• अखिलेश की भी नहीं सुन रहे अधिकारी

    लखनऊ ! साल 2012 में जब अखिलेश यादव ने यूपी की सत्ता संभाली थी, तो अपने सरकारी आवास और दफ्तर के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए थे। ये सुविधा कभी उन्होंने वापस भी नहीं ली। अब भी वह जनता दरबार लगाते हैं। लोगों से समस्याएं सुनकर उनके आवेदनों पर टिप्पणी लिखकर अधिकारियों को कार्रवाई के लिए भेजते हैं,...

    लखनऊ !   साल 2012 में जब अखिलेश यादव ने यूपी की सत्ता संभाली थी, तो अपने सरकारी आवास और दफ्तर के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए थे। ये सुविधा कभी उन्होंने वापस भी नहीं ली। अब भी वह जनता दरबार लगाते हैं। लोगों से समस्याएं सुनकर उनके आवेदनों पर टिप्पणी लिखकर अधिकारियों को कार्रवाई के लिए भेजते हैं, लेकिन कई मामले ऐसे भी हैं, जहां अधिकारियों के पास लगातार चक्कर लगाने के बाद भी लोगों की परेशानी दूर नहीं हुई है। टेक्नोसैवी अखिलेश ने शिकायतों पर हुई कार्रवाई में पारदर्शिता बरतने के उद्देश्य से द्धह्लह्लश्च://ह्वश्चष्द्वश.ह्वश्च.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/ की वेबसाइट भी बनाई थी। इस साइट पर पीडि़त की समस्या पर क्या कार्रवाई हुई, उसका पूरा लेखा जोखा किया जाना था, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से मुख्यमंत्री का ये ख्वाब भी अधूरा रह गया। कुल मिलाकर अफसरशाहों की नीति, सरकार और मुख्यमंत्री की नीति के उलट चलती नजर आ रही है। ये है प्रक्रिया आम जनता जब मुख्यमंत्री से मिलकर या अन्य तरीकों से शिकायत करती है, तो मुख्यमंत्री ऑफिस से उस पत्र के लिए एक पीजी नंबर जनरेट होता है। ये नंबर पीडि़त के मोबाइल पर एसएमएस के रूप में आता है। साथ ही यह भी लिखा होता है कि उक्त अधिकारी से मिलकर अपनी समस्या का निराकरण करा लें, लेकिन मुख्यमंत्री ऑफिस की इस (द्धह्लह्लश्च://ह्वश्चष्द्वश.ह्वश्च.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/) वेबसाइट पर अधिकारियों की ओर से भरा जाने वाला कॉलम लगभग अधूरा ही रहता है। ऐसे में पीडि़त को समस्या के समाधान की जानकारी नहीं मिलती। सचिवालय के चक्कर काटते रहते हैं पीडि़त लखनऊ के खदरा इलाके से सचिवालय आईं सुमन बताती हैं कि उनके पिता की तबीयत खराब रहती है। जनता दर्शन में मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी पीड़ा बताई थी। मुख्यमंत्री ने भी संबंधित अधिकारी से मिलने को कहा। सुमन के आवेदन पर पीजी नंबर भी जनरेट हुआ, लेकिन वह अब तक संबंधित अधिकारी से मिलने सचिवालय नहीं पहुंच सकी हैं। कुछ यही कहानी आशीष सिंह और संजय जोधा का है। आशीष ने मुख्यमंत्री को लेटर लिख अपने इलाके की बदहाली बताई थी। उनको भी पीजी नंबर मिला, लेकिन अफसरों ने उनकी शिकायत पर क्या कदम उठाया, इसकी जानकारी अब तक वेबसाइट पर नहीं मिली। संजय जोधा की कहानी भी ऐसी ही है।


     

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