• राष्ट्रपति बनने से पहले ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच चुके थे कलाम

    नयी दिल्ली ! विज्ञान की दुनिया से राष्ट्रपति के पद पर पहुंचने वाले डॉ0 अबुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम पहले ही लाखों देशवासियों के प्रेरणास्रोत बन चुके थे और उनकी इसी लोकप्रियता ने उन्हें देश के सर्वोच्च आसन पर आरूढ़ कराया था।देश के 11वें राष्ट्रपति रहे डाॅ0 कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्‍यमवर्गीय परिवार में हुआ। ...

    नयी दिल्ली ! विज्ञान की दुनिया से राष्ट्रपति के पद पर पहुंचने वाले डॉ0 अबुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम पहले ही लाखों देशवासियों के प्रेरणास्रोत बन चुके थे और उनकी इसी लोकप्रियता ने उन्हें देश के सर्वोच्च आसन पर आरूढ़ कराया था। देश के 11वें राष्ट्रपति रहे डाॅ0 कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्‍यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुल आब्दीन नाविक थे। वे मछली पकड़ कर रोज़ीरोटी कमाते थे और पाँच वख्त के नमाजी थे। उनकी माता का नाम आशियम्मा था। उनकी आरंभिक शिक्षा पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के प्राथमिक स्कूल से शुरू हुई। वह बचपन से ही खासे प्रतिभाशाली रहे। मिसाइल मैन के नाम से विख्यात डॉ0 कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। उनकी दिनचर्या में प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर ट्यूशन पढ़ना, फिर लौट कर पिता के साथ नमाज पढ़ना, फिर तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाना और घूम-घूम कर बेचना। उसके बाद स्कूल जाना और शाम को अखबार के पैसों की वसूली करना शामिल था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हाईस्कूल में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एससी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रुख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।


    .डॉ0 कलाम वायु सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे। लेकिन इस इच्छा के पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद विभाग में 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर वहाँ पहले ही साल में एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान की डिजाइन तैयार करके अपने स्वर्णिम सफर की शुरूआत की। डॉ0 कलाम के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे 1962 में 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े। यहाँ पर उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने यहाँ पर आम आदमी से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरूआत की। इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य‍ से ‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरूआत हुई। डॉ0 कलाम की योग्यताओं को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया। उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल पर इस योजना को भलीभाँति अंजाम तक पहुँचाया तथा जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया। डॉ0 कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्‍य से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ0 वी.एस. अरूणाचलम के मार्गदर्शन में ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरूआत की। इस योजना के अंतर्गत ‘त्रिशूल’ (नीची उड़ान भरने वाले हेलाकॉप्टरों, विमानों तथा विमानभेदी मिसाइलों को निशाना बनाने में सक्षम), ‘पृथ्वी’ (जमीन से जमीन पर मार करने वाली, 150 किमी0 तक अचूक निशाना लगाने वाली हल्कीं मिसाइल), ‘आकाश’ (15 सेकंड में 25 किमी तक जमीन से हवा में मार करने वाली यह सुपरसोनिक मिसाइल एक साथ चार लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम), ‘नाग’ (हवा से जमीन पर अचूक मार करने वाली टैंक भेदी मिसाइल), ‘अग्नि’ (बेहद उच्च तापमान पर भी ‘कूल’ रहने वाली 5000 किमी0 तक मार करने वाली मिसाइल) एवं ‘ब्रह्मोस’ (रूस से साथ संयुक्त् रूप से विकसित मिसाइल, ध्व़नि से भी तेज चलने तथा धरती, आसमान और समुद्र में मार करने में सक्षम) मिसाइलें विकसित हुईं।  

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