• ओआरओपी : अभी पूरी जीत नहीं

    पिछले चार दशकों से समान रैंक, समान पेंशन (ओआरओपी) की मांग कर रहे पूर्व सैनिकों ने अपनी जंग का एक मोर्चा जीत लिया है, जिसमें सरकार बराबर सर्विस व बराबर रैंक वाले सैनिकों को एक समान पेंशन देने पर राजी हो गई है।...

    पिछले चार दशकों से समान रैंक, समान पेंशन (ओआरओपी) की मांग कर रहे पूर्व सैनिकों ने अपनी जंग का एक मोर्चा जीत लिया है, जिसमें सरकार बराबर सर्विस व बराबर रैंक वाले सैनिकों को एक समान पेंशन देने पर राजी हो गई है। एक जुलाई 2014 से लागू इस प्रावधान के तहत 2 साल में चार बराबर किश्तों में एरियर मिलेगा और हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा होगी। पूर्व सैनिकों की विधवाओं को एकमुश्त एरियर देने का निर्णय स्वागतेय है। योजना लागू करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति बनाने का ऐलान सरकार ने किया है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को लेकर जो नाराजगी आंदोलनरत सैन्यकर्मियों को थी, उसे दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कहना पड़ा कि ओआरओपी का लाभ सिपाही, नायक सहित हर पेंशनधारी जवान को मिलेगा। इसमें सेना के नियमों के अनुसार वीआरएस लेनेवाले और अंग-भंग होने के कारण मजबूरन नौकरी छोडऩेवाले भी शामिल होंगे। प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण के बाद आंदोलनरत पूर्व सैनिकों ने अनशन का विचार फिलहाल त्याग दिया है। लेकिन उन्हें अपनी सभी मांगें पूरी होने का इंतजार है। इसलिए ऐसा मानना कि मोदी सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति से एक दीर्घकालिक समस्या को सुलझा लिया, जल्दबाजी का निष्कर्ष होगा। अभी स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में नरेन्द्र मोदी ने ओआरओपी मसले पर समाधान की इच्छा होते हुए भी कुछ तकनीकी उलझनों का जिक्र किया था। 15-20 दिनों के भीतर इन तकनीकी, व्यावहारिक उलझनों को सुलझाने के पीछे दो प्रमुख कारक जिम्मेदार रहे, एक संघ का दबाव, दूसरा आसन्न बिहार चुनाव। ओआरओपी की घोषणा से ठीक पहले संघ की तीन दिवसीय बैठक हुई और इसमें सरकार के कामकाज की समीक्षा की गई। पूर्व सैन्यकर्मियों का आंदोलन तेज हो रहा था और वर्तमान सैनिकों के भी इसमें शामिल होने की संभावनाएं बढ़ रही थीं। संघ नहींचाहता कि सरकार की छवि खराब हो, इसलिए मुमकिन है उसकी ओर से सरकार पर निर्णय लेने का दबाव बना हो। दूसरा पहलू बिहार विधानसभा चुनावों का है। चुनाव की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है और उसके बाद सरकार कोई फैसला नहींले सकती। साथ ही वह बिहार के मतदाताओं के बीच सैनिकों को असमंजस में रखने का इल्जाम लिए भी नहींजाना चाहती। इसलिए चुनावों की तारीखों की घोषणा के पहले ही ओआरओपी की घोषणा करना सरकार ने मुनासिब समझा। अब वह अपने प्रचार में इस बात को सीना ठोंककर प्रचारित कर सकती है कि उसने अपना वादा निभाया और कांग्रेस ने इतने सालों में कुछ नहींकिया। रविवार को फरीदाबाद में मेट्रो के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी सुर में श्रोताओं को संबोधित भी किया, जिसमें बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक भी उपस्थित थे। बल्कि भाषण के पहले जिस तरह पूर्व सैनिकों ने उनका अभिनंदन किया, उससे जाहिर है कि ओआरओपी की घोषणा चुनावी लाभ को ध्यान में रखते हुए की गई है। इस योजना से करीब 26 लाख सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों और छह लाख से अधिक विधवाओं को लाभ होगा, यह अच्छी बात है। किंतु अभी कई मसले हैं, जिनका समाधान होना बाकी है। उदाहरण के लिए सैनिक चाहते हैं कि आयोग 1 माह में रिपोर्ट दे, एक सदस्यीय की जगह 4 सदस्यीय आयोग बने और योजना की हर साल समीक्षा हो। सरकार अगर इन मांगों को पूरा नहींकरती है तो पूर्व सैनिकों ने फिर से आंदोलन की चेतावनी दी है। यह देखने वाली बात होगी कि सरकार किस तरह पूर्व सैनिकों को शांत और संतुष्ट करती है और किस तरह इस पेचीदा समस्या को सुलझाती है। इस बीच अद्र्धसैनिक बलों ने कहा है कि उनका काम भी सेना की तरह ही जोखिम भरा है, अत: उन्हें भी सेना के बराबर सुविधाएं मिलनी चाहिए। कुछ और तबकों से भी इसी तरह की मांगे उठ रही हैं। सरकार संतुष्टिकरण की नीति पर चलेगी या समस्याओं का व्यावहारिक हल निकालने पर ध्यान देगी, यह देखने वाली बात होगी।

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