• इस मसौदे का मकसद क्या था?

    संचार क्रांति का अधिकतम लाभ जिन देशों के लोगों व राजनीतिक दलों ने उठाया, भारत उनमें अग्रणी है। विकास के कई पैमानों में भले ही हम आधुनिक विश्व में कितने भी पिछड़े रहें, सूचना-तकनीकी क्षेत्र में हम बहुत आगे हैं।...

    संचार क्रांति का अधिकतम लाभ जिन देशों के लोगों व राजनीतिक दलों ने उठाया, भारत उनमें अग्रणी है। विकास के कई पैमानों में भले ही हम आधुनिक विश्व में कितने भी पिछड़े रहें, सूचना-तकनीकी क्षेत्र में हम बहुत आगे हैं। नए भारत की तस्वीर गढऩे की बात जब भी होती है, साधारण जनता के हाथ में मोबाइल फोन उसका अहम् हिस्सा होता है। अपनी लोकप्रिय छवि गढऩे के लिए नरेन्द्र मोदी ने नए मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद डिजीटल इंडिया बनाने का उद्देश्य उन्होंने सामने रखा। भाजपा ही क्यों, अन्य दल भी सोशल मीडिया के इस्तेमाल में पीछे नहींहैं। अब सार्वजनिक मंचों पर उतने सवाल-जवाब नहींहोते, जितने ट्विटर और फेसबुक पर होते हैं। यही स्थिति आम जनता की है। चिट्ठी, तार का जमाना तो लद ही गया अब ई-मेल से भी ज्यादा संवाद ट्विटर, व्हाट्स अप आदि पर होते हैं। इन साइट्स पर अलग-अलग समूह बनाने की सुविधा है। निजी, पारिवारिक बातों से लेकर सार्वजनिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक हालातों पर टीका-टिप्पणियां, विचारों का आदान-प्रदान लोग इन साइट्स पर करते हैं। इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए एक आभासी दुनिया निर्मित होती है, जिसमें आप प्रत्यक्ष किसी के सामने नहींबैठे हैं, लेकिन जब बातें, चर्चाएं होती हैं तो यह अहसास भी नहींहोता कि देश, दुनिया के अलग-अलग कोनों में बैठे व्यक्ति एक साथ इस तरह बात कर रहे हैं। जैसा कि घर, परिवार, देश, समाज में होता है, इन बातों में कई अप्रिय होती हैं, अवांछित होती हैं और कई बार भड़काने वाली भी। केेंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखा और एक नई एनक्रिप्शन नीति बनाई जिसके तहत भारत में व्यक्तिगत ई-मेल, संदेश या यहां तक कि आंकड़े सहित कंप्यूटर सर्वर में जमा कूटलेखन सहित हर तरह की सूचनाएं सरकार की पहुंच में होंगी। मूल मसौदे के मुताबिक नई एनक्रिप्शन नीति में प्रस्ताव किया गया कि उपयोग करने वाला जो भी संदेश भेजता है चाहे वह वाट्सएप के जरिए हो या एसएमएस, ई-मेल या किसी अन्य सेवा के जरिए- इसे 90 दिन तक मूल रूप में रखना होगा और सुरक्षा एजेंसियों के मांगने पर इसे उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा। ऐसा नहीं करने पर कानूनी कार्रवाई होती। इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा सोमवार शाम को जारी यह मसौदा मंगलवार दोपहर तक वापस ले लिया गया। दरअसल सरकार ने इस पर आम जनता की राय जाननी चाही। स्वाभाविक तौर पर इसकी कड़ी आलोचना की गई। इसे अभिव्यक्ति की आ•ाादी पर हमला माना गया। विपक्षियों ने सरकार पर जासूसी की नियत रखने का आरोप लगाया। इसके बाद केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मैंने इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को मसौदा वापस लेने और इस पर उचित तरीके से विचार कर फिर से इसे सार्वजनिक करने के लिए पत्र लिखा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो एनक्रिप्शन नीति बनाई जाएगी उसके दायरे में उपयोग करने वाले आम आदमी नहीं आएंगे। अच्छा है कि सरकार ने इस आलोचना का संज्ञान लिया और मसौदा वापस लिया। लेकिन इससे वह अपनी इस जवाबदेही से नहींबच सकती कि आखिर किस सोच और मानसिकता के तहत इस तरह का मसौदा तैयार हुआ और जो बातें सरकार को भी बाद में अनुचित प्रतीत हुईं, उन पर मसौदे को सार्वजनिक करने से पहले ही विचार क्यों नहींकिया गया। सरकार इस तरह के कार्यों में विशेषज्ञों की राय लेती है, तो क्या इस बार ऐसा नहीं हुआ? वे कौन से विशेषज्ञ थे जिन्होंने अभिव्यक्ति की आ•ाादी के सैद्धांतिक पहलुओं को तो नजरअंदाज किया ही, संचार उपकरणों के व्यावहारिक उपयोग और हैकिंग जैसे खतरों पर भी ध्यान नहींदिया। जिस तरह घर में रखे पुराने अखबारों, पत्रिकाओं, अनुपयोगी हो चुके कागजात को रद्दी में बेच दिया जाता है, और कई बार पसंद न आने वाली चिट्ठियों को फाड़ दिया जाता है। उसी तरह व्हाट्सअप, एसएमएस में भी संदेश डिलीट करने की सुविधा होती है, ताकि डिजीटल स्पेस बची रहे। यूं तो नरेन्द्र मोदी कई बार अपने 125 करोड़ भाई-बहनों को संबोधित कर चुके हैं कि वे उन पर विश्वास करते हैं, इसलिए कदम-कदम पर होने वाली कागजी, कानूनी कार्रवाइयों को खत्म करेंगे, और उनके जीवन को आसान बनाएंगे। फिर उनके डिजीटल रिकार्ड पर न•ार रखने का प्रावधान किस उद्देश्य से किया गया था? क्या सरकार इसका जवाब देगी?

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