राज्य सरकार चाहती है कि प्रदेश में शराबबंदी लागू कर देनी चाहिए पर इसमें एक बड़ा पेंच है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह कह चुके हैं कि सरकार शराबबंदी की दिशा में इस तरह आगे बढऩे की मंशा रखती है, जिससे इसे प्रभावी भी बनाया जा सके। यह कब तक होगा इसकी कोई समय-सीमा सरकार नहीं रख सकी है। सरकार पर आरोप लगता रहा है कि उसने गली-कूचों तक में शराब की दुकानें खुलवा दीं। ये अवैध शराब दुकानें पुलिस और आबकारी के संरक्षण में चल रही हैं। शराब की लाइसेन्सी दुकानें रात 10 बजे तक ही खुली रह सकती हैं, लेकिन अवैध अड्डों पर शराब चौबीसों घंटे बिक रही है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। नशाबंदी के पक्षधर लोग सरकार पर तंज कसते हैं कि यदि राज्य में प्रगति देखनी है तो मांस और मदिरा के बढ़ते ठिकानों को देख लेना चाहिए। दूसरी ओर उनका यह भी मानना है कि राज्य में शराबबंदी लागू कर दी जाए तो राज्य को विकसित राज्य का दर्जा हासिल करने ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। शराबबंदी के लिए सरकार जनमत तैयार करने की कोशिश में है। भारतमाता वाहिनी जैसा सरकार का उपक्रम उसके इसी प्रयास का हिस्सा है। गांव-गांव में इस वाहिनी का गठन करने का प्रयास चल रहा है। इस वाहिनी की महिलाएं गांव के भले-बुरे पर विचार करती हैं। सरकार ने तय किया है कि यदि किसी शराब दुकान के खिलाफ महिलाओं का संगठित विरोध सामने आता है तो वह दुकान बंद कर दी जाएगी। 2000 से कम की आबादी में खोली गई ऐसी कई शराब दुकानें बंद भी की जा चुकी हैं। सरकार इसे ही शराबबंदी की दिशा में उठाए गए कदम के रुप में देख रही है। सरकार चाहे तो कल शराबबंदी का आदेश जारी कर सकती है, लेकिन इसके दुष्परिणामों का जोखिम उठाना भी उसके लिए सहज नहीं है। राज्य में आदिवासियों की बहुलता है और शराब उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में शामिल रही है। आदिवासियों के अपने उपयोग के लिए शराब बनाने की छूट इसी आधार पर मिली हुई है। लेकिन जब ननकी राम कंवर जैसे आदिवासी नेता नशाखोरी को आदिवासियों की एक बड़ी बुराई के रुप में देखते हैं तो लगता है कि उन जैसे कुछ लोग प्रयास करें तो शराबबंदी लागू करने का जनमत तैयार किया जा सकता है। आदिवासी समाजसेवियों ने यह मार्ग दिखाया भी है। राजमोहिनी देवी और गहिरा गुरु जैसे आदिवासी समाजसेवी अब नहीं रहे पर उनके कई अनुयायी आज भी मांस-मदिरा से दूर हैं। आदिवासी समाज से बुराइयों को खत्म करने के लिए उन्होंने जो कार्य किया उसे आगे बढ़ाने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जरुरत है। जब तक लोग खुद शराबबंदी के लिए आगे नहीं आते, अकेले सरकार इसे पूरी तरह नहीं रोक सकती। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री कहते भी हैं कि शराबबंदी सरकार के एक फैसले से लागू नहीं की जा सकती। इसके लिए राज्य के लोगों को तैयार करने का काम करना होगा। हालांकि शराब के व्यवसाय को हतोत्साहित करने के लिए सरकार अधिक कुछ नहीं कर पा रही है। इससे प्राप्त होने वाले राजस्व का मोह उसे छोडऩा होगा। सरकार एक तरफ तो शराब की बिक्री बढ़ाने पर जोर दे रही ताकि उसे अधिक राजस्व मिले और दूसरी ओर वह शराबबंदी का वातावरण बनते हुए भी देखना चाहती है। सरकार की मंशा यदि सचमुच शराबबंदी की है तो उसे कुछ कड़े और प्रभावी कदम उठाने होंगे।