• ओ कमाल के कलाम, तुझे सलाम!

    एक अजीम शख्सियत, कभी मिले बिना भी यूं लगा जैसे कोई अपना ऐसे कैसे चला गया। अधूरा मीठा सपना टूट गया। हर कोई हैरान, परेशान कैसे हुआ, क्यों हुआ! नियति के क्रूर हाथों को कलाम भी बेहद भाए, सच में बुरे सपने की तरह वो चौंका गए, सबके जागते हुए, देखते-देखते कुछ यूं चले गए, यकीन ही नहीं होता यह सपना है या वाकई उनका जाना। ...

    एक अजीम शख्सियत, कभी मिले बिना भी यूं लगा जैसे कोई अपना ऐसे कैसे चला गया। अधूरा मीठा सपना टूट गया। हर कोई हैरान, परेशान कैसे हुआ, क्यों हुआ! नियति के क्रूर हाथों को कलाम भी बेहद भाए, सच में बुरे सपने की तरह वो चौंका गए, सबके जागते हुए, देखते-देखते कुछ यूं चले गए, यकीन ही नहीं होता यह सपना है या वाकई उनका जाना।  कलाम ने जो कहा वो सच कर दिया 'सपने वो नहीं जो नींद में आएं सपने ऐसे हों जो आपकी नींद उड़ा दें।' यकीनन जनता के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सबकी नींद उड़ा गए। कलाम कहते थे "आओ, हम अपना आज कुर्बान करे जिससे हमारे बच्चों का कल बेहतर हो।"  उनका मानना था कि देश को भृष्टाचार से मुक्त करने के लिए समाज में तीन लोग ही हैं माता, पिता और शिक्षक। बहुत दूर की गहरी सोच के धनी ओ अवाम के कलाम तुम ही तो वो शिक्षक थे जो पढ़ाते-पढ़ाते अलविदा कह गए बताओ अधूरा पाठ कौन पूरा करेगा? अजीब संयोग, 83 साल के नौजवान कलाम ने मौत भी अपनी ़ख्वाहिश से चुनी। 'लिवेबल प्लेटनेट अर्थ' पर बोलते-बोलते अर्थ (पृथ्वी) को अलविदा कह दिया।  संसद के डेडलॉक पर भी वो बात करना चाहते थे जो अधूरा रह गया। यह सच है कि जीवन-मरण एक शाश्वत सत्य है, लेकिन वो मौत भी क्या जो बेमिशाल हो। जीवन को सफल बनाने का कलाम का मूल मंत्र लाजवाब है - "जब हम बाधाओं से रूबरू होते हैं तो पाते हैं कि हममें साहस और लचीलापन भी है, जिसका हमें खुद भान नहीं होता, यह तब पता लगता है जब हम असफल होते हैं। इसलिए जरूरी है कि इन्हें तलाशें और जीवन सफल बनाएं।"  ऐसी ही असंख्य प्रेरणाओं और स्फूर्तियों के दाता पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की मौत ने हर हिन्दुस्तानी को झकझोरा, हिन्दुस्तानी क्या पूरी इंसानियत को ही चौंका दिया। उनकी विलक्षण प्रतिभा ही थी जो पूरा जीवन सादगी और हर दिन प्रेरणा से भरा होता था।  अब्दुल कलाम के जीवन की शुरुआत बहुत ही संघर्षो से भरा रहा। तमिल मुस्लिम परिवार में 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे कलाम के पिता एक नाविक थे और मां गृहिणी। रामेश्वरम के प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन घर चलाने के लिए अखबार बांटते थे।  यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से 1954 में भौतिकी में एरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद फाइटर पाइलट बनना चाहते थे। सीट 8 थी कलाम का नंबर नौंवा। उनकी इच्छा अधूरी रही तो फिर दिशा बदल दी और 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएशन के बाद डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) पहुंचे और शुरू हुई कामियाबियों को पंख लगने की उड़ान। इंडियन आर्मी के लिए छोटा हेलीकॉप्टर बनाया, लेकिन खुद ही संतुष्ट नहीं हुए।  1962 में इंडियन स्पेस ऑर्गनाइजेशन (इसरो) पहुंचे और फिर शुरू हुआ कलाम के कमाल का सिलसिला। 1980 में पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-3) रोहणी सैटेलाइट अतरिक्ष में सफलतापूर्वक लांच हुआ। रक्षा के क्षेत्र में कलाम ने कमाल ही कमाल किया। 'इंटीगेडेट गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम' की शुरुआत की और त्रिशूल, पृथ्वी, आकाश, नाग, अग्नि जैसी मिसाइल देश को दी वहीं रूस के साथ ब्रम्होस मिसाइल बनाई। 1998 में अब्दुल कलाम की ही देखरेख में पोखरण में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण हुआ। वर्ष 1981 में पद्मभूषण, 1990 में पद्मविभूषण और 1997 में सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित कलाम 25 जुलाई 2002 को देश के 11वें राष्ट्रपति बने। संगीत में भी उनकी बेहद रुचि थी। वो वीणा भी बजाते थे। युवाओं के लिए जबरदस्त आदर्श और प्रेरणा के स्रोत एपीजे अब्दुल कलाम आजीवन अविवाहित रहे। वो कुरान और भगवत गीता दोनों को ही पढ़ते थे। वे शाकाहारी थे।  मृत्युदंड के विरोधी रहे अब्दुल कलाम ने अपनी मृत्यु से 26 दिन पहले, इसी साल 2 जुलाई को विधि आयोग को अपनी पुरानी रिपोर्ट भेजकर फिर से मृत्युदंड की मुखालफत की। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने केवल पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी के मृत्युदंड पर सहमति दी थी। वे सुधारवाद के पक्षधर रहे हैं।  राष्ट्रपित पद से कार्यमुक्त होने के बाद भी अब्दुल कलाम शोध, लेखन, शिक्षण में व्यस्त रहे। कलाम के आखिरी शब्द 'धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाए' की चिंता से भरे थे और यही कहते हुए वो धरती की बाहों में जा गिरे।


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