कर्नाटक में हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.एम.एम.कालबुर्गी की रविवार सुबह उनके निवास पर हुई हत्या से देश का प्रगतिशील तबका स्तब्ध है। डा. कालबुर्गी साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक थे और धार्मिक व सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय के लिए अक्सर दक्षिणापंथी ताकतों के निशाने पर रहते थे। मूर्तिपूजा पर उनकी एक विवादास्पद टिप्पणी के बाद से उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रही हैं। राज्य सरकार की ओर से उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी, लेकिन महज 15 दिन पहले 77 वर्षीय डा.कालबुर्गी ने अपनी सुरक्षा हटवा दी थी। रविवार को सुबह उनके घर पर हमलावर आए और जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, उन पर गोलियां दाग कर चले गए। इस हत्या ने नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या की याद दिला दी। श्री दाभोलकर अंधश्रद्धा निवारण के लिए आजीवन लगे रहे और इसलिए कट्टरपंथियों के निशाने पर थे। डा.कालबुर्गी ने भी हमेशा पोंगापंथी विचारों का विरोध किया, बल्कि कई क्रांतिकारी विचार खुलकर प्रकट किए, जिससे धर्मांध लोगों का तिलमिलाना स्वाभाविक था। लेकिन महज विचारों में परस्पर विरोध के कारण किसी की हत्या कर दी जाए, यह उदार, लोकतांत्रिक भारत की पहचान नहींहै। दुख की बात है कि अब समाज में विरोध के लिए सम्मान का भाव खत्म होते जा रहा है और एक अघोषित तानाशाही व्याप्त हो रही है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में कुछ ब्लागरों की नृशंसता से हत्या की गई, क्योंंकि वे इस्लाम में कट्टरपंथी विचारों का विरोध करते थे। खेद है कि अब भारत में भी रूढि़वादी ताकतें सिर उठा रही हैं। एक बुजुर्ग लेखक के विचारों, उसके द्वारा उठाए गए सवालों का जब तार्किक जवाब कट्टरपंथियों को देते नहींबना, तो उसकी हत्या करना शायद उन्हें अधिक सुविधाजनक लगा। यूं अब तक इस हत्या की जिम्मेदारी किसी ने नहींली है, लेकिन शक इस बात का ही है कि दक्षिणापंथी ताकतों ने उनकी जान ली है। करीब तीन महीने पहले ही गुलबर्गा के जाने-माने लेखक और पत्रकार लिंगानासत्याम्पेटे की हत्या कर उनके शव को गटर में फेंक दिया गया था। कर्नाटक में इस तरह की घटनाओं से लेखक व विचारक दुखी हैं।
मशहूर कन्नड़ साहित्यकार प्रोफेसर के मारुलासिद्दप्पा ने कहा कि, मुझे यकीन है कि ये हत्या संस्कृति और धार्मिक मामलों पर उनके रैश्नलिस्ट नज़रिए की वजह से हुई है। कट्टरवादी लोग उनसे नाराज़ थे। वो कहते थे कि लिंगायत (कर्नाटक की प्रभावशाली जाति) हिंदू नहीं हैं। इससे कई कट्टरवादी लोगों की भावनाएं आहत हुई थीं। वहीं एक अन्य लेखक डॉ बारागुरु रामचन्द्रप्पा ने कहा कि कर्नाटक में कभी विचारों को स्वतंत्रता से ज़ाहिर करने के लिए किसी लेखक की हत्या नहीं हुई। हम सब सकते में हैं। अगर अपने विवादास्पद विचारों को प्रकट करने का मतलब है हत्या का खतरा मोल लेना, तो ये लोकतंत्र की हत्या है. ये ज़रूर सांप्रदायिक तत्वों का काम है। मशहूर दिवंगत साहित्यकार प्रो.यू.आर. अनंतमूर्ति प्रो.कालबुर्गी के करीबी मित्रों में थे। उनके विचारों से भी रूढि़वादियों को हमेशा उलझन होती थी। उनकी मौत पर कुछ लोगों ने पटाखे फोड़कर खुशी मनाई थी। यह रवैया दर्शाता है कि कर्नाटक में उदार विचारों के लिए स्थान सिमट रहा है और कट्टरपंथियों का दुस्साहस बढ़ रहा है। किसी के घर पहुंचकर दिन दहाड़े दरवाजे पर हत्या कर फरार होना, दुस्साहस को ही दर्शाता है और यह संकेत भी देता है कि हत्यारे कहींऔर से संरक्षण व ताकत हासिल किए हुए हैं। प्रो.कालबुर्गी के अंतिम संस्कार में जिस तरह लोगों का गुस्सा प्रकट हुआ और न्याय की मांग उन्होंने की, उससे हत्यारों और हत्या करवाने वालों को संदेश मिल गया होगा कि व्यक्ति की हत्या, विचारों की हत्या नहींहोती। उदार परंपरा के भारत में प्रगतिशील विचारों की सतत धारा प्रवाहित होती रहेगी।