• लंबे समय से चल रहा है नफरत का कारोबार

    दादरी। कल जुमे का दिन था, जो मुसलमानों के लिए काफी महत्व का दिन होता है। गांव में मंदिर से थोड़ी ही दूर पर बनी मस्जिद पर कुछ राजपूत समाज के लोग पुलिस के जवानों के साथ पहरा देते हुए नजर आए। वे जुमेरात को भी इस मस्जिद के बाहर पहरा देते रहे थे। पूछने पर उनका कहना था, कि कहीं उपद्रवी तत्व मस्जिद पर हमला न कर दें।...

    बिसाहड़ा का सच-२ गांव की फिजा को बिगाडऩा था उपद्रवियों का मकसद  बिसाहड़ा से लौटकर भारत शर्मा/ अजब सिंह दादरी। कल जुमे का दिन था, जो मुसलमानों के लिए काफी महत्व का दिन होता है। गांव में मंदिर से थोड़ी ही दूर पर बनी मस्जिद पर कुछ राजपूत समाज के लोग पुलिस के जवानों के साथ पहरा देते हुए नजर आए। वे जुमेरात को भी इस मस्जिद के बाहर पहरा देते रहे थे। पूछने पर उनका कहना था, कि कहीं उपद्रवी तत्व मस्जिद पर हमला न कर दें। इस दृश्य को देखकर कोई भी कह सकता है, कि गांव में काफी सौहाद्र्र है, पर क्या यह सच है? शायद नहीं? इन लोगों के दिलों में ऐसा कुछ है, जो दोनों समाजों के बीच एक खाई खींचने का काम कर रहा है। यह अजीब बात है, कि गांव के लोग किसी भी सूरत में यह मानने को तैयार नहीं हैं, कि अखलाक की हत्या के पीछे सांप्रदायिकता भी कारण हो सकता है, उल्टा वे खुद ही सवाल करने लगते हैं, कि दो भाईयों में से एक ही पर हमला क्यों किया किया गया? वे प्रशासन की उस रिपोर्ट पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं है, जिसमें यह कहा गया है, कि अखलाक के घर मिला मांस का टुकड़ा गौमांस नहीं है, वे कहते हैं, इसके पीछे भी कुछ साजिश है। बिसाहड़ा वह गांव है, जहां आजादी के दौरान भी सांप्रदायिक तनाव नहींहुआ। लोग बताते हैं, उस समय अल्पसंख्यकों को उन्होंने अपने घर में पनाह दी थी। जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया, उस समय भी पूरे देश में तनाव रहा, यहां शांति रही। गांव वाले बताते हैं, मस्जिद और ईदगाह बनाने में राजपूत समाज के लोगों ने मदद की, उनके नाम भी यहां अंकित हैं। पर अब सब कुछ ठीक नहीं है। बिसाहड़ा की घटना पर भाजपा के नेताओं ने जिस जल्दीबाजी में प्रतिक्रिया दी और दोषियों को बचाने की कोशिश की, उसके बाद से ही यह तय हो गया था, कि यह घटना अचानक नहीं घटी है। इस घटना के पीछे एक सोच काम कर रही है, जो लोगों को धीरे-धीरे सांप्रदायिक बना रही है। तत्कालीन घटना का कारण भले ही गौ मांस खाने का आरोप हो, पर नफरत फैलाने का कारोबार बहुत समय से चल रहा है। गांव के लोग किसी भी कीमत पर यह बताने को तैयार नहीं होते, कि इस घटना के पीछे किसका हाथ है, यह अलग बात है, कि प्रधान संजय राणा का बेटा विशाल इस घटना का मुख्य आरोपी करार दिया गया है और उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया है। गांव के वयोवृद्ध रामपाल खुद को सपा का नेता बताते हंै, पर वे भी यह मानते हैं, कि समाजवादी सरकार में हिंदुओं की स्थिति ठीक नहीं है। गांव वालों का मानना है, कि सपा सरकार के मंत्री आजम खान अल्पसंख्यकों की अनावश्यक मदद करते हैं, जिससे उन्हें किसी भी अपराध की सजा नहीं मिल पाती। हालांकि इसके पीछे उनके पास कोई ठोस तर्क नहीं है। गांव के लोगों का यह भी मानना है, कि गाय के साथ पकड़े जाने वाले लोगों को आजम खान के कहने पर छोड़ दिया जाता है, यह अलग बात है, कि गाय की तस्करी हो रही है, वे अभी तक कोई हिंदूवादी संगठन सिद्ध नहीं कर पाया है। अक्सर पुलिस गाय ले जाने वालों पर पशु अत्याचार अधिनियम के तहत मामले दर्ज करती है।   


     

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