जबलपुर ! म.प्र हाईकोर्ट ने प्रदेश में प्रस्तावित डीमेट परीक्षा को लेकर दिए गए आधे-अधूरे हलफनामे पर नाराजगी व्यक्त की है। चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस के.के त्रिवेदी की युगलपीठ ने एपीडीएमसी के अधिवक्ता को आज निर्देशित किया है कि पिछले आदेश में दी गई व्यवस्था के तहत एनआईसी के वैज्ञानिक की सहमति ली गई या नहीं, इस संबंध में निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को अवगत कराये।
ज्ञात हो कि यह मामले रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा और नरसिंहपुर की छात्रा ऋतु वर्मा व अन्य की ओर से दायर किये गये है। जिसमें डीमेट में हुए भारी भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाया गया है। इन मामलों में डीमेट की जांच सीबीआई से कराए जाने व वर्ष 2015 में होने वाली डीमेट परीक्षा हाईकोर्ट की निगरानी में कराए जाने की राहत चाही गई है।
मामले पर विगत 26 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ एपीडीएमसी को डीमेट परीक्षा कराने की इजाजत दी थी। युगलपीठ ने कहा था कि एसोसिएशन नामांकित एजेन्सी से यह परीक्षा 30 सितंबर की कट ऑफ डेट से पहले कराए, लेकिन जिस एजेन्सी को यह जिम्मेदारी दी जाएगी, उसके प्रबंध संचालक को शुक्रवार तक हलफनामा देना होगा कि वे इन शर्तों का अक्षरश: पालन करेंगे। साथ ही युगलपीठ ने कहा था कि परीक्षार्थी का प्रत्येक क्लिक रियल टाइम पर ऑटो जनरेटेड सॉफ्टवेयर में अपलोड हो। परीक्षा केन्द्र में लगा जाने वाला सॉफ्टवेयर एएफआरसी और एनआईसी के सी ग्रेड के वैज्ञानिक से सीधा जुड़ा होना चाहिए।
मामलों पर गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने एपीडीएमसी के अध्यक्ष डॉ. विजय महादिक की ओर से पेश किए गए शपथपत्र का अवलोकन किया। सुनवाई के दौरान शपथपत्र में एनआईसी के वैज्ञानिक से चर्चा का जिक्र न होने को गंभीरता से लेते हुए इस बारे में निर्देश प्राप्त कर विस्तृत शपथपत्र पेश करने के निर्देश एपीडीएमसी को दिये है। मामले में पारस सकलेचा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी, आशीष व असीम त्रिवेदी व छात्रा ऋतु वर्मा की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।