• धार्मिक खाई बढ़ाने की साजिश

    भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं व अल्पसंख्यकों के बीच धर्म के नाम पर बनी खाई को और गहरा करने का षड्यंत्र किस तरह चुपके-चुपके चल रहा है, इसका ताजा उदाहरण हाल ही के दो प्रसंगों से दिया जा सकता है। ...

    भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं व अल्पसंख्यकों के बीच धर्म के नाम पर बनी खाई को और गहरा करने का षड्यंत्र किस तरह चुपके-चुपके चल रहा है, इसका ताजा उदाहरण हाल ही के दो प्रसंगों से दिया जा सकता है। महाराष्ट्र में मुंबई से सटे मीरा भायंदर नगरपालिका में पर्यूषण पर्व के दौरान मटन-चिकन की दुकानें बंद रखने का प्रस्ताव भाजपा की ओर से आया है। गौरतलब है कि 10 से 28 सितम्बर तक जैन समुदाय का पर्यूषण पर्व होगा। इन 18 दिनों में क्षेत्र की मटन व चिकन की सभी दुकानें बंद रखी जाएं, ऐसा भाजपा चाहती है। उसके इस प्रस्ताव पर कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना भी विरोध में है। मांसाहार बेचने वाले दुकानदार चिंतित हैं कि अगर ऐसा निर्णय होता है तो वे किस तरह अपना घर चलाएंगे। लेकिन यह प्रतीत होता है कि भाजपा को किसी की रोजी-रोटी से अधिक धर्म के नाम पर अपनी रोटी सेंकने की अधिक फिक्र है। तभी ऐसा प्रस्ताव लाया गया। पूरे हिंदुस्तान में जैन धर्मावलंबी रहते हैं और हर वर्ष पर्यूषण का पर्व पूरी निष्ठा व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दौरान धार्मिक परंपराओं व मान्यताओं के अनुरूप आचार-व्यवहार के जिन नियमों का पालन करना होता है, वे करते हैं। ठीक उसी तरह, जैसे अन्य धर्मों, जातियों, संप्रदायों के लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों का पालन समय-समय पर करते हैं। एक धर्म के पर्व-उत्सव में दूसरे धर्म की मान्यताएं बाधित, खंडित नहींहोती हैं। यही इस हिंदुस्तान की खूबसूरती है। अगर पर्यूषण पर्व के दौरान मांसाहार की दुकानें एक इलाके में बंद करने का सफल प्रयोग कर लिया गया तो भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति अन्य स्थानों में होने की पूरी संभावना है। मुमकिन है इसके बाद अन्य धार्मिक अवसरों पर भी ऐसी मांगें उठने लगें, तब उन्हें किस तरह रोका जाएगा। या फिर बहुसंख्यकों को खुश करने के लिए इसी तरह के फैसले लिए जाते रहेंगे। तब तो उस तबके के समक्ष रोजगार का गंभीर संकट खड़ा होगा, जो आज मुख्यधारा में यूं ही काफी पिछड़ा हुआ है। दूसरा प्रसंग गुजरात का है। संयोग से यहां भी भाजपा की सरकार है। गुजरात सरकार के गौसेवा व गौचर विकास बोर्ड ने अहमदाबाद के बापूनगर में जन्माष्टमी के अवसर पर मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल व इस्लाम के प्रतीक चांद-तारे के साथ बिलबोर्ड लगवाया है, जिसमें लिखा है कि -अकरामुल बकरा फिनाह सैयदुल बाहिमा। इसका मतलब बताया गया है कि -पशुओं में गाय सबसे जरूरी है, इसलिए इसका सम्मान किया जाना चाहिए। इसका दूध, घी और मक्खन दवाई के काम आता है। जबकि इसका मीट कई बीमारियों का कारण बनता है। इस विज्ञापन के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि कुरान में भी गौमांस न खाने की सलाह दी गई है। हालांकि इस दावे का कोई पुख्ता आधार सरकार के पास नहींहै। बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कठरिया ने कहा, मुझे ये लाइनें और इसका अनुवाद 20 पेज के हिंदी और गुजराती बुकलेट में मिला। उन्होंने दावा किया है कि बुकलेट उनके राजकोट स्थित घर पर है। हालांकि, उन्हें राइटर और पब्लिशर्स का नाम याद नहीं है। इधर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मुफ्ती अहमद देवलावी ने इस प्रकार के किसी दावे को नकारा है। उन्होंने कहा कि कुरान में गोमांस को लेकर इस प्रकार की कोई बात नहीं की गई है। उन्होंने कहा, पवित्र कुरान में इस प्रकार का मैसेज कहीं भी नहीं लिखा है। यह संभव है कि किसी अरबी स्टेटमेंट को गलती से कुरान से जोड़ा जा रहा है। मुस्लिमों को भ्रमित करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। इस विज्ञापन के जरिए एक ओर गौमांस के सेवन का संबंध केवल मुस्लिमों से बताने की कोशिश की गई है, जबकि अन्य धर्मावलंबी भी गौमांस का सेवन करते हैं। दूसरी बात जन्माष्टमी के अवसर पर ऐसे विज्ञापन लगाने से धार्मिक खाई को बढ़ाने का प्रयास किया गया है। अगर धर्मग्रंथों के नाम पर तथाकथित सलाहें-मशविरे लोकतांत्रिक सरकारें प्रचारित करवाएंगी तो इससे उनके राजनीतिक प्रयोजन भले सिद्ध हो जाएं, धर्म और लोकतंत्र का नुकसान होना तय है। महाराष्ट्र और गुजरात की इन घटनाओं का असर उन सीमित इलाकों तक ही नहींरहेगा, बल्कि इसका दायरा बढऩे में वक्त नहींलगेगा। इन साजिशों को अनदेखा नहींकरना चाहिए, बल्कि समाज को इसके खिलाफ आवाज उठाकर यह बताना चाहिए कि अपने धर्म की रक्षा वे स्वयं कर सकते हैं, राजनीतिक दल और सत्तारूढ़ सरकारें इसकी चिंता न करें।

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