• इधर सूखा, उधर हाथियों का कहर

    छत्तीसगढ़ के किसान मुश्किल में हैं। राज्य में अवर्षा की स्थिति तो बनी हुई है, उत्तरी इलाके में हाथियों का कहर भी शुरु हो गया है। अभी धान की बालियां निकलने में देरी है, लेकिन हाथियों ने अभी से आबाद इलाकों का रुख करना शुरु कर दिया है। ...

    छत्तीसगढ़ के किसान मुश्किल में हैं। राज्य में अवर्षा की स्थिति तो बनी हुई है, उत्तरी इलाके में हाथियों का कहर भी शुरु हो गया है। अभी धान की बालियां निकलने में देरी है, लेकिन हाथियों ने अभी से आबाद इलाकों का रुख करना शुरु कर दिया है। हाथियों की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित सरगुजा में हाथियों का एक बड़ा झुण्ड इन दिनों बतौली विकास खण्ड के गंावों से लगे जंगलों में जमा हुआ है और रह-रहकर खेतों में लगी फसल को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। कुछ ही दिनों में इन हाथियों ने किसानों की 17 एकड़ में लगी गन्ने की फसल को तबाह कर दिया है। हाथियों का इस मौसम में आबाद इलाकों का रुख करना एक बड़े खतरे का संकेत है। आम तौर पर इस मौसम में जंगलों में चारे-पानी की कमी नहीं होती, लेकिन हाथी इस मौसम में भी जंगलों से बाहर निकल रहे हैं। अब तक का अनुभव यही रहा है कि हाथी धान के खेतों में फसल पकने या खलिहानों में आ जाने के बाद गांवों में घुसते थे, लेकिन ऐसा लगता है कि मौसम की बेरुखी का असर जंगलों में हाथियों के चारे-पानी पर भी पड़ा है। समझा जा सकता है कि यदि अवर्षा की स्थिति ऐसी ही बनी रही तो खतरा कितना भयावह हो सकता है। सरगुजा और बिलासपुर संभाग के कमोबेश सभी आठ जिले हाथियों की समस्या से प्रभावित हंै। इन जिलों में 425 ऐसे गांव हैं, जहां हाथी उत्पात मचाते रहे हैं। हाथियों के हमले में हर साल दो दर्जन से अधिक लोग मारे जा रहे हैं। फसलों की तबाही भी बढ़ती ही जा रही है। ये हाथी कोरबा जिले में एक किसान के आत्महत्या कर लेने का कारण भी बन गए। किसान ने कर्ज लेकर फसल लगाई भी और हाथियों ने बर्बाद कर दी। इस किसान के आत्महत्या कर लेने की घटना पर काफी कोहराम मचा पर मूल समस्या के समाधान पर कोई गंभीर चर्चा शुरू नहीं हो पाई। सरकार ने सिद्धांत रुप से समस्या के स्थाई समाधान के लिए हाथियों की सुरक्षित बसाहट की योजना 'एलीफैन्ट रिजर्वÓ पर अपनी सहमति पहले ही दे चुकी है। इसके लिए उसने एक गैर सरकारी संगठन अर्थ मैटर फाउंडेशन को अपना सलाहकार भी नियुक्त किया है। जिसे राज्य में हाथियों की समस्या पर काम करने का अच्छा अनुभव है। इसने 1992 में राज्य में हाथियों को पकड़कर उन्हें पालतू बनाने के लिए चलाए गए आपरेशन जंबो अभियान पर काम किया था। एलीफैन्ट रिजर्व विकसित करने की सरकार की ओर से दी गई सहमति के बाद इस दिशा में तेजी से काम होने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। यह तय हुआ था कि आने वाले पांच वर्षों में इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा, मगर ऐसा कुछ हो नहीं सका। मौसम का जो हाल है उसे देखते हुए हाथियों की इस समस्या पर अभी से सतर्कता बतरने की आवश्यकता है।

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