• अंधेरे में...स्मार्ट शहर

    सूचना प्रौद्योगिकी, उद्योग, कारखाने, विकास के इन तमाम पैमानों पर आगे बढ़ते हुए देश के कुछ हिस्से बेहद आधुनिक और उन्नत कहलाने लगे। यहां रहना शान का प्रतीक बनने लगा और देश का युवा वर्ग, जो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का मुलाजिम बनने के लिए ही डिग्री हासिल करता है, ...

    सूचना प्रौद्योगिकी, उद्योग, कारखाने, विकास के इन तमाम पैमानों पर आगे बढ़ते हुए देश के कुछ हिस्से बेहद आधुनिक और उन्नत कहलाने लगे। यहां रहना शान का प्रतीक बनने लगा और देश का युवा वर्ग, जो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का मुलाजिम बनने के लिए ही डिग्री हासिल करता है, इन शहरों में आकर बसने के लिए लालायित होने लगा। आलीशान रिहायशी इमारतें, चमक-धमक से भरे बाजार, मनोरंजन, खान-पान की महंगी सुविधाएं, तेज रफ्तार विदेशी गाडिय़ां और लंबी-चौड़ी सड़केें इन शहरों, क्षेत्रों की पहचान बन गई है। देश में सरकार द्वारा निर्मित स्मार्ट शहर जब बनेंगे, तब बनेंगे, फिलहाल तो गुडग़ांव, नोएडा, बंगलोर जैसे शहर ही आज के भारत के लिए स्मार्ट का पर्याय हैं। लेकिन इन चमचमाते शहरों में मानवता के मुख पर कालिख पोतने की घटनाएं जिस तेजी से सामने आती हैं, उससे यह संदेह होता है कि क्या इनकी नींव भावनाओं और संवेदनाओं की कब्र पर खड़ी की गई है? कुछ वर्षों पहले खबर आई थी कि गुडग़ांव के चंद बड़े रिहायशी इलाकों की बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले घरेलू सहायकों के लिए अलग लिफ्ट चाहते हैं। कुत्ते-बिल्लियों को प्यार से पालने वाले, उन्हें अपने सोफे और बिस्तर पर बिठाने वालों को इस बात से परहेज है कि उनके घर झाड़ू-पोंछा करने वाले लोग उनके साथ एक लिफ्ट में आए-जाएं। इन घरेलू सहायकों को जानवरों से भी बदतर दशा में रखने की कई घटनाएं पूर्व में आ चुकी हैं। सुबह से लेकर रात तक विदेशी कंपनियों की चाकरी में लगे लोगों के पास अपने घर का काम करने का वक्त नहींहोता, लिहाजा वे प्लेसमेंट एजेंसियों की सहायता लेते हैं। ये एजेंसियां झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, प.बंगाल आदि से गरीबी के मारे लोगों को काम के नाम पर ले आती हैं। इसमें बिचौलियों और दलालों की बड़ी भूमिका होती है। अक्सर अपनी किशोरवय बच्चियों को कुछ पैसों के लिए मां-बाप इन दलालों के साथ भेज देते हैं, इस उम्मीद पर कि वे वहां काम करेंगी और यहां इन्हें पैसे मिलेंगे। इन बच्चियों का शारीरिक और मानसिक शोषण आम बात हो गई है। हाल ही में जयपुर के एक होटल में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई है, उसे भी नौकरी का लालच देकर लाया गया था। नोएडा में एक किशोरी 13वींमंजिल की बालकनी से साड़ी के सहारे लटक कर 12वींमंजिल पर पहुंच गई और वहां रहने वालों से बचाने की गुहार लगाई। उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी से लाई गई इस लड़की ने बताया कि उसके पिता फलों का जूस बेचते हैं और परिवार बेहद गरीब है। इसलिए एक परिवार के पास रहकर काम करने और साथ ही पढ़ाई की सुविधा के लालच में 30 हजार रुपयों के बदले उसके पिता ने उसे भेज दिया। यहां उससे दिन-रात काम लिया जाता और मारा-पीटा जाता। प्रताडऩाओं से तंग आकर उसने 13वींमंजिल की बालकनी से निकलकर बचने का जोखिम उठाया। फिलहाल यह लड़की बचपन बचाओ आंदोलन को सौंप दी गई है। उधर गुडग़ांव में सऊदी अरब के राजदूत के सचिव (प्रथम) के घर पर दो नेपाली महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। भूकंप के बाद काम की तलाश में भारत पहुंची ये दोनों महिलाएं मां-बेटी हैं और इन्हें जान से मारने की धमकी देकर लगातार इनका शोषण किया जाता रहा। इन्हें सऊदी अरब भी ले जाया गया और वहां भी रोजाना कई बार इनके साथ बलात्कार हुआ। इनके साथ 28 अन्य महिलाओं को भी ले जाया गया था, जिनका कोई अता-पता नहींहै। गुडग़ांव के घर में जहां ये बंधक थी, एक और लड़की काम के लिए पहुंची और वहां इनकी दुर्दशा देखकर वह किसी तरह नेपाल वापस गई और वहां एक एनजीओ मैती इंडिया को सारा वृत्तांत सुनाया, तब जाकर मामला सामने आया। गौरतलब है कि उस इमारत में रहने वाले संपन्न लोगों ने अपने पड़ोस में हो रहे इस अनाचार का संज्ञान नहींलिया।  इस अपराध में आरोपियों पर अब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहींहो पाई है क्योंकि उस फ्लैट में रहने वालों को राजनयिक संरक्षण हासिल है। 1961 में वियना में हुई संधि हुई के तहत विदेशी राजनयिकों को राजनयिक संरक्षण दिया गया था। इस संधि के अनुच्छेद संख्या 29 में कहा गया है कि किसी भी राजनयिक को हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। उसे गिरफ़्तार भी नहीं किया जा सकता और ना ही उसके खिलाफ़ कोई ऐसी कार्रवाई की जा सकती है जिससे उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे। इस संधि के अनुच्छेद संख्या 31 में ये भी कहा गया है कि किसी राजनयिक को आपराधिक मुकदमे से भी छूट हासिल है। ऐसे में अगर भारत सउदी राजनयिक पर कोई कार्रवाई करना चाहता है तो उसे सबसे पहले सउदी अरब से राजनयिक संरक्षण को हटाने के लिए कहना पड़ेगा। अगर अंतरराष्ट्रीय क़ानून को नजऱअंदाज़ कर भारत कोई कार्रवाई करता है तो सउदी अरब भी भारत के राजनयिकों के साथ ऐसा ही कर सकता है। यह नजर आ रहा है कि राजनयिक संरक्षण के पेंच में फंसी दो पीडि़त महिलाएं इंसाफ के लिए तरस रही हैं। अब यह सरकारों को तय करना है कि उन्हें राजनयिकों की रक्षा करनी है या इंसानियत की।

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