• नीतीश कुमार की कलम से : बिहार चुनाव पर टिका देश का भविष्य

    बिहार विधानसभा का चुनाव सिर्फ बिहार की समस्याओं तक सीमित नहीं है। इसका असर देश की राजनीतिक दशा और दिशा पर पड़ेगा। पिछले दस वर्षों में बिहार ने अभूतपूर्व प्रगति की है। लंबे समय के बाद बिहार के संदर्भ में हो रही चर्चाओं ने सकारात्मक रूप लिया है। राज्य के लोग न केवल चुनाव की महत्ता को लेकर जागरूक हो गए हैं, बल्कि उन्होंने बिहार की विकास यात्रा को निरंतर चलाने का संकल्प भी लिया है। पिछले दस वर्षों में ‘न्याय के साथ विकास’ की समझ पर राज्य में सुशासन और कानून-व्यवस्था स्थापित करना तथा हर नागरिक तक बुनियादी सेवाएं पहुंचाना हमारी सरकार का लक्ष्य रहा है। अनेक सामाजिक-आर्थिक सूचकों पर बिहार ने देश की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।...

    प्रदेश का गौरव है दांव पर

    केंद्र सरकार को न तो विपक्ष के विचारों-परामर्शों की कद्र है, न ही उसकी नजर में आम सहमति की कोई अहमियत है

    नीतीश कुमार

    बिहार विधानसभा का चुनाव सिर्फ बिहार की समस्याओं तक सीमित नहीं है। इसका असर देश की राजनीतिक दशा और दिशा पर पड़ेगा। पिछले दस वर्षों में बिहार ने अभूतपूर्व प्रगति की है। लंबे समय के बाद बिहार के संदर्भ में हो रही चर्चाओं ने सकारात्मक रूप लिया है। राज्य के लोग न केवल चुनाव की महत्ता को लेकर जागरूक हो गए हैं, बल्कि उन्होंने बिहार की विकास यात्रा को निरंतर चलाने का संकल्प भी लिया है। पिछले दस वर्षों में ‘न्याय के साथ विकास’ की समझ पर राज्य में सुशासन और कानून-व्यवस्था स्थापित करना तथा हर नागरिक तक बुनियादी सेवाएं पहुंचाना हमारी सरकार का लक्ष्य रहा है। अनेक सामाजिक-आर्थिक सूचकों पर बिहार ने देश की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।

    आंकड़े क्या कहते हैं

    पिछले दस वर्षों में 17.99 फीसदी की दर के साथ प्रदेश की दस वर्षीय जीडीपी प्रगति देश में सर्वोच्च रही है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय में 16.33% की यौगिक वार्षिक वृद्धि देखी गई है, जो राष्ट्रीय वृद्धि दर की दोगुनी से भी ज्यादा है। कृषि जीडीपी में 5.1 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन में 13.3 फीसदी और सेवा क्षेत्र में 9.8 पर्सेंट की बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले दस सालों में ऊर्जा के क्षेत्र में भी व्यापक उन्नति हुई है। बिजली की आपूर्ति में चार गुनी (700 मेगावाट से 3012 मेगावाट) और प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में तिगुनी वृद्धि हुई है। लगभग 36,504 बसावटों का बिजलीकरण हुआ है। इन दस सालों में सड़कों की लंबाई दोगुनी हो गई है। राज्य के हर हिस्से को जोड़ती हुई 66,500 किलोमीटर लंबी सड़कों और हजारों छोटे-बड़े पुलों का निर्माण हुआ है। आंकड़े और तथ्य महत्वपूर्ण हैं, पर उन्हें किसी राज्य की उन्नति का एकमात्र मापदंड नहीं माना जा सकता। बिहार की प्रगति का वास्तविक स्वरूप मुझे स्कूल के कपड़ों में सजी-धजी, साइकिल चलाती लड़कियों में दिखाई देता है। उनमें मैं अपनी आशाओं को नया मुकाम छूते देखता हूं।

    जब राज्य के हजारों लोग उपचार के लिए सरकारी अस्पताल जाते हैं और वहां से संतुष्ट होकर लौटते हैं, तो उस क्षण मुझे अहसास होता है कि मेरे प्रयास सही दिशा में हैं। जब लोग किसी भी वक्त शहर और गांव में, बिना किसी डर के सड़कों पर निकलते हैं तो लगता है कि सरकार ने अपना काम ठीक से किया है। राज्य का विकास तब उभर कर आता है, जब राज्य का हर नागरिक अपने आप को ‘बिहारी’ कहने में गर्व महसूस करता है। नई सरकार का चयन करते समय ये सारे मुद्दे मतदाताओं के जेहन में होंगे। पर चूंकि हमारा देश एक संघीय राष्ट्र है, इसलिए मेरी समझ में हमारी निर्वाचक जनसंख्या पिछले डेढ़ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर भी विचार जरूर करेगी। इसके आसार काफी ज्यादा हैं क्योंकि अर्से बाद वहां एक पार्टी की बहुमत से सरकार बनी है। वह अपने ‘अच्छे दिन’ के वादों पर सत्ता में आई है। मगर, अब तक जो भी जनता ने देखा है उससे ‘अच्छे दिन’ यथार्थ में परिवर्तित होते नजर नहीं आते। केंद्र सरकार अपने लंबे-चौड़े वादों को पूरा करने में असफल साबित हुई है। इसके अलावा कई और मुद्दे हैं, जो समाज के कई तबकों को बेचैन कर रहे हैं।

    केंद्र सरकार कुछ ही वर्गों की सरकार के रूप में नजर आ रही है। समाज के पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के प्रति इस सरकार का दायित्व विलुप्त होता दिख रहा है। इसके साथ ही इसकी कई गतिविधियों ने हमारे वर्षों की गणतांत्रिक धरोहर को न सिर्फ चोट पहुंचाई है बल्कि उसके मूलभूत ढांचे को हिलाने का भी प्रयास किया है। धीरे-धीरे लगने लगा है कि केंद्र सरकार को न तो दूसरे पक्षों के विचारों और परामर्शों की कद्र है, न ही उसकी नजर में आम सहमति की कोई अहमियत है। इस राष्ट्र में, जहां सबको साथ लेकर चलने और सहमति बनाकर काम करने की प्रथा रही है, केंद्र सरकार की तानाशाही वाली विचारधारा देश को शर्मसार कर रही है।


    केंद्र सरकार की तरह ही उसके द्वारा समर्थित जो गठबंधन बिहार में सत्ता पाने को इच्छुक है, उसके पास न तो बिहार के विकास के लिए कोई योजना है, न ही कोई सकारात्मक सोच। वे विकास की बात करते हैं पर यह नहीं बताते कि किस तरह के विकास की जरूरत है और उसके लिए क्या कदम उठाने होंगे। राज्य ने जो अकल्पनीय विकास प्राप्त किया है, क्या उसे बदलने की जरूरत है/ राज्य में जो सबकी सहमति से कार्य करने की रीत है, क्या उसे बदलने की जरूरत है/ सरकारी सेवाओं में आए सुधार को बदलने की जरूरत है/

    पब्लिक सब जानती है

    हमारे तमाम कार्यों का रिकॉर्ड जनता के पास है। हमें कई क्षेत्रों में सुधार लाने की जरूरत है लेकिन इस कार्य की बुनियाद रखी जा चुकी है, जो विकास प्रक्रिया को और आगे बढ़ाएगी। अब यह जनता को तय करना है कि वह हमें इसके लायक समझती है या नहीं। फैसला चाहे जो भी हो, मुझे जनता की सामूहिक बुद्धि और लोकतंत्र पर अटूट विश्वास है। मैं राज्य के नागरिकों को आश्वासन देता हूं कि जब तक उनका सहयोग और विश्वास मेरे और मेरी सरकार के साथ है, तब तक मैं बिना किसी रुकावट के विकास के रथ को आगे बढ़ाता रहूंगा। बिहार पुनः सर्वाधिक प्रगतिशील राज्य बनेगा और भारत को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। राज्य के समग्र विकास की नींव रखी जा चुकी है, अब उसे और मजबूत बनाना है ।

    (लेखक बिहार के मुख्यमंत्री हैं)

    साभार - http://nitishforbihar.com/index.php/2015/09/28/bihar-chunaav-par-tika-desh-ka-bhavishya/

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