• झाबुआ: एक और जानलेवा लापरवाही

    मध्यप्रदेश एक बार फिर अकाल मौतों के लिए सुर्खियों में है। 1984 के भोपाल गैस कांड के पीडि़त अब तक न्याय की बाट जोह रहे हैं। व्यापमं घोटाले में एक के बाद एक हुई मौतों का पर्दाफाश अभी होना बाकी है। ...

    मध्यप्रदेश एक बार फिर अकाल मौतों के लिए सुर्खियों में है। 1984 के भोपाल गैस कांड के पीडि़त अब तक न्याय की बाट जोह रहे हैं। व्यापमं घोटाले में एक के बाद एक हुई मौतों का पर्दाफाश अभी होना बाकी है। और अब झाबुआ के पेटलावद में अवैध रूप से रखे विस्फोटकों से हुए धमाकों में 90 लोगों की मौत की दुखद घटना घट गई। राजेंद्र कास्वा नामक एक व्यापारी ने पेटलावद में किराए के मकान में गैरकानूनी तरीके से जिलेटिन की छड़ों और अन्य विस्फोटक सामग्री को एकत्र कर रखा था। जिलेटिन की छड़ें, डेटोनेटर आदि से विस्फोट कर चट्टानों को उड़ाया जाता है। विस्फोटक पदार्थ बेचने और उसका उपयोग करने के लिए सरकार से बाकायदा लाइसेंस लेना पड़ता है, जिसकी प्रक्रिया काफी लंबी होती है। पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही किसी को विस्फोटक सामग्री खरीदने, बेचने या उपयोग करने की अनुमति मिलती है और सामग्री खरीदने के बाद उसके भंडारण की समुचित व्यवस्था करने के भी नियम हैं। झाबुआ विस्फोट कांड में ऐसा प्रतीत होता है कि इन नियमों का पूरी तरह उल्लंघन किया गया है। भीड़-भाड़ की जगह में एक मकान में विस्फोटक रखने की लापरवाही किस कदर घातक साबित हुई है, यह सबके सामने है। घटना के गवाह बताते हैं कि धमाका इतना जबरदस्त था कि इमारतों, गाडिय़ों और वहां मौजूद इंसानों के चिथड़े उड़ गए। कई परिवार बर्बाद हो गए और इस बर्बादी के बाद सरकार अपनी कर्तव्यपरायणता दिखाने के लिए सामने आई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घटना स्थल का भी दौरा किया और सोमवार को पीडि़त परिवारों से निजी तौर पर मिलने के लिए वे पहुंचे। पीडि़तों के लिए मुआवजे का ऐलान, रोजगार का वादा आदि सरकारी संवेदनशीलता दिखाने की औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गई हैं। लेकिन इससे घटना से प्रभावित लोगों को राहत मिलेगी, इसमें संदेह है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पेटलावद पहुंचने पर जिस तरह लोगों ने उन्हें घेरा, उससे उनकी नाराजगी जाहिर होती है, जो स्वाभाविक ही है। भोपाल गैस कांड में भी यही तथ्य सामने आया कि अगर इस औद्योगिक लापरवाही पर समय रहते सरकार चेतती, प्रशासन कड़े कदम उठाता, तो हजारों लोग घुट-घुट कर मरने और तिल-तिल कर जीने के लिए अभिशप्त नहींहोते। झाबुआ का मामला भी इसी तरह का है। राजेंद्र कास्वा के खिलाफ साल भर पहले स्थानीय लोगों ने जिलाधीश को ज्ञापन सौंपा था कि वह इस तरह घनी बसाहट के इलाके में अवैध तरीके से विस्फोटक सामग्री रखता है। तब उस पर कोई कार्रवाई नहींकी गई। माना जा रहा है कि कुछ राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों से उसकी नजदीकी के चलते उसके खिलाफ कोई सख्ती नहींबरती गई। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान न्यायिक जांच की बात कर रहे हैं और भरोसा दिला रहे हैं कि दोषियों को बख्शा नहींजाएगा, तो इस पर यकीन करने के अलावा कोई चारा नहींहै। जनता केवल राहत पाने का इंतजार ही कर सकती है। राजेंद्र कास्वा फिलहाल फरार है, कुछ अफवाहें उड़ी कि वह भी इस घटना में मारा गया है, लेकिन इसकी कोई पुष्टि नहींहुई है। राजेंद्र कास्वा कानून की गिरफ्त में आता है तो उसे कब तक और कितनी सजा मिलेगी, इस बारे में संदेह है। भोपाल गैस कांड में मुआवजे और सजा का दृष्टांत जनता के सामने है। कहा जाता है कि मनरेगा के तहत कुएं की खुदाई के लिए सरकार जो धनराशि आबंटित करती है, उसे पाने के लिए आदिवासी बहुल इलाके झाबुआ में विस्फोटकों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से किया जाता है। राजेंद्र कास्वा इसी धंधे में लिप्त था। आदिवासियों को पानी की उपलब्धता कितनी हासिल हुई, यह अलग जांच का विषय है, फिलहाल यह नजर आ रहा है कि कुओं की खुदाई के नाम पर लाखों रुपए व्यापारियों ने भ्रष्टाचार से कमाए हैं। झाबुआ विस्फोट से भ्रष्टाचार का यह रूप भी सामने आया है। देश के कई इलाकों में इसी तरह विस्फोटकों का गोरखधँधा चलता है और सरकारें व प्रशासन शायद ऐसी किसी बड़ी घटना के होने का इंतजार करती हैं।

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