• कांग्रेस का छत्तीसगढ़ बचाओ दिवस

    भाजपा परिवारवाद की राजनीति के मुद्दे पर कांग्रेस को हमेशा घेरती आई है। वह इसे नेहरु-गांधी परिवार की पार्टी कहती है। राजनीति में इस तरह की परिभाषाएं गढ़ी जाती रही हैं और आगे भी गढ़ी जाएंगी। छत्तीसगढ़ में कुछ अलग हुआ है। यहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का जन्मदिन छत्तीसगढ़ बचाओ दिवस के रुप में मनाया गया। ...

    भाजपा परिवारवाद की राजनीति के मुद्दे पर कांग्रेस को हमेशा घेरती आई है। वह इसे नेहरु-गांधी परिवार की पार्टी कहती है। राजनीति में इस तरह की परिभाषाएं गढ़ी जाती रही हैं और आगे भी गढ़ी जाएंगी। छत्तीसगढ़ में कुछ अलग हुआ है। यहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का जन्मदिन छत्तीसगढ़ बचाओ दिवस के रुप में मनाया गया। कांग्रेसियों ने जिलों में प्रदर्शन किए और राज्य सरकार को घोटालों की सरकार बताते हुए इसे उखाड़ फेंकने का संकल्प दोहराया। छत्तीसगढ़ बचाओ दिवस मनाने की वजह गिनाते हुए यह बताने की भी कोशिश की गई कि अगर राज्य सरकार को घोटालों के लिए कठघरे में खड़ा किया जा रहा है तो उसका श्रेय श्री बघेल को जाता है। उन्होंने ही पार्टी के कार्यक्रमों से घोटालों को लोगों के बीच पहुंचाया। वैसे राज्य में कांग्रेस के कार्यक्रमों को व्यक्ति से जोडऩे की कोशिश पहले भी हुईं और व्यक्तिवादी राजनीति को बढ़ावा देने पर पार्टी में अंदरुनी विवाद भी चला है। अब भूपेश के जन्मदिन पर कार्यक्रमों को लेकर पार्टी की भावी राजनीति पर कयास लगने शुरू हो सकते हैं। ये पार्टी को अगले चुनावों के लिए एक करके रखने की राह में बाधाएं भी खड़ी कर सकते हैं। जाहिर है श्री बघेल के जन्मदिन पर आयोजित पार्टी के कार्यक्रम में जोगी खेमे ने कोई दिलचस्पी नहीं ली होगी। इस पर उसकी ओर से कोई तत्कालिक प्रतिक्रिया भी नहीं आई। पार्टी के कार्यक्रम ऐसे होने चाहिए जिसमें खेमेबाजी को हवा न मिले और सहभागिता बढ़े। छत्तीसगढ़ बचाओ दिवस का संगठन, के लिए जितना महत्व है, दूसरे खेमे के लिए भी होना चाहिए। एक सवाल पर कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री कौन होगा, संगठन खेमे के लोगों को दो ही चेहरे दिखते हैं। एक स्वयं भूपेश और दूसरे नेता प्रतिपक्ष टी.एस.सिंहदेव। अब इनमें आगे कौन है और पीछे कौन, पार्टी में अलग-अलग राय हो सकती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के जन्मदिन पर कोई राजनैतिक कार्यक्रम हो तो उसका मतलब साफ है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को जगह दी जा रही है। आने वाले समय के लिए इस संकेत को समझना कठिन नहीं है। पार्टी में जब खेमेबाजी चरम पर हो तो बहुत फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने की जरुरत पड़ती है। नेता प्रतिपक्ष द्वारा विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में काम करने के संंबंध में लिखी गई चि_ी पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की 'बधाईÓ वाली प्रतिक्रिया तो सबने देखी-सुनी अब श्री बघेल के जन्मदिन के कार्यक्रम पर वे चुप रहेंगे, ऐसा लगता नहीं। पार्टी को अभी जरुरत सबको साथ लेकर चलने की है, लेकिन कांग्रेस में जैसा चल रहा है, उसे देखते हुए लगता नहीं कि कांग्रेस नेता भाजपा को हटाने के 'एक लक्ष्यÓ के लिए काम करने को तैयार हैं। भाजपा अगर राज्य में तीसरी बार जीती तो उसकी इस जीत में कांग्रेस की फूट का कम बड़ा योगदान नहीं है। अगर कांग्रेसी इसी तरह बंटे रहे और बांटने की कोशिश चलती रही तो भाजपा को चौथी बार भी सत्ता में आने से कौन रोकेगा?

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