• सीमा छोड़ अंदर कैसे घुस रहे आतंकवादी? कितने और कसाब अंदर तक घुस आए हैं?

    अहम सवाल कासिम के मकसद का नहीं, बल्कि यह कि सुरक्षा एजेंसी और पुलिस कैसे नाकाम रही? जरूरत सीमा से सटे लोगों में प्यार, भरोसा और अमन परस्ती का संदेश फैलाने की है और इसी भरोसे आतंक पर न केवल फतह पा सकेंगे, बल्कि दुश्मन को दुश्मन के घर उसी के हाथों शिकस्त भी दे सकेंगे।...

    अहम सवाल कासिम के मकसद का नहीं, बल्कि यह कि सुरक्षा एजेंसी और पुलिस कैसे नाकाम रही?

    आतंक के स्थानीय आकाओं को दरकिनार किया जाए, कुचला जाए और आवाम को साथ लिया जाए

    ऋतुपर्ण दवे

    पहले कसाब जिंदा पकड़ा गया, अब नावेद उर्फ उस्मान, मगर पाकिस्तान है कि मानता नहीं। खैर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि पकड़े जाते ही हर कसाब खुद ही सबूत दे देता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस बात से भली भांति वाकिफ है।

    5 अगस्त को ऊधमपुर के नरसू इलाके में सीमा सुरक्षा बल के काफिले पर हमले का मास्टर माइंड दूसरा जिंदा कसाब उर्फ उस्मान खान उर्फ कासिम उर्फ नावेद पाकिस्तानी है। उसका पिता याकूब खुलेआम कहता है कि वह अभागा है जो उस्मान उसका बेटा हुआ, अब बेटे के करतूत की सजा खुद को पाकिस्तानी फौज से बतौर मौत दिए जाने डरा हुआ है।

    अहम सवाल कासिम के मकसद का नहीं, बल्कि यह कि सुरक्षा एजेंसी और पुलिस कैसे नाकाम रही? यहां वह क्या करता रहा, कहां-कहां गया, किससे मिला, उसके साथ और साथ कितने कसाब आए, वे कहां-कहां हैं? इस सच्चाई को पता लगाना बहुत बड़ी चुनौती है और रहेगी।

    गौरतलब यह भी कि इसी हमले में मारा गया आतंकी मोमिन पाकिस्तान के गुजरांवाला का है, जबकि जिंदा पकड़ा गया कासिम फैसलाबाद का। दोनों ही मुंबई हमले के आतंकी अजमल कसाब के इलाके से हैं, यानी पाकिस्तानी आतंक फैक्ट्री जस की तस और जहां की तहां।

    खुश्किस्मती इतनी कि कासिम को उन बंधकों ने ही पकड़ा, जिनको वह गिरफ्त में ले रखा था, वरना कहानी कुछ और ही होती। अब बात आतंकी के जिंदा गिरफ्तार होने की वाहवाही की नहीं, बल्कि यह कि अभी और कितने कसाब ढूंढ़ने होंगे और क्या ढूंढ़ पाएंगे? सवाल खुफिया और सुरक्षा तंत्र की नाकामी पर आ टिका है।

    अब तो चिंता इससे भी बड़ी और गहरी है। आतंकी कश्मीर घाटी यानी पीर पंजाल और चिनाब छोड़कर जम्मू में सक्रिय हो रहे हैं, जिसके मायने बहुत गहरे हैं। जैसे ही मुस्लिम बहुत इलाकों में हिंदू दक्षिणपंथी पार्टियां सक्रिय हुईं, आतंकियों ने भी अपनी रणनीति बदली, पूरा ध्यान जम्मू पर केंद्रित कर लिया।

    ऊधमपुर का नरसू जहां हमला हुआ, जम्मू शहर से केवल 60 किलोमीटर दूर हाइवे पर है। इशारा साफ है, आतंकी लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलओसी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर भारत में बहुत अंदर घुस चुके हैं।

    तारीखों के पन्ने पलटें, 27 नवंबर 2014। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम्मू यात्रा से ठीक पहले अर्निया सेक्टर में आतंकियों का बड़ा हमला और 10 लोगों की हत्याए मृतकों में फौज के अधिकारी भी थे। इसी साल मार्च में जैसे ही पीडीपी और भाजपा की गठबंधन सरकार बनीए जम्मू और सांबा में 2 बड़े हमले हुए फिर 10 लोगों की हत्या, जिसमें 7 सीआरपीएफ के जवान थे।


    इन घटनाओं को जोड़कर देखें तो लगता नहीं कि आतंकी एलओसी बहुत पीछे छोड़ आए हैं, यानी फिर सवाल वही कि कितने और कसाब अंदर तक घुस आए हैं। 27 जुलाई के गुरुदासपुर में हमला। शुरू में लगा कि कहीं पंजाब में फिर से खलिस्तानी आतंकवाद की आहट तो नहीं? लेकिन जल्द ही साफ हो गया कि इसके पीछे पाकिस्तान और आईएसआई का हाथ है।

    5 अगस्त को ऊधमपुर के नरसू का हमला भी बिल्कुल समान था। दोनों को 26/11 हमले का लघुरूप कहा जा सकता है। गुप्तचर ब्यूरो को इस बारे में कुछ-कुछ इनपुट थे, जिसे जो सरकार को पता था, फिर भी कोई थाना मानने को तैयार नहीं था कि उस पर हमला हो सकता है और ये भ्रम भी टूटा।

    यह सच है कि इस तरह के आतंकवाद या आंदोलनों को राजनीति ही जन्म देती है, पोषती है और दुष्परिणाम जनता भुगतती है। हम थोड़े में ही गलतफहमीं का शिकार हो पीठ थपथपाने लगते हैं।

    4 जून को मणिपुर में नगा उग्रवादी हमले में शहीद 18 सैनिकों की हत्या का जवाब म्यांमार में हमारे सैनिकों ने उनके ही शिविर में धावा बोलकर दिया, लेकिन सत्तारूढ़ नेताओं ने बड़बोला बयान देकर किरकिरी करा दी। पाकिस्तान ठीक उलट है, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में आतंकी हमले कराता है, लेकिन कभी खुलकर नहीं बोलता। जब कभी फंसता है तो किसी न किसी बहाने पल्ला झाड़ लेता है।

    हमें भी सीखना होगा, मुंहतोड़ जवाब दो लेकिन जहां जरूरी हो कूटनीतिक खामोशी बरकरार रखो।

    आतंकवाद पंजाब में चुनौती था। दशक भर में ही शांति भी कायम हो गई, क्योंकि वहां केपीएस गिल का फॉर्मूला असरकारक था, जिसमें एक ओर आतंकवाद को कुचलने की रणनीति बनाई तो दूसरी ओर इससे जुड़े स्थानीय लोगों का दिल जीता और आतंकवाद को ठंडा किया। यकीनन पाक प्रायोजित आतंक भी कुछ ऐसा ही है।

    आतंक के स्थानीय आकाओं को दरकिनार किया जाए, कुचला जाए और आवाम को साथ लिया जाए। आतंकवाद का नफा-नुकसान समझाया जाए, तरक्की और अमन का पाठ पढ़ाया जाए। देर हो गई है सो थोड़ा वक्त जरूर लगेगा, लेकिन जब पाकिस्तानी मंसूबे सीमा पार ठण्डे पड़ने लगेंगे तो पाकिस्तान खुद ही बहुत तेजी से बड़े गृहयुद्ध जैसे हालात में पहुंचेगा और पाकिस्तानी कसाब खुद ही अपना हिसाब वहीं चुकता करेंगे।

    जरूरत सीमा से सटे लोगों में प्यार, भरोसा और अमन परस्ती का संदेश फैलाने की है और इसी भरोसे आतंक पर न केवल फतह पा सकेंगे, बल्कि दुश्मन को दुश्मन के घर उसी के हाथों शिकस्त भी दे सकेंगे।

    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

अपनी राय दें