• अपनी रणनीति में सत्तापक्ष सफल

    यह राजनैतिक कौशल से ही संभव है कि किसी के हथियार को ही अपने लिए ढाल बना लिया जाए। कांग्रेस यह भलीभांति जानती थी कि वह सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं करा सकती, फिर भी वह प्रस्ताव लेकर आई। विधानसभा अध्यक्ष ने उसे ग्राह्य भी कर लिया।...

    यह राजनैतिक कौशल से ही संभव है कि किसी के हथियार को ही अपने लिए ढाल बना लिया जाए। कांग्रेस यह भलीभांति जानती थी कि वह सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं करा सकती, फिर भी वह प्रस्ताव लेकर आई। विधानसभा अध्यक्ष ने उसे ग्राह्य भी कर लिया। यदि प्रस्ताव की ग्राह्यता पर मत विभाजन करा लिया जाता तो दूसरे ही पल यह प्रस्ताव गिर गया होता, लेकिन विपक्ष को प्रस्ताव पर चर्चा का पूरा मौका मिला। इस मौके को वह अपनी जीत के रुप में देख सकता है, भले ही प्रस्ताव अंतत: खारिज हो गया। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से पहले सत्तापक्ष ने विशेषाधिकार का मामला उठाया था। उसका कहना था कि अविश्वास प्रस्ताव पर लगाए गए आरोपों पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती क्योंकि सारे मुद्दे मीडिया में पहले ही आ चुके हैं। सत्तापक्ष के इस विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव को अध्यक्ष में अग्राह्य कर दिया और अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा के लिए ग्राह्य कर लिया। यह सत्तापक्ष की रणनीति के लिए अच्छा था क्योंकि यदि अविश्वास प्रस्ताव अग्राह्य हो जाता तो विपक्ष को सदन से बाहर इस पर हो-हल्ला करने का मौका मिल जाता। वह सरकार को तब यह कहकर घेर सकती थी कि वह आरोपों पर चर्चा से भाग रही है। उसमें आरोपों का सामना करने का साहस नहीं है। सत्तापक्ष ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के हथियार को ही ढाल बना लेने की रणनीति अपनाई और आरोपों का खूब जवाब भी दिया। खोदा पहाड़ निकली चुहिया, फ्लाप शो और आरोपों में कोई दम नहीं, दम है तो कोर्ट जाएं जैसी टिप्पणियों के जरिए हवा बदलने की कोशिश भी की गई। कांग्रेस पिछले कुछ समय से सरकार को घेरने का कोई मौका छोड़ नहीं रही है। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए वह सदन में सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की, लेकिन ऐसा कोई नया आरोप या मुद्दा उसके पास नहीं था, जिस पर जनता का ध्यान जाता। सत्तापक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष को चर्चा करने का इतना मौका दे दिया कि यह कुछ दिन चुप तो रह ही सकता है। ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया। अब आने वाले दिनों में उसकी इस रणनीति का असर दिखाई दे सकता है। छत्तीसगढ़ में यह पहला अवसर था जब रात ढाई बजे तक विधानसभा की कार्रवाई चली। किसी प्रस्ताव पर इतनी लंबी चर्चा का कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। इससे यह पता चलता है कि सत्तापक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर कितनी बड़ी तैयारी की थी। इस प्रस्ताव में सरकार पर जो आरोप लगाए गए थे, उन आरोपों में अमूमन वही बातें थीं, जिनकी चर्चा विपक्ष समय-समय पर करता रहा है। इस नाते भी सत्तापक्ष के लिए सदन में आरोपों का सामना करना असहज नहीं था। अब विपक्ष सरकार को यह कहकर नहीं घेर सकती कि वह आरोपों का सामना करने से भाग रही है या किसी आरोप का जवाब देने से बच रही है।

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