• पंजाब में आतंकी हमला

    पंजाब के गुरुदासपुर में सोमवार को आतंकी हमला देश की सुरक्षा व्यवस्था और आंतरिक शांति के लिए चिंता और चिंतन का नया सबब बन गया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आतंकी हमले की जिम्मेदारी किसी आतंकी संगठन ने नहींली है, इसलिए यह कहना कठिन है कि हमले के पीछे किसकी साजिश है...

    पंजाब के गुरुदासपुर में सोमवार को आतंकी हमला देश की सुरक्षा व्यवस्था और आंतरिक शांति के लिए चिंता और चिंतन का नया सबब बन गया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आतंकी हमले की जिम्मेदारी किसी आतंकी संगठन ने नहींली है, इसलिए यह कहना कठिन है कि हमले के पीछे किसकी साजिश है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक आतंकवादी पाकिस्तान की सीमा से पंजाब में घुसे हैं। गौरतलब है कि गुरुदासपुर पाकिस्तान सीमा से महज 15 किमी दूर है। हमलावर सेना की वर्दी में आए और पहले एक कार छीनी, फिर हमले के लिए आगे बढ़े। उनकी इस शैली से अनुमान लगाया जा रहा है कि ये आतंकी लश्करे तैयबा के हो सकते हैं। आतंकियों ने जम्मू जाने वाली एक बस पर हमला किया। सूत्र बताते हैं कि बस ड्रायवर ने हमले के बावजूद बस नहींरोकी, अन्यथा यह वारदात और गंभीर परिणाम दे सकती थी। आतंकवादियों ने बस पर हमले के बाद दीनापुर थाने पर हमला कर दिया और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वे थाने में ही मौजूद हैं। सेना के विशेष कमांडो समेत सुरक्षा बल स्थिति पर नियंत्रण पाने की कोशिश में हैं। यह आतंकी हमला उस वक्त हुआ, जब देश का सियासी तापमान विभिन्न कारणों से काफी ऊंचा है। संसद का मानसून सत्र चल रहा है, जो रोज किसी न किसी कारण से बाधित हो रहा है। यूं तो सरकार समेत सभी राजनीतिक दलों ने आतंकी हमले की निंदा की है, लेकिन इस नाजुक स्थिति का फायदा उठाने में कोई पीछे नहींरहना चाहता, लिहाजा राजनीति भी शुरु हो गई है। कांग्रेस ने केेंद्र द्वारा सख्त कदम उठाए जाने की बात कही, सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े को आतंकी हमले पर बोलने नहींदिया गया, जिस पर उन्होंने आपत्ति जतलाई। भाजपा नेता आर.के. सिंह ने इसे आईएसआई की करतूत से जोड़ते हुए कहा कि पंजाब में सिक्ख आतंकियों को फिर से जिंदा करने का निर्णय उसने लिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आतंकवाद को राष्ट्रीय समस्या बताते हुए, इसका समाधान भी राष्ट्रीय नीति के तहत होने की बात कही। खुफिया एजेंसियों द्वारा हमले के अलर्ट पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा, कि अगर खतरे का अंदेशा था, तो सीमा को सील क्यों नहींकिया गया? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमले के बाद वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक की, जिसमें रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री तो सम्मिलित थे, किंतु गृहमंत्री राजनाथ सिंह केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक कार्यक्रम में शामिल होने भोपाल आए थे, सो वे उसमें शामिल नहींहुए। इस हमले के बाद हालात काबू में होने का दावा तो सरकार कर रही है, लेकिन पूरे घटनाक्रम और उस पर राजनीतिक दलों के सतही रवैये को देखकर लगता ही नहींकि आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या के निराकरण के लिए कोई वाकई परेशान है। जब-जब ऐसे आतंकी हमले हुए हैं, सुरक्षा बल के जवान जान हथेली पर रखकर मोर्चा संभालते हैं, राजनेता और सरकार बाद में उनकी तारीफ में कुछ शब्द बोलकर, कुछ इनाम या सम्मान देकर अपना कर्तव्य पूरा हुआ, ऐसा समझते हैं। यह सही है कि सुरक्षा बलों के कारण देश की अधिसंख्य जनता सुरक्षित रहती है, लेकिन देश के आंतरिक और बाह्यï मोर्चे पर शांति केवल जवानों की मुस्तैदी से कायम नहींहो सकती। इसके लिए राजनीतिक प्रयत्न और उपाय ही कारगर होंगे। पंजाब में आतंकवाद कितना खतरनाक रूप दिखा चुका है, यह देश अभी भूला नहींहै। 20 साल बाद वहां फिर आतंकी हमला हुआ है तो भविष्य को लेकर कई आशंकाओं का उठना स्वाभाविक है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे नाजुक वक्त में जनता को ढाढस बंधाए। लेकिन समाचार चैनलों पर चर्चाओं में जैसे कम देर के, सतही बयान दिए जाते हैं, वैसे ही बयान इस वक्त सुनने मिल रहे हैं। बातों और बयानों से देश व सरकार को चलाने की खुशफहमी पालना सबके लिए खतरनाक होगा, खासकर जनता के लिए।

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