• कोल कामगारों की भी सुनें

    श्रमिक हितों के प्रति नियोक्ताओं का रवैया हमेशा सवालों के घेरे में रहा है। विशेषकर असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इसका गंभीर खामियां भुगतने को मजबूर हैं। श्रम अधिनियम को लागू कराने वाली एजेन्सियां भी श्रमिकों को न्याय दिलाने के प्रति उदासीन ही रही हैं। लिहाजा श्रमिकों के शोषण और अत्याचार का सिलसिला अरसे से चला आ रहा है।...

    श्रमिक हितों के प्रति नियोक्ताओं का रवैया हमेशा सवालों के घेरे में रहा है। विशेषकर असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इसका गंभीर खामियां भुगतने को मजबूर हैं। श्रम अधिनियम को लागू कराने वाली एजेन्सियां भी श्रमिकों को न्याय दिलाने के प्रति उदासीन ही रही हैं। लिहाजा श्रमिकों के शोषण और अत्याचार का सिलसिला अरसे से चला आ रहा है। कोयला क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मौजूदा दौर बेहद कठिन है। कोयला उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए खोल देने के बाद कामगारों का हित सुरक्षित नहीं रह गया। कोयला आबंटन घोटाले के सामने आने के बाद कोल ब्लाक की नीलामी की प्रक्रिया तो सरकार ने तय कर दी, लेकिन इन कोल ब्लाकों में नियोजित कामगारों के भविष्य को लेकर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश तय नहीं किए। ऐसे श्रमिकों के हित में श्रम विभागों को आगे आकर कदम उठाने चाहिए पर वह भी इस मामले में हाथ डालने से बचने की कोशिश कर रहा है। रायगढ़ जिले के तमनार स्थित गारे पलमा कोल ब्लाक नीलामी में अन्य उद्योगों के हिस्से में आ गए हैं। ये कोल ब्लाक पहले स्टील कंपनी जिन्दल और मोनेट को आवंटित किए गए थे और अब ये हिंण्डालको और बालको को मिल गए हैं। यह विवाद चल रहा है कि कोल ब्लाक शुरू होने के समय पुनर्वास शर्तों के अनुसार जिन भू-विस्थापित परिवारों के सदस्यों को नौकरी दी गई थी, वे कोल ब्लाक का अधिकार प्राप्त करने वाली कंपनी के श्रमिक माने जाएंगे या उस कंपनी के जिसने उनकी नियुक्ति की है। जिंदल के अधीन संचालित गारे पलमा कोल ब्लाक के ढाई सौ कामगारों को छंटनी का नोटिस थमा दिया गया है। अब यह कोल ब्लाक बालको को आवंटित किया गया है, जिसने अभी काम शुरू नहीं किया है। इन कामगारों को लेने से बालको ने यह कहते हुए फिलहाल मना कर दिया है कि जब वह खुदाई का काम शुरू करेगा तब विचार करेगी। चंूकि खदान जिंदल के हाथ से निकल चुकी है और कामगारों को उनकी भूमि के बदले नौकरी दी गई थी इसलिए वह अब उन्हें अपना कामगार नहीं मान रही है। कामगार कंपनी के फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना भी ठीक है कि जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता है तब तक छंटनी का निर्णय न लिया जाए। प्रशासन को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि श्रमिकों का अहित न हो। यह मामला दो-ढाई सौ श्रमिकों का नहीं है बल्कि उन कानूनों का पालन कराने का है, जो श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। एक विवाद हिण्डालको और मोनेट के बीच भी चल रहा है। इस तरह के औद्योगिक विवादों से वातावरण बिगड़ता है। ऐसे ही विवादों के कारण राज्य में उद्योग लगाने के लिए उत्साह के साथ आई कुछ कंपनियां मुश्किल में पड़ गई हैं। श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच सौहाद्र्रपूर्ण रिश्ता होना किसी भी उद्योग की प्रगति के लिए जरुरी है और इस रिश्ते को उर्वर बनाएं रखने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की ही हैं। ऐसे विवादों को श्रमिक और नियोक्ताओं का विवाद मानकर छोड़ देने से औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के प्रयासों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

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