम रखने के लिए दूसरों को लड़ाई में उलझाए रखना चाहता है। अगर बराक ओबामा और उनके मित्रों को विश्वशांति, आतंकवाद के खात्मे की इतनी ही चिंता है तो क्यों नहींआयुध कारखानों, बमों-बंदूकों के व्यापार को खत्म करवा देते, न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। यह भी कैसी विडंबना है कि जो भारत अमरीका से हथियार खरीदने की सूची में 24वें स्थान का देश था, वह पिछले साल 1.9 अरब के हथियार उससे खरीदकर सबसे ऊपर स्थान पर पहुंच गया है। नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं से पहले बड़े रक्षा सौदों की घोषणा अब भारत में होने लगी है। जापान, फ्रांस, जर्मनी, इजरायल, रूस हर किसी से भारत हथियार खरीद रहा है। पूरी दुनिया में आयात होने वाले कुल हथियारों का 15 प्रतिशत भारत को आयात होता है जो चीन से तीन गुना अधिक है। बुद्ध, अशोक और गांधी के भारत की बात करना अब शायद बेमानी है। हम 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस भी मनाएंगे और हथियार निर्माताओं के लिए सबसे प्रिय ग्राहक भी बने रहेंगे।

अपनी राय दें