• कन्या छात्रावासों का ये हाल!

    एक सरकारी कन्या छात्रावास में एक-दो नहीं 131 छात्राओं के अवैध रुप से वर्षों से जमे रहना कम आश्चर्यजनक नहीं है। वह भी ऐसा छात्रावास, जो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के आवासों से लगा हुआ हो। वहां के नियमों की धज्जियां उड़ रही थीं और अधिकारियों को इसका कोई पता नहीं था।...

    एक सरकारी कन्या छात्रावास में एक-दो नहीं 131 छात्राओं के अवैध रुप से वर्षों से जमे रहना कम आश्चर्यजनक नहीं है। वह भी ऐसा छात्रावास, जो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के आवासों से लगा हुआ हो। वहां के नियमों की धज्जियां उड़ रही थीं और अधिकारियों को इसका कोई पता नहीं था। कल अचानक इन छात्राओं को छात्रावास से निकालने के लिए पुलिस बल ली गई और पूरे दिन हंगामा होता रहा। पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। छात्र नेताओं ने इस कार्रवाई का विरोध करते हुए चक्काजाम तक कर दिया। राजनेता भी कूद पड़े। छात्राओं का कहना है कि वे छात्रावास अधीक्षिका को पैसे देती थीं। वैसे भी इतनी संख्या में छात्राएं अधीक्षिका की सहमति के बिना नहीं रह सकतीं। अब अचानक क्या हुआ कि इन छात्राओं को निकालने की कार्रवाई शुरु हुई, इसका खुलासा होना बाकी है। छात्रावास से इन छात्राओं को निकाल देने और अधीक्षिका को निलंबित कर देने से ही मामले में कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, इस बात की जांच होनी चाहिए कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में छात्राओं को रहने अनुमति किस आधार पर यहां और किसके आदेश से दी गई। छात्रावास में प्रवेश के नियम-कायदे होते हैं। इस हास्टल मेें जितनी सीटें हैं, उतनी ही छात्राएं वहां अवैध रुप से रह रही थीं। छात्राओं का कहना है कि उन्होंने इसी छात्रावास में रहकर पढ़ाई की और पढ़ाई पूरी होने के बाद भी वे यहीं रह रही थीं। इनमें कुछ स्वाध्यायी हो गई थीं तो कुछ यहां रहकर भर्ती परीक्षाओं की तैयारी कर रही थीं। छात्रावासों में किसी को भी प्रवेश अवधि खत्म होने के बाद एक दिन भी रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती। खासकर वह कन्या छात्रावास से हो तो नियमों का कड़ाई से पालन कराना होता है क्योंकि यहां मामला अकेले व्यवस्था का ही नहीं छात्राओं की सुरक्षा का भी होता है। अधीक्षिका को इन छात्राओं को निकालने की सुध कैसे आई, यह भी एक अहम सवाल है। प्रशासन की ओर से कहा गया है कि अधीक्षिका ने छात्रावास छोडऩे का नोटिस देने पर छात्राएं अड़ गई इसलिए पुलिस बुलानी पड़ी। जब उन्हें निकालने के लिए पुलिस पहुंची तो हंगामा करना शुरु कर दिया। इस मामले में कुछ छात्राओं के खिलाफ पुलिस ने जुर्म भी दर्ज कर लिया है। इस छात्रावास का इतनी अव्यवस्थित ढंग से संचालन कब से कैसे हो रहा था, इसका भेद देर-सबेर सामने आए इससे पहले प्रशासन को सच्चाई सार्वजनिक करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। यदि किसी उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता हो तो करानी चाहिए। यह मामला जल्दी खत्म होने वाला भी नहीं है क्योंकि राजनेता अवसरों की तलाश में लग गए हैं। इस मामले में कांग्रेस विधायकों ने छात्राओं का सीधे तौर पर पक्ष तो नहीं लिया, लेकिन उन्होंने  छात्रावास में पुलिस बुला लेने का विरोध जरुर किया। पार्टी ने घटना की जांच के लिए एक जांच कमेटी भी बनाई है। इस कमेटी की क्या रिपोर्ट आती है उस पर सबकी निगाह होगी क्योंकि छात्राओं के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की चर्चा शहर तक नहीं बल्कि प्रदेशभर में हुई है।

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