• आरक्षण की भागवत कथा

    सरकारी नौकरियों में इन्हें कोटा मिल सके। मोहन भागवत ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के औचित्य पर सवाल उठाकर और आर्थिक आधार पर आरक्षण की बहस को जीवन देकर गुजरात में चल रहे पटेल आन्दोलन को निश्चित रूप से अपने पक्ष में करने की उनके संगठन की इच्छा को रेखांकित किया है लेकिन उनका बयान भाजपा के लिए भारी पडऩे वाला है।...

    नरेंद्र मोदी सरकार ये तय करे कि आरक्षण किसको मिलना चाहिए और कब तक मिलना चाहिए? आर एस एस के सरसंघ चालक मोहन भागवत के इस बयान के बाद देश में आरक्षण का प्रश्न फिर ज्वलंत हो उठा है। गुजरात में हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटीदार समाज खुद को ओबीसी वर्ग में शामिल कराना चाहता है ताकि कॉलेज और सरकारी नौकरियों में इन्हें कोटा मिल सके। मोहन भागवत ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के औचित्य पर सवाल उठाकर और आर्थिक आधार पर आरक्षण की बहस को जीवन देकर गुजरात में चल रहे पटेल आन्दोलन को निश्चित रूप से अपने पक्ष में करने की उनके संगठन की इच्छा को रेखांकित किया है लेकिन उनका बयान भाजपा के लिए भारी पडऩे वाला है। उनका बयान एक इंटरव्यू की शक्ल में उनके अपने अखबार पाञ्चजन्य में छपा है इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है। श्री भागवत के इस बयान के बाद स्वाभाविक तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। बिहार में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार ने इसका विरोध किया है। उधर बसपा सुप्रीमो मायावती वे कहा कि आर एस एस दलित विरोधी है और भाजपा सिर्फ लव जिहाद और सांप्रदायिक एजेंडा में रुचि रखती है। मायावती ने कहा, 'अगर सरकार आरक्षण को खत्म करने के बारे में सोचेगी तो हम राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि दलितों के लिए आरक्षित कई पद रिक्त हैं और सच तो यह है कि सरकार दलित आरक्षण को गंभीरता से लागू नहीं कर रही है। लेकिन भाजपा में फिलहाल मुख्य चिंता बिहार चुनाव को लेकर है, क्योंकि बिहार के चुनावों को जंगलराज बनाम सुराज बनाने में अपना सब कुछ दांव पर लगा चुकी भाजपा उसको मंडल राज बनाम सवर्ण राज में तब्दील नहीं होने देना चाहती। दिल्ली से पटना तक आर एस एस के मुखिया का बयान चुनावी भाषणों और प्रेस वार्ताओं का मुख्य बिंदु बन गया है। आरक्षण के बारे में अपने सर्वोच्च नेता के बयान से भाजपा में चिंता साफ न•ार आ रही है। मोहन भागवत के बयान को भाजपा या आर एस एस की तरफ से गलत तो नहीं बताया जा सकता लेकिन दोनों ही संगठनों की तरफ से स्पष्टीकरण आ गया है। बिहार चुनाव के दौरान अगर यह साबित हो गया कि आर एस एस आरक्षण का विरोधी है तो भाजपा की हालत वहां दिल्ली विधान सभा वाली हो सकती है और भाजपा नेतृत्व यह खतरा कभी नहीं उठाना चाहता। इस बात पर पार्टी का पक्ष रखने के लिए शायद इसीलिये उन्होंने अपने सबसे सशक्त प्रवक्ता को उतारा। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भाजपा आज भी और जनसंघ के दिनों से ही दलितों और ओबीसी के आरक्षण की पक्षधर रही है। पार्टी किसी भी तरह से इन वर्गों के आरक्षण के बारे में किसी भी तरह का विचार विमर्श नहीं करना चाहती। बिहार चुनाव में भारी नुकसान की आशंका के डर से दिन भर भाजपा के नेताओं में चर्चाएं होती रहीं सबको मालूम है कि यह बयान गुजरात के पटेलों को तो चाहे कुछ संतुष्ट कर दे लेकिन इसने बिहार में भाजपा के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर दी है। लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने सीधा राजनीतिक हमला बोल दिया है। लालू यादव ने कहा है कि अगर हिम्मत है तो भाजपा और मोदी सरकार आरक्षण पर फिर से विचार करके दिखाएं। उन्होंने कहा कि अजगर के बिल में आर एस एस/ भाजपा ने हाथ डाल दिया है अब उसको इसका नतीजा भोगना पड़ेगा। नीतीश कुमार ने दावा किया है कि आर एस एस आरक्षण का विरोधी और सवर्ण जातियों के एकाधिकार का पक्षधर संगठन हमेशा से ही रहा है लेकिन बहुसंख्यक दलित और ओबीसी जातियों के वोट लेने के लिए भाजपा इस बात को सामने नहीं आने देती थी। अब बात खुल गई है। जो भी हो बिहार विधान सभा के चुनावों में अब अगले डेढ़ महीने भाजपा जंगलराज को ही मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी जबकि लालू-नीतीश गठबंधन अब भाजपा को आरक्षण विरोधी साबित करने का अभियान चलायेगा। अगर यह अभियान चलाने में लालू यादव के साथियों को सफलता मिल गई तो भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थों के वोट तो पक्के हो जायेगें लेकिन भाजपा के नए सहायक, जीतन राम मांझी, राम विलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। सबको मालूम है कि बिहार में ऊंची जातियों के सभी मतदाता जोड़ दिए जाएं तब भी 20 प्रतिशत का आंकड़ा नहीं पार होता।

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