• गिद्धों के लिए खुलेगा रेस्तरां

    पुणे । पश्चिमी घाटों के बड़े पेड़ों पर स्थित सफेद पूंछ वाले गिद्धों के घोंसलों में स्टिल कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों में जो कुछ भी कैद हुआ है वे चिंताजनक सबूत के रूप में सामने आए हैं। इन सबूतों से साफ है कि लगातार खतरनाक तरीके से विलुप्त हो रहे इन गिद्धों के बच्चों की भूख से मौत हो रही है। इससे निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 'गिद्ध रेस्तरां' स्थापित करने की योजना बनाई है। इसमें गिद्धों को पशुओं के शव मुहैया कराए जाएंगे। सरकार इन गिद्धों को कुछ खास स्थानों पर पशुओं के शव खाने के लिए उपलब्ध कराएगी। ऐसा गिद्धों के प्रजनन सीजन में खास करके किया जाएगा। फिलहाल राज्य सरकार के पास इस ऐसे चार अड्डे हैं लेकिन इनमें से महज एक सक्रिय है।...

    पुणे । पश्चिमी घाटों के बड़े पेड़ों पर स्थित सफेद पूंछ वाले गिद्धों के घोंसलों में स्टिल कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों में जो कुछ भी कैद हुआ है वे चिंताजनक सबूत के रूप में सामने आए हैं। इन सबूतों से साफ है कि लगातार खतरनाक तरीके से विलुप्त हो रहे इन गिद्धों के बच्चों की भूख से मौत हो रही है। इससे निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 'गिद्ध रेस्तरां' स्थापित करने की योजना बनाई है। इसमें गिद्धों को पशुओं के शव मुहैया कराए जाएंगे। सरकार इन गिद्धों को कुछ खास स्थानों पर पशुओं के शव खाने के लिए उपलब्ध कराएगी। ऐसा गिद्धों के प्रजनन सीजन में खास करके किया जाएगा। फिलहाल राज्य सरकार के पास इस ऐसे चार अड्डे हैं लेकिन इनमें से महज एक सक्रिय है। यह रायगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में है। यह अनोखा कदम महाराष्ट्र वन विभाग और ईएलए फाउंडेशन ने उठाया था। इसमें विशेषज्ञ पर्वतारोहियों (वे भी शामिल हैं जो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं) के जरिए डिजिटल ट्रैप कैमरा लगवाया गया था। ये कैमरे अपनी क्षमता के मुताबिक रात में भी काम करते थे। वन विभाग ने गिद्धों के उन घोंसलों में कैमरे को फिट करवाया था जो उनके कब्जे में हैं।

    इन कैमरों पर अवलोकन इस साल के मार्च से मई तक चला था। कैमरे ने गिद्धों के सात बच्चों को रेकॉर्ड किया। इनकी उम्र मुश्किल से दो से तीन महीने की थी। ये अपने पैरंट्स का 10 दिनों से इंतजार कर रहे थे कि वे इनके खाने के लिए कुछ लेकर आएंगे। इसी प्रतीक्षा में इनकी इस साल मई महीने में मौत हो गई। इन कैमरों के विडियो फूटेज से भी पता चलता है कि जब गिद्धों के बच्चों की गुदा संबंधी जांच की गई कि क्या वे मलत्याग कर रहे हैं तो यह बात सामने आई कि वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उनकी आंत खाली थी। पश्चिमी घाटों के तीन स्टडी ठिकानों पर इन कैमरों में 55 गिद्धों को रेकॉर्ड किया गया। गिद्धों के बच्चे रायगढ़ जिले के चिरागो गांव में मरे थे। इंडियन एक्सप्रेस से वन्यजीव प्रभाग पुणे के मुख्य संरक्षक सुनील लिमये ने बताया कि स्टडी ठिकानों पर फरवरी और मई 2015 के बीच गिद्धों के 14 बच्चों के चिह्नित 19 घोंसलों को लेकर 11 दौर किए गए। ईएलए फाउंडेशन के संस्थापक और पक्षि विज्ञानी डॉक्टर सतीश पांडे ने बताया कि इस साल मार्च 15 तक 17 घोंसले सक्रिय थे। स्टडी की शुरुआत में इन 14 चूजों की उम्र 6 से 8 हफ्ते की थी। मई 2015 तक इनमें से सात चूजों की मौत हो गई। डॉ. पांडे ने कहा, 'ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वहां खाने के लिए कुछ नहीं था। जाड़े के महीनों में इनका प्रजनन सीजन होता है जबकि बड़े गिद्ध बिना भोजन के कुछ महीनों तक रह सकते हैं।


    दूसरी तरफ इनके बच्चों को जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी है।' इस स्टडी का मुख्य लक्ष्य परिस्थितिकी को लेकर वैज्ञानिक डेटा जुटाना है। इनके प्रजनन के साथ गिद्धों के व्यवहार पैटर्न्स को लेकर जानकारी हासिल करनी है ताकि गिद्धों के इन दो विलुप्तप्राय जिप्स बेंगालेंजिज और जिप्स इंडिसस प्रजाति का संरक्षण किया जा सके। जिप्स प्रजाति के गिद्धों की सख्या में पिछले दशक में विश्वस्तर पर 95 से 99 पर्सेंट तक की गिरावट आई है। इसकी मुख्य वजह पशुओं को दी जाने वाली दर्दनिवारक दवाई डाइक्लोफेनाक है। बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विभु प्रकाश ने कहा, 'जिन पशुओं का इलाज डाइक्लोफेनाक दवाई से होता है उनके शव गिद्धों को लिए जानलेवा होते हैं। गिद्ध इनके शवों को खाने के बाद जल्द ही मर जाते हैं क्योंकि उनकी किडनी फेल हो जाती है। हालांकि 2006 में डाइक्लोफेनाक दवाई का निर्माण प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन मनुष्यों के लिए बनने वाली दवाई में अब भी यह उपलब्ध है। हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने साबित किया है कि डाइक्लोफेनाक इंसानों के लिए 10-15 मिलीलीटर शीशियों के बजाय 3 मिलीलीटर शीशियों में उपलब्ध है।' लिमये ने कहा कि हमलोग मरे हुए पशुओं को खरीदेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उनमें डाइक्लोफेनाक नहीं हो। इसके बाद हमलोग गिद्धों को रेस्तरां में पशु शवों को डालेंगे।

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