• बाल साहित्य को लेकर बढ़ी है गंभीरता : रस्किन बॉन्ड

    रस्किन बॉन्ड का मानना है कि बच्चों का ध्यान किताबों की तरफ खींचना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए जिम्मेदारी का भाव और खास तरह की संवेदनशीलता की दरकार होती है। उनका यह भी मानना है कि अब बाल साहित्य को गंभीरता से लिया जा रहा है।...

    रस्किन बॉन्ड की नई किताब 'रस्टी एंड द मैजिक माउंटेन्स' का विमोचन अगले महीने

    रस्किन बॉन्ड से खास बातचीत

    प्रीथा नायर

    नई दिल्ली| बाल साहित्य कोई बच्चों का खेल नहीं है, यह बात रस्किन बॉन्ड से बेहतर भला और कौन जानता है। बाल साहित्य के पितामह जैसी हैसियत को पहुंच चुके रस्किन बॉन्ड का मानना है कि बच्चों का ध्यान किताबों की तरफ खींचना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए जिम्मेदारी का भाव और खास तरह की संवेदनशीलता की दरकार होती है। उनका यह भी मानना है कि अब बाल साहित्य को गंभीरता से लिया जा रहा है।

    81 साल की उम्र में 150 से अधिक किताबों के रचयिता रस्किन बॉन्ड ने खास मुलाकात में बाल साहित्य की दिशा-दशा से लेकर निजी जीवन तक पर खुलकर बातें कीं। लैंडमार्क बुक स्टोर की पहल 'चाइल्ड रीडिंग टू चाइल्ड' के तहत चुने गए पांच बच्चों से मुलाकात के बाद उन्होंने से बातें की।

    अपनी कलम से शब्दों का जादू गढ़ने वाले रस्किन बॉन्ड ने कहा कि पहले के कुछ पन्ने अगर मजेदार नहीं हुए तो फिर बच्चे उस किताब को किनारे रखने में देर नहीं लगाते। इसलिए बच्चों के लिए लिखते वक्त लेखक को अधिक जिम्मेदारी और संवेदना की जरूरत पड़ती है।

    रस्किन बॉन्ड ने कहा कि स्कूल के दिनों से ही उनकी पढ़ने की आदत कोई बहुत अच्छी नहीं थी। हालांकि वह कहते हैं कि बाद में इसमें सुधार हुआ। उन्होंने कहा, "मैं हमेशा सुनता रहता हूं कि इंटरनेट-गिजमोस की वजह से बच्चों की पढ़ने की आदत पर प्रतिकूल असर पड़ा है लेकिन मेरा स्कूल का टाइम टीवी और इंटरनेट से पहले का है और उस वक्त भी कम ही बच्चे पढ़ने में मजा लेते थे। तो, मुझे नहीं लगता कि इस बात का इंटरनेट से कोई लेना-देना है।''

    रस्टी के नाम से भी मशहूर रस्किन बॉन्ड की नई किताब 'रस्टी एंड द मैजिक माउंटेन्स' का विमोचन अगले महीने होने जा रहा है। उनका मानना है कि पिछले 10 सालों में बाल साहित्य की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि आज से 10-15 साल पहले प्रकाशक बाल साहित्य को गंभीरता से नहीं लेते थे लेकिन भला हो अंग्रेजी भाषा का जिसकी वजह से अब शिक्षक और अभिभावक भी बच्चों के लिए अच्छा साहित्य चाहने लगे हैं।


    पद्म भूषण, पद्म श्री और साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जा चुके रस्किन बॉन्ड को 81 साल की उम्र में भी कौन सी बात सक्रिय रखे हुए है। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मैं एक आलसी लेखक हूं। एक दिन में दो पन्ने लिखता हूं और फिर सो जाता हूं। इतनी किताबें तो कई सालों के लिखने का नतीजा हैं।"

    रस्किन बॉन्ड की कुछ किताबों पर फिल्म भी बन चुकी है। 'द ब्लू एंब्रेला' नाम की किताब पर इसी नाम से फिल्म बनी है। 'जुनून' फिल्म उनकी किताब 'अ फ्लाइट ऑफ पीजन्स' और फिल्म 'सात खून माफ' उनकी किताब 'सुसानाज सेवेन हस्बेंड्स' पर आधारित है। उन्होंने बताया कि विशाल भारद्वाज निर्देशित फिल्म सात खून माफ में उन्होंने एक छोटी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा, "मैं अनाड़ियों की तरह काम कर रहा था। उन्हें सात टेक लेने पड़े जिसमें मुझे प्रियंका चोपड़ा के गाल को पिता समान थपकना था। अब पलट कर देखता हूं तो लगता है कि वो मेरे अवचेतन मस्तिष्क की जान बूझकर की गई गलती थी।"

    कसौली में पैदा हुए और मसूरी को अपना घर बनाने वाले रस्किन बॉन्ड ने कहा कि उनकी पहली किताब 'द रूम आन द रूफ' हमेशा उनके दिल के करीब रहेगी। आज 60 साल बाद भी इस किताब के संस्करण छप रहे हैं। रस्किन बॉन्ड ने कहा कि 1951 में उन्हें इंग्लैंड जाना पड़ा था। वहां उन्हें घर की याद आई और उसी दौरान यह किताब लिखी गई और तभी उन्होंने मसूरी को अपना घर बनाने का फैसला किया था। पहाड़ों के बीच रहने की वजह से उनकी किताबों की पृष्ठभूमि पहाड़ों पर आधारित होती है। पहाड़ों के बीच रहने की वजह से यह उनकी कहानियों का अभिन्न अंग बन गए।

    शादी नहीं की?

    इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह इत्तेफाक ही है कि उनकी शादी नहीं हुई। अपनी जगह बनाने में लगे एक युवा लेखक की आर्थिक हैसियत ऐसी नहीं थी कि परिवार चला सके। उन्होंने बताया कि वह अपनी आत्मकथा में इसका उल्लेख करेंगे।

    लेकिन, वह कहते हैं कि, उन्हें इसका कोई पछतावा नहीं है। अपने खुद के बनाए परिवार में वह खुश हैं। वह बताते हैं कि इस परिवार में राकेश, मुकेश, सावित्री और इनके बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि यह परिवार लगातार बढ़ रहा है, इसलिए उन्हें कभी नहीं लगा कि वह कोई तन्हा पड़े बूढ़े आदमी हैं।

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