• संसद चलाने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच 'ट्रैक-टू डिप्लोमेसी' की जरूरत : एच.के. दुआ

    दुआ ने कहा, "इस सत्र में सहमति की संभावनाएं तलाशी जा सकती थीं। सरकार और विपक्ष के बीच कोई संवाद नहीं था। सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई।" दुआ ने कहा, "सरकार को आगे बढ़कर पहल करनी ही चाहिए।"...

    जीएसटी पर विपक्ष से की जानी चाहिए थी सौदेबाजी

    नई दिल्ली। पूर्व राजनयिक, वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा के नामित सदस्य एच.के. दुआ संसद के मानसून सत्र के व्यर्थ बीतने से चिंतित हैं। उनका कहना है कि संसद चलाने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच 'ट्रैक-टू डिप्लोमेसी' की जरूरत है।

    श्री दुआ का कहना है कि विधेयकों को पारित कराने के लिए सरकार को विपक्ष से लेन-देन की नीति पर अमल करना चाहिए। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को पास कराने के लिए सरकार विपक्ष से यह सौदा कर सकती थी कि क्या वह भूमि विधेयक में बदलाव के लिए तैयार है?

    दुआ का राज्यसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म हो रहा है। अगर जीएसटी पारित कराने के लिए संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया जाता तो मानसून सत्र दुआ के लिए सदन का आखिरी सत्र साबित होगा।

    दुआ ने कहा, "इस सत्र में सहमति की संभावनाएं तलाशी जा सकती थीं। सरकार और विपक्ष के बीच कोई संवाद नहीं था। सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई।"

    दुआ ने कहा, "सरकार को आगे बढ़कर पहल करनी ही चाहिए।"

    हिन्दुस्तान टाइम्स और द ट्रिब्यून के संपादक और इंडियन एक्सप्रेस के मुख्य संपादक रह चुके दुआ ने कहा, "भूमि विधेयक का इस्तेमाल सौदेबाजी के लिए किया जाना चाहिए था। उन्हें (सरकार) यह सौदा करना चाहिए था कि इसके (भूमि विधेयक) बदले में जीएसटी को पास होने दिया जाए।"


    एक सवाल के जवाब में दुआ ने कहा, "संसद में गतिरोध को कोई कानून नहीं रोक सकता। आपसी सहमति मददगार साबित होगी। हंगामा करने वाले सांसद को दंडित करने के कई नियम कानून मौजूद हैं, लेकिन अगर पूरी की पूरी पार्टी ही अध्यक्ष के आसन के सामने पहुंच जाए तो फिर कोई क्या कर सकता है।"

    दुआ ने कहा कि बतौर पत्रकार और सांसद उन्होंने संसद के कई सत्र देखे हैं। बीते चार साल में स्थितियां खराब हुई हैं। "यूपीए सरकार के आखिरी साल और एनडीए सरकार के मानसून सत्र ने नए (निचले) स्तर को छुआ है।"

    उन्होंने कहा, "बतौर सांसद उन्हें सबसे बुरा अनुभव राज्यसभा में लैंड बाउंड्री और लोकपाल विधेयकों की प्रतियां फाड़े जाने के समय हुआ था।"

    संसद की कार्यवाही को पवित्र बताते हुए उन्होंने कहा, "जब आप संसद को नहीं चलने देते हैं तो आप सरकार से नहीं, बल्कि संसद से लड़ रहे होते हैं। कोई भी संसद बिना संवाद और चर्चा के नहीं चल सकती।"

    उन्होंने कहा कि सदियों के बाद देश को लोकतंत्र नसीब हुआ है और "हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए।"

अपनी राय दें