• खामोश तस्वीर से उठी इंसानियत की पुकार

    समुद्र तट पर पछाड़ खा कर गिरती, बहती, आती-जाती लहरें अपने साथ थोड़ी रेत, थोड़े सीप, कुछ शंख ले आती हैं, बच्चे इन्हें बड़े चाव से एकत्र करते हैं और वहींबैठकर रेत के घर बनाते हैं तो इन चीजों का इस्तेमाल अपने घर को संवारने में करते हैं।...

    समुद्र तट पर पछाड़ खा कर गिरती, बहती, आती-जाती लहरें अपने साथ थोड़ी रेत, थोड़े सीप, कुछ शंख ले आती हैं, बच्चे इन्हें बड़े चाव से एकत्र करते हैं और वहींबैठकर रेत के घर बनाते हैं तो इन चीजों का इस्तेमाल अपने घर को संवारने में करते हैं। लेकिन टर्की के एक पर्यटक स्थल के पास समुद्र की लहरें अपने साथ एक तीन साल के बच्चे का शव लेकर आईं। ये बच्चा समुद्र किनारे बैठकर घर नहींबना रहा था, बल्कि अपना घर छोड़ कहींआसरा पाने की तलाश में भटक रहा था, जब समुद्र की लहरें उसे लील गईं और उसके बेजान शरीर को किनारे ला पटका। शायद दुनिया को उसका असली क्रूर चेहरा दिखाने के लिए। 3 साल का वह बच्चा एलन कुर्द सीरिया का रहने वाला था। वहां के बिगड़ते हालात के कारण रोजाना लाखों लोग पलायन कर रहे हैं। एलन के पिता अब्दुल्ला भी अपनी पत्नी व बच्चोंंके साथ समुद्र के रास्ते यूरोप आना चाह रहे थे। लेकिन एक तेज लहर ने उनकी छोटी नाव को पलट दिया। अब्दुल्ला कहते हैं, मेरे दोनों बच्चे सबसे खूबसूरत थे। जब नाव डूब रही थी तो वह दोनों मां की गोद से लिपट गए। मैंने बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन वे हाथ से फिसल गए और देखते ही देखते मेरा पूरा परिवार समंदर में समा गया। अब्दुल्ला की तरह लाखों शरणार्थी यूरोप के देशों में शरण पाने के लिए तरस रहे हैं, भटक रहे हैं और रोजाना अपने परिजनों से बिछड़ रहे हैं। सीरिया और इराक में आतंकी संगठन आईएस के पैर पसारने के साथ ही कुर्द आबादी के समक्ष बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। जान बचाने के लिए ये लोग यूरोप का रुख कर रहे हैं, लेकिन यूरोपीय यूनियन का शरणार्थियों के प्रति प्रारंभिक रवैया संवेदनहीन ही रहा, वे दर-दर भटक रहे इंसानों को मुसीबत के रूप में देखने लगे। अपने देशों की सीमाएं शरणार्थियों के लिए बंद करने लगे। ऐसे में मानव तस्करों को सिर उठाने का मौका मिला। हर रोज चोरी-छिपे सैकड़ों-हजारों लोगों को यूरोपीय देशों में पहुंचाने का खेल खेला जाने लगा। इसमें कई कारुणिक कथाएं सामने आईं। कहींकंटेनर में जानवरों की तरह इंसानों को ठूंस कर ले जाने में उनकी मौत हो गई, कभी रात की खौफनाक समुद्री लहरों के बीच नाव से पहुंचाने की कोशिश में मासूम लोगों की जान चली गई। विगत 25 वर्षों में यूरोप ने इस तरह के शरणार्थी संकट का सामना नहींकिया था। एलन की मौत की तस्वीर ने यूरोप समेत तमाम दुनिया का ध्यान इस गंभीर मानवीय संकट की ओर खींचा। एलन की इस तस्वीर को दुनिया के सामने लाने वाले फोटोग्राफर निलुफेर देमीर ने बताया कि, जब उन्होंने बच्चे को तट पर देखा तो उन्हें लगा कि इस बच्चे में अब जिंदगी नहीं बची है। लेकिन फिर भी उन्होंने तस्वीर खींची ताकि दुनिया को पता चले कि हालात कितने खराब हैं। जर्मनी ने एलन की मौत का जिम्मेदार सीधे तौर पर यूरोपीय देशों को बताया। जर्मनी ने कहा कि, सभी देश शरणार्थियों को जगह देने से इंकार करने लगेंगे तो इससे आइडिया ऑफ यूरोप ही खत्म हो जाएगा। ये बच्चा बच सकता था अगर यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इंकार न करते। टर्की के प्रेसीडेंट रीसेप अर्डान ने कहा कि, इंसानियत को इस मासूम की मौत की जिम्मेदारी लेनी होगी। दुनिया के सभी प्रमुख अखबारों ने एलन की मौत से जोड़ते हुए शरणार्थियों की समस्या को उठाया है। फिनलैंड के प्रधानमंत्री जुहा सिपिला ने देश में शरणार्थियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अपना निजी घर उनके लिए खोलने की पेशकश की है। उनका घर राजधानी हेल्सिंकी से 500 किमी उत्तर केमपेले शहर में स्थित है। सिपिला ने कहा कि रिफ्यूजी उनका घर इस साल के अंत तक रहने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने देश के लोगों, चर्चों और अन्य चैरिटी संगठनों से आगे आने की अपील की है। आस्ट्रिया और जर्मनी ने भी अपने द्वार शरणार्थियों के लिए खोल दिए हैं। हंगरी सीमा पर रोके गए हजारों शरणार्थी अब आस्ट्रिया व जर्मनी पहुंचाए जा रहे हैं। एक खामोश तस्वीर से उठी इंसानियत की पुकार ने अपना असर तो दिखाया है, लेकिन समस्या का समाधान इससे नहींहोगा। सीरिया, ईराक, अफगानिस्तान, लीबिया इन तमाम देशों में हालात जब तक सामान्य नहींहोंगे, तब तक पलायन और शरणार्थियोंंकी समस्या का स्थायी हल नहींनिकलेगा। इस संकट को हल करने की जिम्मेदारी अकेले यूरोप की नहींहै, अमरीका समेत तमाम सक्षम देश, जो गाहे-बगाहे दूसरे देशों को सलाह देते रहते हैं, इस गंभीर समस्या के हल के लिए सामने आएं। संरा भी इस दिशा में नई पहल करे तो उसकी सार्थकता बनी रहेगी।

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