• सरकारी स्कूल में ही पढ़ेंगे सरकारी कर्मचारियों के बच्चे

    इलाहाबाद । इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लिए एक फैसले के मुताबिक अब सभी सरकारी कर्मचारियों, विधायकों और सांसदों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ेंगे। मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चीफ सेक्रटरी को इस फैसले पर अमल करने के निर्देश दिए। प्राथमिक स्कूलों की दयनीय हालत देखते हुए दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों, नौकरशाहों, स्थानीय निकायों के पदाधिकारियों, विधायकों, सांसदों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के बच्चे अब उनके स्थानीय वार्ड के सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाए जाएंगे। उमेश कुमार सिंह और कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने यह फैसला लिया। ...

    इलहाबाद उच्च न्यायालय का एेतिहासिक फैसला

    इलाहाबाद । इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लिए एक फैसले के मुताबिक अब सभी सरकारी कर्मचारियों, विधायकों और सांसदों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ेंगे। मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चीफ सेक्रटरी को इस फैसले पर अमल करने के निर्देश दिए। प्राथमिक स्कूलों की दयनीय हालत देखते हुए दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों, नौकरशाहों, स्थानीय निकायों के पदाधिकारियों, विधायकों, सांसदों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के बच्चे अब उनके स्थानीय वार्ड के सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाए जाएंगे। उमेश कुमार सिंह और कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने यह फैसला लिया।


    हाई कोर्ट ने चीफ सेक्रटरी को निर्देश दिया कि इस फैसले को लागू करने के लिए जो भी आधारभूत जरूरतें हैं, उन्हें जल्द से जल्द पूरा किया जाए। स्कूल अच्छी स्थिति में संचालित होने चाहिए और यह फैसला अगले शैक्षणिक सत्र से अमल में आ जाना चाहिए। कोर्ट ने चीफ सेक्रटरी से कहा कि छह महीने के भीतर रिपोर्ट देकर बताया जाए कि इस संबंध में क्या किया गया। उमेश सिंह द्वारा दायर की गई याचिका में राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में सहायक शिक्षकों की नियुक्ति का जिक्र भी किया गया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्राथमिक विद्यालयों की हालत पर भी ध्यान दिया। कोर्ट ने पाया कि खराब स्थिति होने के बावजूद इन स्कूलों में 90 फीसदी बच्चे जाते हैं। ऐसे में इनकी हालत को सुधारा जाना बहुत ही जरूरी है। कोर्ट ने यह भी पाया कि प्राथमिक विद्यालयों के लिए जिम्मेदार अधिकारी भी इन पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। 

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