• केन्द्रीय कारागार बरेली में क्रांतिकारी गणेश घोष के नाम पर बैरक, द्वार और स्मृति-पटल

    वरिष्ठ साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि बंगाल के क्रांतिकारी गणेश घोष के नाम पर उन्होंने दो वर्ष पूर्व बरेली के केन्द्रीय कारागार में एक बैरक के द्वार का नामकरण कराने के साथ ही उनकी स्मृति में शिलालेख तथा उनका चित्र भी लगवा दिया है। विद्यार्थी का कहना है कि ऐसा उन्होंने केन्द्रीय कारागारों में रहे देश के क्रांतिकारियों की स्मृति को जीवंत बनाए रखने के अपने उस अभियान के तहत किया है ...

    कोलकाता । चटगांव केस से जुड़े क्रांतिकारी गणेश घोष अपने साथी प्रतुल भट्टाचार्य के साथ बरेली केन्द्रीय कारागार में नजरबंद रखे गए थे। जिन दिनों वे यहां कैद थे तब काकोरी केस के विख्यात क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्त और उनके साथी शचीन्द्रनाथ बख्शी, राजकुमार सिन्हा और मुकुन्दीलाल भी वहां सजा काट रहे थे।

    उत्तर प्रदेश के बरेली नगर से आए वरिष्ठ साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि बंगाल के क्रांतिकारी गणेश घोष के नाम पर उन्होंने दो वर्ष पूर्व बरेली के केन्द्रीय कारागार में एक बैरक के द्वार का नामकरण कराने के साथ ही उनकी स्मृति में शिलालेख तथा उनका चित्र भी लगवा दिया है।

    विद्यार्थी का कहना है कि ऐसा उन्होंने केन्द्रीय कारागारों में रहे देश के क्रांतिकारियों की स्मृति को जीवंत बनाए रखने के अपने उस अभियान के तहत किया है जिसके चलते अब तक बरेली केन्द्रीय कारागार में 11 तथा आगरा के केन्द्रीय कारागार में 10 क्रांतिकारियों की स्मृतिरक्षा का कार्य पूरा कर चुके हैं। इन दिनों नैनी केन्द्रीय कारागार इलाहाबाद में उनका यह कार्य जारी है।

    मन्मथनाथ ने अपनी आत्मकथा में जेल के भीतर गणेश घोष से मिलने का जिक्र करते हुए बताया है कि बंगाल के वे दोनों क्रांतिकारी वहां दुबाड़ा चक्कर (सर्किल) में बंद किए गए थे जो उनके अहातेे से 200 गज के अंदर ही था और वे किसी तरह उनसे मिलने की तरकीब निकाल लेते थे। गणेश घोष और प्रतुल भट्टाचार्य ने मन्मथनाथ जी से जोर देकर कहा कि वे जल्दी छूट जाएंगे और बाहर जाकर वे अपनी लड़ाई को वहीं से शुरू कर देंगे जहां छोड़ आए थे।


    गणेश घोष के अनुरोध पर ही मन्मथनाथ ने काकोरी के मामले और उसमें शहीद हुए क्रांतिकारियों की पहली कहानी बरेली जेल के भीतर ही लिखकर गणेश घोष से छूटने पर चुपके से उन्हें सौंप दी थी जिसे बाहर निकलने पर उन्होंने पत्रकार मणीन्द्र नारायण राय को सौंप दिया। राय ने इसे छपवाया लेकिन पुस्तक जब्त कर ली गई और ऐसा करने के लिए दोषी ठहराते हुए राय को 18 महीने की सजा भी दी गई।

    श्री विद्यार्थी ने बताया कि वे 35 वर्ष पूर्व 1980 में अमर शहीद यतीन्द्रनाथ दास की बलिदान अर्धशताब्दी पर  देश के अनेक क्रांतिकारियों के साथ कोलकाता आए थे जिनमें यतीन्द्र के जेल के साथी भी थे। उसी अवसर पर उन्होंने गणेश घोष से भी मुलाकात की थी। तब गणेश घोष के सादा जीवन और उनकी राजनीतिक पक्षधरता से वे बहुत प्रभावित हुए थे।

    श्री विद्यार्थी करीब एक महीने के कोलकाता प्रवास पर हैं। वे यहां रह कर अपने साहित्यिक मित्रों से भेंट-मुलाकात करने के साथ क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास के बिखरे और विस्मृत सूत्रों की खोजबीन का अपना सिलसिला जारी रखना चाहते हैं। इस विषय पर अब तक उनकी 35 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  उनका कहना है कि जगहों को देखना उनकी फितरत है। इसलिए वे उस पुराने कलकत्ता की भी अपनी आंखों से जांच-परख करना चाहते हैं जिसे कभी देश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था और जो अपनी उम्र के 325 वर्ष पूरे कर चुका है। उन्होंने कहा कि कलकत्ता सदैव उनके लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है।

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