• आतंकियों के निशाने पर कश्मीर की लाइफलाइन

    श्रीनगर ! तीन सौ किमी लंबे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग क्या फिर से सैनिकों के लिए डेथलाइन बन जाएगा? इसे कश्मीर की लाइफ लाइन कहा जाता है और अतीत में इस पर होने वाले आतंकी हमलों के कारण इसे कई सालों तक डेथलाइन भी कहा जाता रहा है। दरअसल इसे फिर से इस नाम से पुकारने के पीछे का कारण करीब 11 सालों के बाद इस पर हुआ ताजा आतंकी हमला है।...

    सैनिकों के लिए फिर से 'डेथलाइन' बनेगा जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग! श्रीनगर !   तीन सौ किमी लंबे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग क्या फिर से सैनिकों के लिए डेथलाइन बन जाएगा? इसे कश्मीर की लाइफ लाइन कहा जाता है और अतीत में इस पर होने वाले आतंकी हमलों के कारण इसे कई सालों तक डेथलाइन भी कहा जाता रहा है। दरअसल इसे फिर से इस नाम से पुकारने के पीछे का कारण करीब 11 सालों के बाद इस पर हुआ ताजा आतंकी हमला है।  कश्मीर घाटी को शेष भारत से मिलाने वाले एक मात्र 300 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग को कश्मीरी 'लाइफलाइनÓ कहते हैं तो अब इसे फिर से 'डेथलाइनÓ का नाम दिया जा रहा है। 'लाइफलाइनÓ कश्मीर की जनता के लिए है तो डेथलाइन सैनिकों के लिए क्योंकि इस मार्ग को सबसे अधिक असुरक्षित आतंकी घटनाओं ने बनाया था जहां वर्ष 2003 व 2004 में होने वाली 500 घटनाओं ने 204 लोगों की जानें ले ली थीं। यह राजमार्ग सड़क हादसों में होने वाली मौतों के लिए तो जाना ही जाता था मगर अब एक बार फिर आतंकवादी घटनाओं के लिए भी जाना जाने लगा है।  एक समय था जब बारूदी सुरंगों के विस्फोटों से होने वाली घटनाओं में होने वाली मौतों का आंकड़ा सभी रिकार्ड तोड़ गया था। राष्ट्रीय राजमार्ग किस तरह से डेथलाइन बना था सरकारी आंकड़े ही इसे स्पष्ट करते रहे हैं। वर्ष 2003 और 2004 के दो सालों के दौरान आतंकवादी घटनाओं में जिन 204 लोगों की जानें राजमार्ग पर गई थीं उनमें 60 नागरिक थे तो बाकी सुरक्षाकर्मी। मरने वाले 60 नागरिकों को आतंकवादियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क किनारे किए गए तीन नरसहारों में मौत के घाट उतार दिया था। इनमें जहां 11 ट्रक चालक थे तो वहां 19 प्रवासी श्रमिक भी थे जिन्हें इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया था क्योंकि तब आतंकवादियों को विश्व समुदाय को यह दर्शाना था कि वे हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा घोषित युद्धविराम के खिलाफ थे। लाइफलाइन समझे जाने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग की सड़क को डेथलाइन बनाने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका बारूदी सुरंगों ने निभाई है। इन सभी बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल इस राजमार्ग को प्रयोग करने वाले सैनिक वाहनों को उड़ाने के लिए किया गया था। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाली आईईडी विस्फोट की करीब 218 घटनाओं में से  110 में सुरक्षाकर्मियों को क्षति पहुंची। अभी तक कि सबसे बड़ी क्षति वर्ष 2004 में 13 अगस्त के दिन कुद के पास होने वाले दोहरे विस्फोट में हुई जिसमें सीमा सुरक्षाबल के छह जवान मारे गए थे।

    1. कश्मीर के लिए लाइफलाइन कहा जाता है जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग
    2. राजमार्ग पर राकेट हमले भी हो चुके हैं

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