• विनिवेश का निकला दम!

    भारतीय एल्युमिनियम कंपनी (बालको) विनिवेश के बाद इस समय सबसे खराब दौर से गुजर रही है। एक-एक कर उसकी इकाइयां बंद हो रही है, जिससे वहां कार्यरत श्रमिकों के बेकार होने का संकट मंडराने लगा है। ऐसा लगता है कि कंपनी एल्युमिनियम प्लांट का काम समेट कर पावर सेक्टर पर ध्यान केन्द्रित करना चाहती हैं। नीलामी में उसे कोयला की खदानें भी मिल चुकी है। ...

    भारतीय एल्युमिनियम कंपनी (बालको) विनिवेश के बाद इस समय सबसे खराब दौर से गुजर रही है। एक-एक कर उसकी इकाइयां बंद हो रही है, जिससे वहां कार्यरत श्रमिकों के बेकार होने का संकट मंडराने लगा है। ऐसा लगता है कि कंपनी एल्युमिनियम प्लांट का काम समेट कर पावर सेक्टर पर ध्यान केन्द्रित करना चाहती हैं। नीलामी में उसे कोयला की खदानें भी मिल चुकी है। बालको विनिवेश को मंजूरी 2001 में दी गई थी। स्टरलाइट इंडस्ड्रीज को कंपनी का 51 प्रतिशत सरकार निवेश किया था। श्रमिक संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया था और लगातार 67 दिनों तक हड़ताल चली थी। बालको विनिवेश को 15 साल हो रहे हैं और एक बार फिर कंपनी के श्रमिक आंदोलित हैं। कंपनी ने शीट रोलिंग शाप और फाउन्ड्री बंद करने का निर्णय ले लिया है। इन दोनों इकाइयों में करीब 680 मजदूर नियुक्त थे, जिनके बेकार हो जाने का संकट आ खड़ा हुआ है। कंपनी क्लोजर रिपोर्ट भी श्रम विभाग में दाखिल कर चुकी है। कंपनी उन नियमों का हवाला दे रही है जिसके तहत किसी इकाई को चलाने में वित्तीय हित पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की स्थिति में इकाई को बंद करने अधिकार कंपनी को है। दुनिया में छाई मंदी और विदेश एल्युमिना मंगाकर तैयार होने एल्युमिनियम की लागत अधिक पड़ रही है और इस दर पर दुनिया के बाजार में कपंनी के टिके रह पाने की गुंजाइश नहीं बची है। कंपनी यह भी आरोप लगा रही है कि 49 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार की है फिर भी कंपनी को सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है। यहां तक कि सरकार अपनी जरुरत का एल्युमिनियम तक बालको से नहीं खरीद रही है। हालांकि जानकार इन आरोपों को खारिज कर रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. चरणदास महंत का कहना है कि ये सारी बातें बेबुनियाद है। यदि स्टरलाइट कंपनी चलाने में अपने को असमर्थ पा रही है तो उसके दूसरे कारण हो सकते हैं। उनका कहना है कि बालको को सरकार के अधीन ले आना चाहिए। पूर्व मंत्री और भाजपा नेता भी इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बालको की मौजूदा स्थिति की जांच कराने की मांग की है। स्टरलाइट के अधीन आने के बाद बालको के लाभ में तेजी से इजाफा हुआ था। उत्पादन इतना बढ़ गया कि प्लांट के लिए एल्युमिना कम पडऩे लगा। छत्तीसगढ़ के कवर्धा तथा सरगुजा स्थित बाक्साइट खदानों से बाक्साइट की इतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही थी कि प्लांट को उसकी पूरी क्षमता के साथ चलाया जा सके। स्टरलाइट ने आस्ट्रेलिया एल्युमिना मंगाना शुरु किया और प्लांट पूरी क्षमता के साथ चलने लगा। बालको एल्युमिनियम देश और देश से बाहर इस तरह बिकने लगा मानों विश्व बाजार में उसका कोई मुकाबला नहीं रह गया हो। 15 साल बाद परिस्थिति ठीक इसके विपरीत बताई जा रही है। जो वजहें गिनाई जा रही हैं, वे सिर्फ बालको के लिए ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी है। ऐसे मे बालको प्रबंधन के रवैये पर सवाल उठते हैं। सरकार को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करते हुए बालको में बढ़ रही औद्योगिक अशांति के वातावरण को दूर करना चाहिए। बालको का मामला सिर्फ प्लांट की इकाइयों के बंद होने से बेकार होने जा रहे मजदूरों का ही नहीं बल्कि कंपनी के विस्तार की संभावना पर पडऩे वाले प्रतिकूल प्रभाव का भी है, जिसका संबंध राज्य तथा देश के आर्थिक हितों से भी जुड़ा हुआ है।

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