• प्याज के आंसू

    भारत में प्याज के दाम एक बार फिर आसमान छू रहे हैं। राजनीति और कारोबार की कुटिल चालें प्याज की परतों की तरह धीरे-धीरे खुल कर आम आदमी को आंसू बहाने पर मजबूर कर रही हैं। दूध, फल, अंडा, दाल, सब्जी भोजन के मुख्य आधार पहले ही आम भारतीय की पहुंच से दूर हो गए थे। ...

    भारत में प्याज के दाम एक बार फिर आसमान छू रहे हैं। राजनीति और कारोबार की कुटिल चालें प्याज की परतों की तरह धीरे-धीरे खुल कर आम आदमी को आंसू बहाने पर मजबूर कर रही हैं। दूध, फल, अंडा, दाल, सब्जी भोजन के मुख्य आधार पहले ही आम भारतीय की पहुंच से दूर हो गए थे। दूध-दही की नदियां बहना तो काल्पनिक था ही, अब साधारण घरों में बच्चों को दो वक्त गिलास भर दूध मिलना भी काल्पनिक हो गया है। श्वेत क्रांति पर मुनाफाखोरों ने कालिख चढ़ा दी है। यही स्थिति हरित क्रांति की हो गई है। जिस क्रांति के दम पर कृषि में आत्मनिर्भरता और विकास की नींव रखी गई थी, अब उसी कृषि का गला घोंटने के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं। दिनोंदिन खेती की हालत बिगड़ रही है, किसान लाचार हो रहे हैं और हम सीमेंट की नींवें तैयार करने को विकास बतला रहे हैं। हाल ही में आंकड़े आए हैं कि देश में पशु चारे का गंभीर संकट बना हुआ है। 20 करोड़ पशुओं के लिए आधे से कम चारा उपलब्ध है। संसद की कृषि से संबंधित स्थायी समिति ने बताया है कि देश में हरे व सूखे चारे की भारी कमी है। समिति की रिपोर्ट 2007 के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है, क्योंकि उसके बाद से मंत्रालय ने आंकड़े ही उपलब्ध नहींकराए हैं। अगर वर्तमान स्थिति का आकलन किया जाएगा तो पशु चारे की मांग और पूर्ति के बीच का अंतर कहींज्यादा गहरा दिखेगा। खाद्यान्न उपलब्धता के मामले में आम भारतीय की दशा भी पशुओं से भिन्न नहींहै। देश में लाखों-करोड़ों लोग भूखे या आधे पेट खाकर ही रह रहे हैं। दाल, सब्जी, अंडा, मांस तो अब विलासितापूर्ण भोजन की श्रेेणी में आ गया है। ऐसे में गरीब आदमी के लिए प्याज बड़ा सहारा होता है। सूखी रोटी अचार या प्याज और नमक के साथ खाकर क्षुधा मिटाने वाले लाखों लोग देश में हैं। उनके लिए प्याज की कीमतों का चौगुनी रफ्तार से बढऩा बड़ा संकट है। सरकारें आंकड़ों की भाषा समझती है और उसी में बात करती है। राजनेताओं को आटे-दाल और प्याज का भाव राजनीति के लिए ही पता रहता है, घर चलाने के लिए नहीं। इसलिए उन्हें फर्क नहींपड़ता कि प्याज 60 रुपए में मिल रही है या 80 रुपए में। लेकिन आम आदमी के लिए 20 रुपए का यह फर्क भी बहुत मायने रखता है। कहा जा रहा है कि इस वर्ष फरवरी, मार्च में हुई ओलावृष्टि के कारण प्याज की फसल को बहुत नुकसान हुआ। उत्तरी महाराष्ट्र में एशिया में प्याज की सबसे बड़ी मंडी लसलगांव में प्याज 60 रूपए किलो है, जबकि पिछले साल यह कीमत 15 रुपए थी, यानी दाम चौगुने बढ़ गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक अभी देश में मात्र 16-17 लाख टन प्याज का ही भंडारण है, जिस कारण आने वाले समय में आपूर्ति और घट सकती है। फौरी राहत के लिए सरकार ने प्याज के आयात का फैसला किया है, ताकि उपलब्धता को बढ़ाया जा सके। मौसम की मार कब किस रूप में पड़े कहा नहींजा सकता, किंतु हमने इतना वैज्ञानिक व तकनीकी विकास तो कर ही लिया है कि मौसम की मार से बचने के उपाय किए जा सकेें। प्याज की कीमत पहली बार नहींबढ़ी है, न ही पहली बार देश ने ओलावृष्टि देखी। सबसे बड़ी कमी हमारी भंडारण और आपूर्ति की नीति में है, जिसे सियासत की कुटिल चालें और बिगाड़ देती हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2007-08 से लेकर अब तक यानी 2014-15 कर प्याज के उत्पादन में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन इसके साथ-साथ उसकी कीमतों में भी निरंतर बढ़त बनी हुई है। अर्थशास्त्र का मांग और पूर्ति का मूलभूत सिद्धांत यहां सही साबित नहींहो रहा है, इसे उलटने में निश्चित ही सरकार की गलत नीतियों और कालाबाजारी की प्रवृत्ति जिम्मेदार है। महंगी होती प्याज से प्याज के असली उत्पादक किसानों को भी फायदा नहींमिल रहा है, केवल जमाखोरी करने वाले मुनाफे में हैं। प्याज इन्हें रूलाती नहीं, अट्टाहास कराती है।

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