दृश्य-श्रव्य माध्यम के रुप में टेलीविजन के घर-घर पहुंचने से पहले रेडियो ही जनसंचार का सबसे सशक्त और प्रभावी माध्यम था। रेडियो पर कार्यक्रम आज भी सुने जाते हैं पर श्रोताओं की संख्या काफी कम हो गई है। हालांकि जनसंचार माध्यम के रुप में उसकी उपयोगिता और प्रभावशीलता का आज भी कोई जवाब नहीं हो सकता बशर्तें रेडियो को फिर से लोकप्रिय बनाने के प्रयास हों। आकाशवाणी पर मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह के गोठ के कार्यक्रम से रेडियो की ओर लोगों का एक बार फिर ध्यान गया है। वे एक अच्छे वक्ता तो है ही, रेडियो पर बोलते हुए वे एक ऐसे ब्राडकास्टर की तरह लगे जो भावनाओं के संप्रेषण के लिए श्रोताओं से अपनेपन का रिश्ता जोड़ लेता है। मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम में दिलों को छूने की भरसक कोशिश की। राज्य में जब अकाल की छाया मंडराने लगी है, किसान यही चाह रहे हैं कि इस विकट घड़ी में सरकार उनकी मदद करने आगे आए। मुख्यमंत्री ने इस बात का भरोसा भी दिलाया है। उनकी छवि एक सहृदयराजनेता की रही है और जब कहते हैं कि दीन-दुखियों की सेवा करते हुए वे यहां तक पहुंचे और आगे भी इसके लिए तत्पर रहेंगे तो उन पर लोगों का विश्वास ही मजबूत नहीं होता बल्कि लगता है कि उन्होंने जो उम्मीद कर रखी है, वे निराश होने नहीं देंगे। भाषा की अपनी संप्रेषणशीलता होती और डा. रमन इसे भलीभांति समझते हैं। उन्होंने राज्य की संस्कृति और भाषा अपने 'गोठÓ में शामिल किया और न केवल तीज की छत्तीसगढ़ी में बधाई दी बल्कि हाल के त्यौहारों में घर-घर में बनने वाले खास छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की चर्चा कर यह भी जता दिया कि राज्य की सांस्कृतिक विरासत में हमारी पहचान छिपी हुई है। मुख्यमंत्री से यह सब सुनकर लोग उनके और करीब हो गए। आकाशवाणी पर 'रमन के गोठÓ कार्यक्रम प्रधानमंत्री के 'मन की बातÓ से प्रभावित लगती है फिर भी एक मुख्यमंत्री के रुप में वे हर महीने रेडियो पर जनता से मुखातिब हों, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। उन्होंने अपने संबोधन में स्वच्छता अभियान में लोगों से जुटने का आह्वान किया। प्रसारण सिर्फ पंद्रह मिनट का था, लेकिन उन्होंने इतने ही समय में वे सब बातें लोगों के सामने रख दीं, जो सामयिक और राज्यहित में जरुरी थीं। इस कार्यक्रम से लोगों को जोड़े रखने के लिए इसे रोचक बनाए रखना जरुरी है। यह भी कहना होगा की लोग उनसे सुनना चाहते हैं। संवाद भी एक कला है और आज मुख्यमंत्री ने अपने पहले संबोधन में इसका खूब परिचय दिया। वे राज्य के ग्रामीण जनजीवन से तारतम्य नहीं बिठा पाते यदि वे इसमें संस्कृति की चर्चा नहीं करते। अक्ती, सवनाही, हरेली, पोला और तीजा जैसे राज्य के लोकपर्वों पर भी वे बोले। यों तो मुख्यमंत्री सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों से जुड़े हुए हैं पर रेडियो वह माध्यम है जिसके जरिए घरों से लेकर खेत-खलिहान तक सहजता से पहुंचा जा सकता है।