• हमें साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपनी खामोशियां तोड़नी होंगी : गाताडे

    हम एक अजीब दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें खून बहाने वालों को स्वागत किया जा रहा है और दाभोलकर, पनसारे और प्रो. कुलबर्गी जैसे प्रगतिशील विचारकों के लिए उन्हें निर्मम मौतें दी जा रही हैं। ऐसे दौर में हमें अपनी खामोशियां तोड़नी होगी।...

    नेहरू से लेकर मोदी तक हमने बहुत कुछ खो दिया: गाताडे

    लखनऊ, 18 सितम्बर। सामाजिक संस्था कलम विचार मंच के तत्वावधान में आज ‘तर्क और विचारों से नफरत क्यो?’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह के जयशंकर सभागार में किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं वामपंथी विचारक सुभाष गताडे रहे। उन्होंने अपने विचार प्रगतिशील विचारकों नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पनसारे और प्रो. कुलबर्गी की निर्मम हत्याओं के मुख्य संदर्भ मे व्यक्त की।

    श्री गाताडे ने कहा कि हम दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले दो सालों में हमने ऐसी अजीम शख्सियतों को खोया, जो देश को प्रगतिशील विचारों के वाहक माने जाते रहे हैं। इन शख्सियतों का दोष सिर्फ इतना था कि वे अंधविश्वास और अंधश्रद्धा की वास्तविकता को तर्क के तराजू पर तौलते थे। यह घटनाएं यह बताती हैं कि हमने आजादी के बाद लोकतंत्र में नेहरू से लेकर मोदी तक बहुत कुछ खो दिया है। उन्होंने कहा कि ये हत्याएं ऐसे समय में हो रही हैं जब दक्षिण एशिया में मानवतावादी लागों की निर्मम हत्याओं की मुहिम चलाया जा रहा है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी इसी तरह की मुहिम चल रही है। म्यांमार, श्रीलंका आदि में भी इसी तरह की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। 2008 में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित को जब बम विस्फोट के आरोप में नासिक कोर्ट में पेश किया गया था तब उन पर गुलाब की पंखुडि़यां बरसायी गई थी। ऐसे में हम देख सकते हैं हम एक अजीब दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें खून बहाने वालों को स्वागत किया जा रहा है और दाभोलकर, पनसारे और प्रो. कुलबर्गी जैसे प्रगतिशील विचारकों के लिए उन्हें निर्मम मौतें दी जा रही हैं। ऐसे दौर में हमें अपनी खामोशियां तोड़नी होगी।

    श्री गताडे ने कहा ऐसी बातें पहले कभी-कभार सुनी जाती है परंतु अब इस खतरनाक प्रवृत्ति की आहट बहुत नजदीक से सुनाई देने लगी है। अभी हाल में इस लिस्ट में मैसूर के विद्वान श्री भगवान भी शामिल हो गए हैं जिन्हें कट्टरवादियों की तरफ से बराबर धमकियां दी जा रही हैं। साहित्यकार और कलमकारों को एक कुछ रूढि़वादी विचारों के लोगों द्वारा उनकी आवाज को दबाने के लिए देश भर में कुचक्र रचा जा रहा है। इन मौतों का जवाब हमें ढूंढना ही पड़ेगा? दाभोलकर, पंसारे और प्रो. कुलबर्गी को हम सुकरात के वारिस के रूप में मान सकते हैं जिन्होंने ज्ञान व तर्क के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।


    आखिर हम इस मुकाम तक पहुंचे कैसे? हिन्दुस्तानी आवाम की एकता को तोड़ने के लिए आजादी के बाद साम्प्रदायिकता के स्वर को मजबूती से उभारा गया। देश में धर्मनिरपेक्षता की पहचान गायब होने के कगार पर है। धर्म की राजनीति करने वाली शक्तियां भारत के साथ-साथ दक्षिण एशिया में एकजुट हो रही हैं।

    तार्किक विचारों से नफरत करने वालों का प्रतिकार करने से पहले हमें अपनी आत्ममुग्धता से बचना होगा। जैसा राजनीतिक माहौल बन रहा है उसमें इसी आत्ममुग्धता को बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। हमारे बीच एक ऐसा वर्ग तैयार हो चुका है जो आसाराम बापू, राधे मां, बाबा राम प्रताप, निर्मल बाबा जैसे लोगों का अनुसरण करने तथा उनके लिए लड़ाई लड़ने को आतुर रहते हैं। जो माहौल बन गया है उसमें किसी के स्वतंत्र सोचने, लिखने व मनन करने की गुंजाइश खत्म होती जा रही है। इसको रोकने के लिए भी हमें मजबूती से प्रयास करने की जरूरत है। साम्प्रदायिकता के खिलाफ हमें अपनी खामोशियां तोड़नी होगी। हमें समाज में उनके हितों के अपनी भागीदारी को बढ़ाकर अंधविश्वास के खिलाफ लोगों में जागरूकता लाकर सांप्रदायिकता के जहर से बच सकते हैं साथ ही इसके फैलने की गुंजाइश भी खत्म कर सकते हैं।

    कार्यक्रम का संयोजन कलम विचार मंच के संयोजक एवं प्रख्यात शिक्षाविद प्रो. नदीम हसनैन ने की। इस अवसर पर तमाम बुद्धिजीवी वर्ग, साहित्यकार, कलमकार, प्रगतिशील महिलाएं, शिक्षाविद, छात्र व शहर के आदि उपस्थित रहे।

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