• राजग में सीटों का बंटवारा

    अमित शाह के एक ओर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के रामविलास पासवान बैठे हैं, दूसरी ओर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी बैठे हैं, और श्री शाह कह रहे हैं कि कोई विवाद नहींहै, कोई तनाव नहींहै। आप सभी के मुस्कुराते चेहरे देख रहे हैं। यह दृश्य बिहार विधानसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनने के बाद का है।...

    अमित शाह के एक ओर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के रामविलास पासवान बैठे हैं, दूसरी ओर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी बैठे हैं, और श्री शाह कह रहे हैं कि कोई विवाद नहींहै, कोई तनाव नहींहै। आप सभी के मुस्कुराते चेहरे देख रहे हैं। यह दृश्य बिहार विधानसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनने के बाद का है। अपने सहयोगियों को साथ बिठाकर मुस्कुराते, मिठाई खिलाते दिखलाने की जरूरत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इसलिए पड़ी क्योंकि चुनावों की तारीख की घोषणा के बाद भी भाजपानीत राजग में सीटों के बंटवारे की बड़ी समस्या हल नहींहो रही थी। हालांकि भाजपा प्रारंभ से यह कहती आई है कि उनके सहयोगियों के बीच कोई तनातनी नहींहै और सीटों का बंटवारा कोई मसला ही नहींहै। लेकिन यह स्पष्ट था कि बिहार की राजनीति तय करने वाले क्षेत्रीय खिलाडिय़ों को साधने में भाजपा को दिक्कत आ रही थी। रामविलास पासवान लोकसभा चुनावों के वक्त से ही भाजपा के साथ हैं, अब उनका बेटा भी सांसद है, लिहाजा वे बिहार में विशेष तवज्जो प्राप्त करने के इच्छुक थे। बिहार की जातिगत राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने वाला दलित कारक भी उनके पास है। लेकिन उन्हें चुनौती मिली जीतनराम मांझी से। श्री मांझी महादलितों के नेता हैं, नीतीश कुमार ने उन्हें अपनी जगह मुख्यमंत्री बनाया था। फिर वे इस पद से हटे, जदयू से अलग हुए, अपनी अलग पार्टी बनाई और भाजपा के साथ उनकी करीबी बढ़ी। वे भाजपा के साथ जाएंगे या लालू-नीतीश के महागठबंधन में शामिल होने की कोई संभावना है, इस पर कई राजनीतिक अटकलें लगती रहीं। खांटी राजनेता की तरह श्री मांझी अपने पत्तों को धीरे-धीरे खोलते रहे और बीच-बीच में भाजपा को अहसास कराते रहे कि अगर उनके मनमाफिक सीटें न मिलींतो वे नाराज हो सकते हैं। भाजपा उन्हें 13 से 15 सीटें ही देना चाहती थी, लेकिन वे पासवान के मुकाबले अपनी पैठ दलितों के बीच अधिक बताते हुए और ज्यादा सीटें चाहते थे। भाजपा चुनावों के पहले उन्हें नाराज करने का जोखिम नहींउठाना चाहती थी, इसलिए अंतत: उन्हें 20 सीटें दी गईं। जबकि रामविलास पासवान को 40 सीटें मिलीं। उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को 23 सीटें दी गईं हैं। इस तरह देखा जाए तो सहयोगियों में लोजपा को सबसे अधिक सीटें मिलीं, और हम को सबसे कम, फिर भी इस राजनीति में जीतनराम मांझी का दबदबा रामविलास पासवान से अधिक रहा। बताया जा रहा है कि श्री पासवान अपने हिस्से से खुश नहींहैं। भाजपा 243 में 160 सीटों पर लड़ेगी। भाजपा इतनी सीटों से अपने उम्मीदवार खड़ा करना चाहती थी कि सरकार बनाने का अवसर मिले तो उसे किसी पर निर्भर न रहना पड़े, जबकि उसके सहयोगी दल इस तरह का गणित चाहते थे कि गठबंधन की जीत हो तो क्षेत्रीय दल के रूप में उनका महत्त्व बढ़े। लालू-नीतीश-कांग्रेस के महागठबंधन में सीटों का बंटवारा काफी पहले और सौहाद्र्रपूर्ण माहौल में संपन्न हो गया, जबकि राजग को इसके लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। बिहार के चुनाव में जाति, धर्म, विकास, सांप्रदायिकता का समीकरण ऐसा है कि कोई भी दल अकेले लडऩे की हिम्मत अब नहींदिखला पा रहा है, सबको किसी न किसी का सहारा चाहिए। अब देखना यह है कि सत्ता के शिखर पर पहुंचने के लिए कौन सीढ़ी बनता है, और कौन उस पर चढ़ता है। महागठबंधन में तो मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही हैं, लेकिन भाजपा ने एक बार फिर मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित न करने का अपना पुराना दांव चला है। वह नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है। श्री मोदी की चुनावी रैलियों में तो भीड़ उमड़ती है, लेकिन बिहार के राजनीतिक, सामाजिक, जातीय समीकरणों से प्रभावित राजनीति के चलते भीड़ के कितने चेहरे वोट में तब्दील होते हैं, यह देखने का इंतजार रहेगा।

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