• अजीब सी समानता है मुजफ्फरनगर और बिसाहड़ा में

    दादरी । यह बात कुछ लोगों को अजीब सी लग सकती है कि मुजफ्फरनगर और बिसाहड़ा में क्या समानता हो सकती है? सतही तौर पर कोई भी इसे नकार सकता है, पर गहराई से जांच की जाए, तो इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। असल में दोनों ही घटनाओं का उद्देश्य उस इलाके में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी का सांप्रदायिकरण करना था। दोनों ही...

     बिसाहड़ा का सच-अंतिम  बिसाहड़ा से लौटकर भारत शर्मा/ अजब सिंह कई संगठनों पर घूम रही है शक की सुई दादरी । यह बात कुछ लोगों को अजीब सी लग सकती है कि मुजफ्फरनगर और बिसाहड़ा में क्या समानता हो सकती है? सतही तौर पर कोई भी इसे नकार सकता है, पर गहराई से जांच की जाए, तो इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। असल में दोनों ही घटनाओं का उद्देश्य उस इलाके में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी का सांप्रदायिकरण करना था। दोनों ही जगह घटना को अंजाम देने के लिए झूठा आधार तैयार किया गया। फिर भी यह सच है कि बिसाहड़ा और मुजफ्फरनगर में कुछ अंतर भी है। शुरुआत प्रताप सेना से ही की जाए। इस संगठन में मुख्य तौर पर राजपूत समाज के युवा ही हैं, जिनका कहना है कि वे समाज की कुरीतियों को दूर करने का काम करते हैं, पर ऐसा कुछ भी अभी तक नजर नहीं आया। इस सेना के तार सीधे तौर पर भाजपा नेताओं से जुड़े हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ये लोग महेश शर्मा से जुड़े हैं, कुछ लोग इसे सरधना विधायक संगीत सोम से जुड़ा हुआ भी बताते हैं। संगीत सोम मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपी हैं। उन पर पाकिस्तान का एक वीडियो अपलोड कर लोगों को भड़काने का आरोप है, आज वे भी इस मामले में शामिल हो गए। उन्होंने बिसाहड़ा गांव आकर पीडि़त परिवार  से मुकदमा वापस लेकर शांति से गांव में रहने की बात कही। वहीं, इस घटना में भी मांस के अंशों को सोशल मीडिया के माध्यम से उसी तरह प्रचारित किया गया और किया जा रहा है, जैसा मुजफ्फरनगर में किया गया था। मोदी सरकार के मंत्री डॉ महेश शर्मा यहां अतिरिक्त सक्रिय नजर आए। यह एक अजीब इत्तेफाक है, कि इस इलाके में गाय काटने की पहली घटना साल 2009 में जेवर के पास ककोड में हुई थी, उस समय तीन ट्रकों में गाय के अवशेष मिले थे पर खून नहीं मिला था। उस साल भी चुनाव था, जिसमें डॉ. महेश शर्मा खड़े हुए थे और हार गए थे। मुजफ्फरनगर दंगों की बात करें, तो यहां एक लड़की को छेडऩे का मामला बनाया गया था, जिसके आधार पर तीन हत्याएं हुईं, हालांकि पुलिस की एफआईआर में लड़की को छेडऩे का कहीं भी जिक्र नहीं है, ठीक उसी प्रकार जैसे बिसाहड़ा में गौ मांस को आधार बनाया गया, जिसका कोई प्रमाण नहीं मिला। मुजफ्फरनगर में जाटों की दो बड़ी खापें हैं। एक बालियान खाप और दूसरी गुठवाल खाप, जो मलिकों की हैं। बालियान खाप के 84 गांव हैं, मलिकों के 54 गांव हैं। मोदी सरकार के एक दूसरे मंत्री संजीव बालियान कुटवा कुटवी के रहने वाले हैं, वहीं गुठवाला खाप के मुखिया हरकिशन सिंह लिसाड़ गांव के हैं। इस खाप का मुख्य प्रवक्ता उमेश मलिक की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से काफी नजदीकियां हैं। बालियान और उमेश मलिक दोनों की मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हैं, क्योंकि दंगों के केन्द्र कुटवा कुटवी और लिसाड़ ही थे। इन्हीं दोनों से लगे करीब नौ गांव ही दंगाग्रस्त माने गए थे। बिसाहड़ा की खासियत यह है, कि यह राजपूत बहुल गांव है, यहां सिसोदिया ठाकुर रहते हैं।  सिसोदियाओं के गाजियाबाद जिले में  60 गांव हैं और तोमरों के 80 गांव, इन्हें साठा चौरासी के नाम से जाना जाता है। तोमरों के गांव फिर खुर्जा, बुलंदशहर से लेकर बदायुं तक हैं। मुजफ्फरनगर के दंगों के दौरान जिस तरह भाजपा के नेता सक्रिय थे, उसी प्रकार आज भी सक्रिय हैं। घटना के आरोपियों को बिना पुलिस जांच, अदालत की सुनवाई के जिस तरह निर्दोष साबित करने की कोशिश की गई, उससे साफ है, भाजपा राजपूतों में यह संदेश देना चाहती है, कि सपा सरकार धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों की तरफदारी कर रही है और हिंदुओं को निर्दोष फंसा रही है। मुजफ्फरनगर में जाटों और मुसलमानों का मजबूत गठजोड़ था, तो राजपूतों का भी एक बड़ा हिस्सा राजा भैया के कारण सपा से जुड़ गया था। यह भी अजीब इत्तेफाक है, कि मुजफ्फरनगर दंगों के पहले नितिन गड़करी भाजपा अध्यक्ष के नाते कुटवा कुटवी में गए थे और तोगडिय़ा लिसाड़ में। दूसरी तरफ भाजपा के उप्र अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई भी छह माह पहले इस घटना के मुख्य आरोपी विशाल के घर एक रात रुके थे। हालांकि मुजफ्फरनगर और बिसाहड़ा में एक बड़ा अंतर भी है, जिस समय अखलाक पर हमला हुआ उस समय वहां के हिंदुओं ने ही आकर उस परिवार को बचाया था, दूसरी तरफ गांव छोड़कर जा रहे मुसलमानों को रोकने का काम भी हिंदुओं ने ही किया था। यह सब मुजफ्फरनगर के दंगाग्रस्त इलाकों में देखने को नहीं मिला। बिसाहड़ा के दलित समाज के लोगों की भी यहां हुई इस घटना का बड़ा अफसोस है, हालांकि वे बोल कुछ नहीं पा रहे हैं।


     

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