• मोदी के सामने पटेल

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य गुजरात इस वक्त अशांति और अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात के विकास की ऐसी कहानी उन्होंने गढ़ी और प्रचारित की कि देश में गुजरात माडल को विकास का पर्याय बना दिया।...

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य गुजरात इस वक्त अशांति और अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात के विकास की ऐसी कहानी उन्होंने गढ़ी और प्रचारित की कि देश में गुजरात माडल को विकास का पर्याय बना दिया। चुनाव प्रचार से लेकर प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने भाषण में उन्हें जहां मौका मिलता वे गुजरात के विकास की महिमा का बखान करने से नहींचूकते। गुजरात दंगों के कारण उनकी छवि पर सांप्रदायिकता का जो धब्बा लगा था, उसे विकास के साबुन से धोने की कोशिश उन्होंने की। हालांकि इस दौरान रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवनस्तर आदि से संबंधित जो आंकड़े आए, उसमें गुजरात के छद्म विकास की पोल खुल गई, फिर भी गुजरात माडल का मिथ इतनी मजबूती से गढ़ा गया कि उसे नरेन्द्र मोदी और भाजपा के विरोधी आसानी से तोड़ नहींपाए। लेकिन पिछले दिनों देश के राजनीतिक परिदृश्य पर अचानक छा जाने वाले 22 साल के हार्दिक पटेल ने एक ही रैली से गुजरात विकास की सच्चाई और दावों पर सवाल खड़े कर दिए। हार्दिक पटेल गुजरात के संपन्न माने जाने वाले पाटीदार समुदाय से आते हैं और अपने समाज में बहुत ही सीमित स्तर पर नेतृत्व की राजनीति का उन्हें अनुभव है। लेकिन जब अहमदाबाद में उन्होंने पटेल समुदाय के लिए सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण की मांग पर रैली की तो उसमें कई लाख लोगों की भीड़ जुट गई। इस रैली पर पुलिस की कार्रवाई के बाद किस तरह हिंसा भड़की, कैसे हार्दिक पटेल को हिरासत में लेने के बाद छोडऩा पड़ा, किस तरह रैली का असर गुजरात के अन्य शहरों में हुआ, जिसने बाद में हिंसक रूप ले लिया। कफ्र्यू की नौबत आ गई। पुलिस की कार्रवाई में झड़पों के बाद एक पुलिसकर्मी समेत आठ लोगों की मौत हो गई है। हार्दिक पटेल दोषी पुलिसकर्मियों के तत्काल निलंबन और मृतकों के परिजनों को 30-30 लाख के मुआवजे की मांग कर रहे हैं। पुलिस फायरिंग के विरोध में किसानों से शहरों में दूध व सब्जी की आपूर्ति रोकने की अपील आंदोलनकारियों ने की है। इन तमाम घटनाओं से पाठक परिचित हैं। सवाल यह है कि क्या यह रैली महज पटेल समुदाय के आरक्षण के लिए थी या इसके भिन्न राजनीतिक निहितार्थ हैं। गौरतलब है कि पटेल समाज गुजरात के व्यापार और राजनीति दोनों में अच्छी खासी दखल रखता है। मौजूदा सरकार की मुख्यमंत्री स्वयं पटेल समाज से हैं और कई मंत्री-विधायक भी इसी समाज से हैं। लेकिन इसी समाज के बहुसंख्यक लोग अब भी तथाकथित विकास की धारा से दूर हाशिए पर हैं। इस विडंबना से ही उपजी है आरक्षण की मांग, जिसके लिए हार्दिक पटेल ने हुंकार भरी कि हमारा हक प्यार से दे दो या हम छीन लेंगे। इतना ही नहींउन्होंने भाजपा को सीधे-सीधे धमकाया भी कि 2017 में कमल नहींखिलने देंगे। जब इस रैली की सुगबुगाहट थी तब न राज्य सरकार को, न केेंद्र सरकार को, न विरोधियों को उम्मीद थी कि राजनीति में गुमनाम, अनजान सा युवक इतनी हलचल मचा सकता है। अब विरोधी इस मुद्दे पर राज्य सरकार और नरेन्द्र मोदी को घेर रहे हैं। इस रैली के बाद आरक्षण का जिन्न भारतीय राजनीति में एक बार फिर खड़ा हो गया है। कुछ समय पहले तक राजस्थान और हरियाणा से ऐसी मांगें उठ रही थीं, अब गुजरात इसमें शामिल हो गया है। संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया था कि सदियों से जो समुदाय वंचित और शोषित है, उसे समाज की मुख्यधारा में साथ लाया जा सके। सामाजिक विकास की प्रक्रिया में कुरीतियों, रूढिय़ों के कारण जो तबका पीछे छूट गया है, उसे अवसरों की समानता उपलब्ध कराई जा सके। उपेक्षित समुदाय के लोग जब सरकारी नौकरी में सम्मान से आएंंगे, उच्च शिक्षा हासिल करेंगे, आर्थिक रूप से मजबूत होंगे तो अन्य लोगों को भी इससे प्रेरणा मिलेगी। लेकिन बीते कुछ वर्षों में आरक्षण राजनीतिक दलों के लिए वोट हासिल करने का दांव बन गया है और वे कुछ समुदायों व वर्गों को अपने मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं। इसका लाभ राजनीतिक दलों को मिलता है, कुछ छुटभैये नेता बड़े बन जाते हैं, जबकि असली हितग्राही अमूमन हाशिए पर ही पड़े रह जाते हैं। गुजरात में पटेलों के लिए उठी आरक्षण की मांग कब, कहां जाकर किस तरह खत्म होती है, इसका कोई अनुमान फिलहाल नहींलगाया जा सकता। बिहार में चुनाव सामने हैं और नीतीश कुमार ने इस मांग को अपना समर्थन दे दिया है, इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में शांति बनाए रखने की अपील वहां की जनता से कर रहे हैं। उन्होंने ही आनंदी बेन पटेल को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, इसलिए हार्दिक पटेल की चुनौती वर्तमान मुख्यमंत्री के लिए ही नहींवर्तमान प्रधानमंत्री के लिए भी है। देखना है कि कौन से ट्वीट, कौन सी सेल्फी और मन की बात के सहारे वे इस चुनौती से पार पाते हैं।

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