• अपने घर पहुंच गया लखनऊ एयर पोर्ट से गायब आजमगढ़ का जाकिर

    रिहाई मंच ने की ज़ाकिर को ग़ायब करने में हो एजेंसियों की भूमिका की जांच की मांग... आज़मगढ़ जनपद के अल्पसंख्यक युवकों के साथ पहले भी हो चुकी हैं इस तरह की घटनाएं... रिहाई मंच के प्रतिनिधि मंडल ने जाकिर के घर का दौरा कर तफसील से पूरे हालात को जाना......

    रिहाई मंच ने की ज़ाकिर को ग़ायब करने में हो एजेंसियों की भूमिका की जांच की मांग

    आज़मगढ़ जनपद के अल्पसंख्यक युवकों के साथ पहले भी हो चुकी हैं इस तरह की घटनाएं

    रिहाई मंच के प्रतिनिधि मंडल ने जाकिर के घर का दौरा कर तफसील से पूरे हालात को जाना

    लखनऊ/ आज़मगढ़। ग्राम मिमारिज़पुर (मीरपुर), जनपद आज़मगढ़ निवासी मो० ज़ाकिर जो कि 13 जून को अमौसी हवाईअड्डे लखनऊ से गायब हुआ, वह 52 दिनों बाद 2 अगस्त को अपने घर पहुंचा तो परिजनों को जहां उसके घर वापस पहुंचने की खुशी थी वहीं वह उसकी हालत देख परेशान और दुखी भी थे। तथ्यों की जानकारी के लिए रिहाई मंच का तीन सदस्यीय दल जिसमें मसीहुद्दीन संजरी, विनोद यादव, तारिक शफीक शामिल थे, ने मोमारिज़पुर का दौरा कर ज़ाकिर और उसके परिजनों से मुलाकात की।

    विनोद यादव ने बताया कि ज़ाकिर बहुत डरा हुआ था और कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था। उसके भाई शाहिद ने प्रनिधिमंडल को बताया कि ज़ाकिर को अपहरणकर्ताओं ने शंकरपुर चेक पोस्ट, रानी की सराय पर लाकर छोड़ दिया था। उनके परिवार के एक परिचित द्वारा सूचना दिए जाने पर वह ज़ाकिर को घर ले आए। वह किसी वाहन की आवाज़ या किसी अजनबी को देख कर डर जाता है कि कहीं फिर उसका अपहरण न हो जाए। परिजनों के पूछने पर उसने केवल इतना बताया कि अगवाकारों के बारे में कोई बात न की जाए वह लोग पहुंच वाले है और घर के अन्य लोगों को भी पकड़ कर ले जा सकते हैं।

    मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि ज़ाकिर से बातचीत के दौरान कई ऐसी चीज़ें सामने आयीं जिससे इस घटना में एजेंसियों के लिप्त होने की आशंका पुख्ता हो जाती है। लेकिन ज़ाकिर को जैसे ही उसे यह एहसास होता है कि उसने वह बात बता दी जिसे न बताने के लिए उसे डराया धमाकाया गया था तो वह अपना सिर पकड़ लेता और फौरन कहने लगता कि उसे कुछ याद नहीं है। उन्होंने कहा कि तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि एजेंसियों द्वारा ज़ाकिर को उठाया गया था और गैरकानूनी हिरासत के रख कर उसे प्रताड़ित किया गया था। उसके सिर में चोट का निशान है जिस पर टांके लगवाए गए थे, इससे अंदाज़ा होता है कि पिटाई के बाद उसका इलाज भी करवाया गया था जबकि आमतौर पर अपहरण की घटनाओं में ऐसा नहीं होता है और न ही अपहरणकर्ता इस तरह से किसी को उसके घर के रास्ते पर लाकर छोड़ जाते हैं। ज़ाकिर का पासपोर्ट और मोबाइल भी उससे ले लिया गया जिससे अपहरणकर्ताओं को कोई लाभ नहीं हो सकता।


    तारिक शफीक ने कहा कि इससे पहले भी जनपद के कई युवकों के साथ इस तरह की घटना हो चुकी है। जनपद के ही ग्राम छाऊं निवासी नदीम को 2008 में एअरपोर्ट पर रोक कर पूछताछ के नाम पर उसका पासपोर्ट ले लिया गया था जिसके कारण उसकी फ्लाइट छूट गई थी। उस समय रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब और अन्य मानवधिकार नेताओं के हस्तक्षेप से उसे छुड़ाया गया था। कस्बा फूलपुर निवासी मो० अनीस को भी 2008 में एजेंसियों द्वारा अगवा किया गया था और एक हफ्ता बाद उसे भोर में फुलपुर बाज़ार के बाहर ला कर छोड़ दिया गया था। उसे भी इतना शारीरिक और मानसिक तौर पर टार्चर किया गया था कि उसने भी लम्बे समय तक अपहरणकर्ताओं के बारे में ज़बान नहीं खोली थी। इस तरह 2009 में राशिद और उसके साथी को लखनऊ-कानपुर के बीच में एजेंसियों द्वारा अगवा करने की कोशिश की जा चुकी है। उन्हें रेलवे ट्रैक पर खड़ा करके उनके फोटो भी लिए गए थे। इसके अलावा जनपद के ही कुछ अन्य मुस्लिम नौजवानों को रास्ते से उठाकर पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित करने मामले इससे पहले सामने आ चुके हैं और लखनऊ शहर ऐसी प्रताड़नाओं का अड्डा बनता जा रहा है।

    रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि 13 जून 2015 को ज़ाकिर के अपहरण इससे पहले होने वाली ऐसी घटनाओं का विस्तार लगता है जो एक तरफ एक क्षेत्र और समुदाय विशेष को लगातार आतंकित करने और बदनाम करने की साज़िश का हिस्सा हैं तो वहीं पुलिस और सरकारी तंत्र की मानसिकता और उसके खोखलेपन को भी उजागर करती हैं। हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि ज़ाकिर अपहरण कांड की निष्पक्ष जांच करवाई जाए और दोषियों को चिन्हित कर दंडित किया जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

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